दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में 7 अगस्त को मणिपुर मामले को लेकर सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायलय ने हिंसा मामले से जुड़े मुद्दों की पड़ताल और मानवीय सुविधाओं के लिए हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों की कमेटी बनाई है। तीन सदस्यीय न्यायिक जांच कमेटी में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर जस्टिस गीता मित्तल, जस्टिस आशा मेनन और जस्टिस शालिनी पनसाकर जोशी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह “कानून के शासन में विश्वास की भावना बहाल करने” के लिए मणिपुर हिंसा मामलों के संबंध में कई निर्देश पारित करेगा। तीन सदस्यीय कमेटी के बारे में शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक “व्यापक आधार वाली समिति” होगी जो राहत, उपचारात्मक उपाय, पुनर्वास उपाय, घरों और पूजा स्थलों की बहाली सहित चीजों को देखेगी।

महिलाओं के साथ हुई हिंसा की जांच के संबंध में अदालत ने कहा कि केंद्र ने यौन हिंसा से संबंधित 11 एफआईआर केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने का फैसला किया है। कोर्ट ने कहा कि वह इन मामलों को सीबीआई को ट्रांसफर करने की इजाजत देगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच में अन्य राज्यों से लिए गए एसपी नहीं तो कम से कम डीवाईएसपी रैंक के 5 अधिकारी भी शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये अधिकारी सीबीआई के प्रशासनिक ढांचे के भीतर काम करेंगे।

इसके अलावा शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह सीबीआई जांच की निगरानी के लिए एक अधिकारी नियुक्त करेगा। यह अधिकारी न्यायालय को वापस रिपोर्ट करेगा। महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी और मुंबई पुलिस आयुक्त दत्तात्रेय पडसलगीकर को न्यायालय ने पर्यवेक्षण अधिकारी के रूप में नियुक्त किया। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सराकर के इस कथन पर गौर किया कि वह उन मामलों की जांच के लिए 42 एसआईटी टीमों का गठन करेगी जो सीबीआई को हस्तांतरित नहीं किए गए हैं।