मोहम्मद आरिफ नगरामी

अफगानिस्तान में दोबारा एक्तेदार में आने के बाद से तालिबान ने जो इस्लाम की तस्वीर पेश की है वह बिल्कुल गलत और र्श्मनाक है। मुगलिया दौरे हुकूमत मेें भी जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने ‘‘दीने इलाही‘‘ के नाम से हिन्दुस्तान में एक नया मजहब राएज करने की कोशिश की थी उस वक्त के उलमायेकेराम ने ‘‘दीने इलाही‘‘ की शदीद मुखालिफ की थी। उन्होंने मुल्क के अवाम से ‘‘दीने इलाही‘‘ को अख्तयार न करने का मशविरा दिया था, लोगों ने अकबर के राएज किये गये नये मजहब दीने इलाही को कुबूल नहंी किया और वह दीने इलाही अकबरे आजम की मौत के साथ ही खत्म हो गया।

अफगानिस्तान के तालिबान भी शायद एक नये मजहब की बुनियाद रख रहे हैं जो वहां के अवाम को काबिले कुबूल नहीं है। जो मजहब हजरत मोहम्मद सल0 लेकर आये थे वह तो अफगानिस्तान में कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है और जिस मजहब पर तालिबान अफगानियों को चलाने की कोशिश कर रहे हैं उसमें मोहम्मद अरबी सल0 के मजहब की बदनामी हो रही है। इस्लाम के नाम पर तालिबान जो कुछ अफगानिस्तान में कर रहे हैं वह आलमे इस्लाम के लिये तो शर्म की बात है ही लेकिन तालिबान के फैसलों से मुस्लिम दुशमन ताकतों को मुसलमानों का मजाक उड़ाने का मौका मिल रहा है। तालिबान के एक हुक्मनामा में कहा गया है कि काबुल और अफगानिस्तान की तमाम यूनिवर्सिटियों के क्लास रूम में लड़के और लड़कियों को एक दूसरे से अलग रखने के लिए पर्दे टांगे गये हैं, और जल्द ही क्लासरूम्ज में दरमियान में दीवार उठा दी जायेगी।

भला बताईये कि इक्कीसवी सदी में भला कौन है जो इस पर हंसेगा नहीं , और तो और खुद हिन्दुस्तानी मुसलमान अपनी बेटियों को ऐसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने से गुरेज करेगा। कल को अगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में काबुल यूनिवर्सिटी की तरह लडकियों के साथ पेश आने लगे तो लोग अपनी बच्चियों को वहां से निकाल लेंगे लेकिन नहीं साहब तालिबान का अनोखा इस्लाम यह करने की इजाजत देता है । अरे भाई यह कौन सा इस्लाम है। तालिबान शायद खुद इस्लाम की तारीख भूल गये हैं, बानिये इस्लाम हजरत मोहम्म्द सल0 की पहली जौजा हजरत खदीजा रजि0 खुद मक्का की एक अहेम ताजिर थीं। रसूले करीम सल0 ने उनकी इस बात पर कभी एतेराज नहीं किया, खुद रसूल उम्महाते मोमिनीन समेत मदीना मुनव्वरा की औरतों को मैदाने जंग में लेकर जाते थे, जहां जाहिर है कि चारों तरफ मर्द ही मर्द होते थे और खुद र्कुआन पाक ने औरतों को जो हुकूक अता किये हैं, इससे वाजेह है कि हुजूरे करीम सल0 के दौर की औरत को हजरत ने चहारदीवारी में कैद करने के बजाये उनको तरह तरह से हर अमल में खुदमुख्तार और बाअख्तियार बनाया था, लेकिन अब तालिबान औरतों के तमाम इस्लामी हुकूक जिस तरह रौंद रहे हैं उससे मुसलमान सारी दुनिया में बदनाम हो रहे हैं और लोगों को इस्लाम पर उंगली उठाने का मौका मिल रहा है।

हालांकि ऐसा नहीं कि तमाम आलमे इस्लाम औरतों के साथ तालिबान की तरह पेश आते हैं। हकीकत तो यह है कि गुजिश्ता चंद सालो में खुद अरब मुमालिक में ख्वातीन को बाअख्तियार बनाने की कोशिश हुंयी है। वाजेह रहे कि अभी गुजिश्ता दिनों ट्यूनीशिया में एक औरत को मुल्क का वजीरे आजम बनाया गया है, वहां के सदर, कैस ने नजला रमजान को ट्यूनिस का वजीरे आजम मुन्तखत करके सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। यह एक तारीखसाज कदम है, क्योंकि किसी भी अरबी जबान बोले जाने वाले इस्लामी मुल्क मेें ट्यूनीशिया पहला मुल्क है कि जहां एक औरत इतने अहेम ओहदे पर फाएज हुयी है।

नजला रमजान पेशा से इन्जीनियर हैं और अभी हाल ही में वर्ल्ड बैंक के लिये काम कर रही थीं, ट्यूनीशिया के इस तारीखसाज फैसले से यह वाजेह है कि अब आलमे अरब भी औरतों को बाअख्तियार बनाने की राह पर गामजन है। दरअसल इस तब्दीली का आगाज सऊदी अरब से हुआ जहां के वली अहेद शहजादा मोहम्मद बिन सलमान ने औरतों के लिये नये कानून बनाकर उनको बहुत हद तक बाअख्तियार बना दिया। महज सऊदी अरब या ट्यूनीशिया में ही नहीं ख्वातीन को बाअख्तियार नहीं बनाया जा रहा है बल्कि सूडान मेें वहां की वजीरे दिफा एक औरत है और इसी तरह लेब्नान की वजीरे खारजा एक औरत ही है।

कहने का मकसद यह है कि अरब मुमालिक औरतों को बाअख्तियार बनाने की राह पर गामजन है। लेकिन इस तब्दीली का जिक्र दुनिया भर के मीडिया में इस तरह से नजर नहीं आता है जैसा कि तालिबान के जरिये औरतों के साथ बदसुलूकी का चर्चा रहता है। आलमी मीडिया को तो मुसलमानों को मुंह चिढ़ाने का मौका मिलना चाहिये, और जब से तालिबान बरसरे एक्तेदार आये हैं तब से उनकी हिमाकतों से मुस्लिम दुशमन अनासिर को मुसलमानों को बदनाम करने का मौका मिल गया है। मुस्लिम समाज में आजादिये निस्वां की सख्त जरूरत है। और इस सिलसिले में ट्यूनीशिया और सऊदी अरब जैसे मुमालिक से सबक लेने की जरूरत है। इस्लामी मुमालिक में तालिबानी नहीं बल्कि ट्यूनीशिया माडल की जरूरत है।