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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर संयुक्त विपक्ष की कोशिशों को उस समय बड़ा धक्का लगा जब बैठकों में न बुलाये जाने से आहत बसपा सुप्रीमो मायावती ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की जगह सत्ताधारी NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन की घोषणा कर दी. एनडीए का साथ देने का एलान करते हुए शनिवार को बसपा प्रमुख ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का कारण भी बताया. मायावती ने कहा एक तो द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं दूसरे राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर विपक्ष ने बसपा से सलाह नहीं की.

मायावती ने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा कि बहुजन समाज पार्टी ही देश की प्रमुख पार्टियों में से एकमात्र ऐसी जानी-मानी व पहचानी पार्टी है जिसका सर्वोच्च नेतृत्व यहाँ शुरू से ही दलित एवं अन्य उपेक्षित वर्गों के हाथों में ही रहा है और अभी भी है तथा जो किसी की भी, अर्थात् ना ही बीजेपी के एनडीए व कांग्रेस के यूपीए की व इनके किसी भी घटक दल की एवं अन्य किसी और भी गठबन्धन व पार्टी की भी, पिछलग्गू पार्टी नहीं है और ना ही दूसरी पार्टियों की तरह बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों आदि की भी गुलामी करने वाली पार्टी है, बल्कि स्पष्ट तौर पर देश के खासकर ग़़रीबों, मज़दूरों, बेरोज़गारों, दलितों, आदिवासियों, अक़लियतों एवं अन्य उपेक्षित वर्गों आदि के हितों में स्वतंत्र व निडर होकर फैसले लेती है व उस पर पूरी ईमानदारी व दमदारी से अमल भी करती है, और यदि कोई भी विरोधी पार्टी व उसकी सरकार इन वर्गों के हितों में उचित फैसला लेती है तो उसका हमारी पार्टी बिना किसी हिचक, दबाव व डर के पूरे तौर से खुलकर फैसला लेती है, चाहे उसका हमें कितना भी भारी नुकसान क्यों ना उठाना पड़े और उठाया भी है। कहने का तात्पर्य यह है कि अन्य पार्टियों की तरह हमारी पार्टी की कथनी व करनी में कभी भी कोई अन्तर नहीं होता है।

मायावती ने कहा कि हमारी पार्टी का संकल्प, औरों की जुमलेबाजी से अलग हटकर तथा सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय के आधार पर चलकर भारतीय संविधान के निर्माता परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के देशहित की सच्ची मानवतावादी सोच को ज़मीनी हकीकत में उतारकर यहाँ ग़रीबों व मज़लूमों आदि का सही से उद्धार करके उन्हें समाज व देश की मुख्य धारा में लाना है और यही सब हमारी पार्टी व उसके नेतृत्व की वह ख़ास विशेषता है जो यहाँ अपने देश में किसी भी विरोधी पार्टी को अच्छी नहीं लगती है तथा वे जातिवादी सोच रखने वाले लोग बी.एस.पी. को नीचा दिखाने में व उसके नेतृत्व को बदनाम करने के लिए कभी भी कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।

बसपा प्रमुख ने आगे कहा कि जो पार्टी केन्द्र व राज्यों की सत्ता में होती है तो वह साम, दाम, दण्ड, भेद आदि अनेकों प्रकार के हथकण्डे अपनाकर व बी.एस.पी. के विधायकों आदि को भी तोड़कर हमारी पार्टी व मूवमेन्ट को कमज़ोर करने में ही लगातार लगी रहती है और ख़ासकर कांग्रेस व भाजपा आदि जैसी ये विरोधी पार्टियाँ यह रत्ती भर भी नहीं चाहती हैं कि परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर का मानवतावादी संविधान उनकी सही मंशा के हिसाब से, इस देश में लागू हो तथा यहाँ के बहुसंख्यकों ग़रीब, मज़लूम व उपेक्षित वर्गाें आदि के जीवन स्तर में कुछ सुधार होकर उन्हें लाचारी व गुलामी के त्रस्त जीवन से थोड़ी राहत एवं मुक्ति मिल सके। जबकि यहाँ यूपी में बी.एस.पी. के नेतृत्व में चार बार के रहे शासनकाल में प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश ने यह देख लिया है कि विशेषकर सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक विकास से लोगों के जीवन में कैसा ज़रूरी बुनियादी सुधार लाया जा सकता है। हाँलाकि इस मामले में दूसरी सभी पार्टियों का रिकार्ड मुँह में राम बगल में छूरी वाली कहावत को ही अब तक दर्शाता रहने का ही रहा है।

मायावती ने कहा कि ऐसे में यह स्पष्ट है कि विशेषकर कमजोर वर्गाें जनहित व जनकल्याण के खास मामले में बी.एस.पी. के आयरन विल पावर किसी भी विरोधी दल को कैसे पसंद आ सकता है। इसीलिए उनका षड्यंत्र पहले की तरह ही अभी भी लगातार जारी है और यह सब देश में होने वाले इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अब फिर से हमें यहाँ देखने को मिला है। इस सम्बन्ध में भाजपा जहाँ सर्वसम्मति (आम-सहमति) से सत्ताधारी एनडीए गठबन्धन के उम्मीद्वार तय करने के लिए अपनी विपक्षी पार्टियों से सम्पर्क करने का दिखावा करती रही है तो, वहीं विपक्षी दल एक संयुक्त उम्मीद्वार तय करने के लिए अपनी मनमानी बैठकें करते रहे हैं और इन्होंने उस प्रक्रिया से बी.एस.पी. को अलग-थलग रखा है। यह सब इनकी जातिवादी मानसिकता नही तो और क्या है?
जबकि बी.एस.पी. जनहित के लगभग हर ख़ास मामले में, भाजपा के खिलाफ, विपक्ष का हमेशा से सहयोग करती रही है, किन्तु पहले बंगाल की मुख्यमंत्री टीएमसी द्वारा 15 जून को विपक्षी पार्टियों की बैठक में एकतरफा व मनमाने तौर पर केवल चुनिन्दा पार्टियों को ही बुलाना और फिर उसके बाद श्री शरद पवार द्वारा दिनांक 21 जून को इसी प्रकार की बैठक में बी.एस.पी. को नहीं बुलाना आदि इनके यह जातिवादी इरादों को स्पष्ट करता है।

उन्होंने अकहा कि ऐसे में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव हेतु विपक्षी एकता का प्रयास गंभीर न होकर लोगों को इसका केवल एक दिखावा ही ज्यादा लगता है, जिसका अंजाम भी सभी को मालूम है। जबकि इन्हीं विपक्षी पार्टियों ने बी.एस.पी. को भाजपा की ’बी’ टीम का झूठा प्रचार खूब फैलाकर व माहौल बनाकर ख़ासकर यूपी के पिछले वि.सभा आमचुनाव में हमारी पार्टी का भारी नुकसान ही नहीं किया है, बल्किी इन्होंने एक विशेष समुदाय को बी.एस.पी. के खिलाफ व सपा के पक्ष में इतना ज्यादा गुमराह किया कि सपा तो हारी ही हारी, अन्त में भाजपा यहाँ दोबारा से सत्ता में आ गई, लेकिन इस आत्मघाती रवैये के बाद भी विपक्षी पार्टियों का बी.एस.पी.-विरोधी जातिवादी रवैया अभी भी बरकरार है, जिसके बाद निश्चय ही बी.एस.पी. अब किसी भी मामले में अपना निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र व आज़ाद है.