अभिनेता रज़ा मुराद,शाहबाज़ खान के साथ महाभारत के अर्जुन फिरोज़ खान भी हुये शामिल

लखनऊ। उर्दू ने इस समाज को बहुत कुछ दिया है। बॉलीवुड हिन्दी फिल्मों के रूप में प्रचलित अधिकांश फिल्मों की भाषा हिंदुस्तानी भाषा या बोलचाल की हिन्दी है। मुगले आज़म, पाकीज़ा, निकाह, रज़िया सुल्तान जैसी अनेक फिल्मों में उर्दू का इस्तेमाल हुआ है। इसी तरह बालीबुड फिल्मों को कैफी, शकील बदायुंनी, साहिर, मजरूह जैसे शायरों ने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया है।

यह मानना था उन वक्ताओं का जो यहां उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी में जश्ने उर्दू के उद्घाटन के अवसर पर वक्ताओं के तौर पर मौजूद थे। बालीवुड में उर्दू विषय पर आयोजित सेमिनार में प्रख्यात अभिनेता रज़ा मुराद व शाहबाज़ खान के साथ लेखक एसके प्रसाद उपस्थित थे। इसकी सदारत अब्दुल नसीर नासिर ने की। दो दिवसीय जश्ने उर्दू आज से गोमतीनगर स्थित उर्दू अकादमी सभागार में प्रारम्भ हो गया। समारोह के दूसरे दिन यहां उर्दू रंगमंच, उर्दू शिक्षा, उर्दू संस्कृति के संग मुशायरे दास्तानगोई के सत्र चलेंगे।

फिल्मों पर केन्द्रित पहले सत्र के बाद आज का दूसरा सत्र एसएन लाल के संयोजन में उर्दू पत्रकारिता पर था। यहां वक्ताओं ने कहा कि उर्दू के भविष्य को लेकर जहां लोग फिक्रमंद हैं, वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो उर्दू का भविष्य रौशन मानते हैं। फिल्में हों या टीवी धारावाहिक सब जगह उर्दू की जरूरत है। इसलिए यही कहा जा सकता है कि उर्दू पत्रकारिता का भविष्य रौशन है, मगर सवाल इस बात का है कि जिनके हाथ में यह भविष्य है, वह रौशन जेहन के संग कलम के धनी हैं कि नहीं? उर्दू मीडिया के उजले पक्ष को देखा जाए, तो यह पीत पत्रकारिता से काफी हद तक दूर है। केंद्र सरकार और कुछ अन्य मीडिया समूह उर्दू चैनल्स लाए हैं। उर्दू अखबारों की वेबसाइटें और ई-संस्करण इत्यादि भी खासे हैं। अनेक अखबारों ने उर्दू के लिए हिंदी की देवनागरी लिपि भी अपनाई है। इन सबसे तो यही संकेत मिलता है कि उर्दू पत्रकारिता के लिए माहौल पहले से सुधरा और प्रतिस्पर्धा भरा है। उर्दू सहाफत के ऐतिहासिक सामाजिक पक्ष को समेटे इस सत्र में हिसाम सिद्दीक़ी,ए.वी.सिंह, अफीफ सिराज व फैजान मुसन्ना इत्यादि शामिल हुए।

उर्दू राजनीति पर हुए तीसरे सत्र में मुर्तुज अली, मोहम्मद अली, दीपक रंजन ने विचार रखते हुए उर्दू की प्रासंगिकता बताई। इसी क्रम में नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह, अतहर नबी और मोहसिन खान ने उर्दू के गद्य-पद्य रचनाकारों व उनकी रचनाओं का हवाले से उर्दू को एक समृद्ध भाषा बताया। आज कर्नल जाहिद की पुस्तक का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर मुशायरे के संग ही अर्जुन और जमाल ने संगीत की मधुर महफिल भी सजाई गयी। इसके अन्तर्गत महाभारत मे अर्जुन बने फिरोज खान ने मो.रफी के मैं कहीं कवि न बन जाऊ… आजा-आजा मै हूं प्यार तेरा…, जमाल ने पग घुगरू बांध मीरा नाची थी… मेरे महबूब कयामत होगी…जबकि ईशा खान नें सौ साल पहले… रात के हमसफर… सहित अन्य गीतो को गाकर समां बांधा। समारोह में आये मेहमानों को संस्था के सचिव वाॅमिक खान व अध्यक्ष संजय सिंह ने स्मृति चिह्न देकर सम्मानित भी किया।