नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुए समौझौते के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सीमा एक किलोमीटर भीतर खिसक गई है।

30 जून को हुआ समझौता
अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों सेनाओं के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच 30 जून को हुए समझौते के मुताबिक एलएसी को वाई-नाला जंक्शन के माध्यम से निगरानी करने की सहमती बनी। यह भारत के एक किमी भीतर स्थित है। भारतीय सेना इस इलाके में दशकों से गश्त लगाती रही है, जहां पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 (पीपी-14) स्थित है। लेकिन सैन्य अधिकारियों के बीच हुई सहमती के बाद अब यह क्षेत्र चीन के “बफर जोन” के भीतर आता है।

बफर जोन
सैन्य कमांडरों के बीच समझौते के मुताबिक एलएसी के दोनों ओर कम से कम 1.5 किमी की दूरी पर एक बफर जोन बनाया जाना था। रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना के तहत दोनों देश को अपने बफर जोन में दो टेंट पोस्ट को बनाए रखने की अनुमति है। फॉरवर्ड टेंट पोस्ट वाई जंक्शन से 1.4 किलोमीटर की दूरी पर होगा। वहीं, दूसरा टेंट पोस्ट 1.6 किलोमीटर की दूरी पर होगा। यानी दोनों पोस्ट वाई जंक्शन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर होंगे। समझौते के अनुसार, भारत और चीन दोनों को अपने फॉरवर्ड ‘टेंट पोस्ट’ में 30 सैनिकों और शेष टेंट पोस्ट में 50 सैनिकों को बनाए रखने की अनुमति है।

प्रभावी रूप एलएसी बिंदु
रिपोर्ट में सेना के सूत्रों के हवाले से लिखा गया है, “पीपी -14 के पश्चिम ट्रेडिशनल एलएसी अलाइनमेंट की बजाय वाई-जंक्शन से सभी दूरी को मापकर वाई-जंक्शन को प्रभावी रूप से एलएसी बिंदु माना गया है।” इसका अर्थ यह है कि भारतीय सेना, जो पहले पीपी-14 तक गश्त करती थी, उस बिंदु से 2.4 किलोमीटर की दूरी तक पीछे खिसक गई है। जबकि पीपी-14 की तरफ चीनी सेना 400 मीटर तक आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है, “पीपी-15 के पास, भारतीय द्वारा दावा किए जा रहे क्षेत्र में चीन ने 3 किलो मीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है, जहां 1000 से अधिक चीनी सैनिक समान संख्या में भारतीय सैनिकों के सामने खड़े हैं।

चीनी सेना के पीछे हटने की खबर
चीनी सेना के 15 जून को एलएसी पर झड़प वाली जगह से पेट्रोल पॉइंट 14 से 1.5-2 किलोमीटर पीछे हटने की खबर थी। भारतीय जवान भी पीछे आ गए और दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच एक बफर जोन बना दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, चीनी सैनिकों ने गलवान नदी के टर्न से हटना शुरू कर दिया था और इस इलाके से अस्थायी ढांचों और टेंट को हटा दिया गया था। वर्तमान में, यह प्रक्रिया सिर्फ गलवान घाटी तक में सीमित है।