लखनऊ: मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सम्बंधी तीनों कानून किसान विरोधी देश विरोधी है। यह कानून महज देशी विदेशी वित्तीय पूंजी और कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए लाए गए है। इसी प्रकार श्रम सुधार के नाम पर लाए गए चार नए लेबर कोड भी मजदूरों से उनके अधिकारों को छीनकर उनको गुलाम बनाने वाले है। इसलिए राष्ट्रहित में सरकार को इन कानूनों को वापस लेना चाहिए। यह राजनीतिक प्रस्ताव आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने लिया। प्रस्ताव में कहा गया कि देश में 1991 में शुरू की गई नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों का परिणाम ये कानून है जिनका उद्देश्य देश की कृषि को पूरे तौर पर बर्बाद कर देना है। इसलिए किसानों के आंदोलन को इन कानूनों की वापसी के साथ इन नीतियों को पलटने के लिए भी एकताबद्ध होना चाहिए। प्रस्ताव में लगातार किसानों पर जारी भारी दमन, उन पर वाटर कैनन व आंसू गैस के प्रयोग, लाठीचार्ज, रास्ते में गढ्ढे खुदवाने, मुकदमें कायम कराने और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर समेत तमाम किसान नेताओं की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए कहा गया कि कारपोरेट की सेवा में नतमस्तक आरएसएस की मोदी सरकार को आखिरकार किसानों के जुझारू आंदोलन के आगे झुकना पड़ा और उसे किसानों को दिल्ली में प्रदर्शन करने की इजाजत देनी पड़ी। प्रस्ताव में कहा गया कि किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, देश विरोधी इन कानूनों की वापसी के लिए जारी किसानों के आंदोलन के साथ आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, मजदूर किसान मंच और वर्कर्स फ्रंट मजबूती से है। एआईपीएफ के राजनीतिक प्रस्तावों को राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी ने आज प्रेस को जारी किया।