नई दिल्ली। भारतीय सुन्नी मुसलमानो के सबसे बड़े छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ओर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानि एमएसओ ने केंद्र सरकार से भारत चीन विवाद के चलते अपील की है कि भारत सरकार को चीन के साथ सभी प्रकार के आर्थिक संबंध तोड़ देने चाहिए, युद्ध और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते। उन्होने कहा कि इम्पोर्ट, चीनी इनवेस्टमेंट, चीनी कम्पनियों को इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में कॉन्ट्रेक्ट नहीं दिए जाने चाहिए.” उन्होंने कहा कि ”टिकटॉक को लेकर हमारे सिक्यूरिटी कन्सर्न्स हैं. चीनी ऐप्स का डाउनलोड बंद हो, सरकार किसी भी चीनी ऐप को अनुमति नहीं दे.”

कादरी ने भारत-चीन सरहद पर झड़प में जान गंवाने वाले जवानों के परिवारों को सरकारी नौकरी देने की मांग की है। उन्होने कहा कि भारतीय जवान हमारी, हमारे परिवार की और देश की रक्षा करते हुए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते. उनकी मौत के बाद उनके परिवार को कई तरीके की आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.” ऐसे में भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि जो फौजी भाई सरहद पर देश की रक्षा करने में जान गवाए हैं उनके परिवार के किसी एक सदस्य को भारत सरकार सरकारी नौकरी दे ताकि सरहद पर खड़े फौजी को देश की रक्षा करते समय अपने परिवार की या उनके भविष्य की चिंता न सताए. उनका मनोबल ऊंचा रहे.

एमएसओ के अध्यक्ष ने कहा कि ”अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्टर हरदीप पुरी से हमारा निवेदन है कि दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट सिस्टम प्रोजेक्ट चीनी कम्पनियों को नहीं दिया जाए, यह प्रोजेक्ट बहुत सेंसिटिव है.”

कादरी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वो देश को स्पष्ट बताए कि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच यह झड़प ठीक-ठाक कहां हुई, नियंत्रण रेखा से कितनी दूरी पर हुई और दोनों तरफ के सैनिकों के बीच ऐसी कौनसी बातें या कार्रवाइयां हुईं, जिनके कारण ऐसा कुछ हुआ, जैसा कि इस 3500 किमी की सीमा-रेखा पर पिछले 45 साल में कभी नहीं हुआ। सरकार को पूरी जांच करके इसकी रपट देश के सामने पेश करनी चाहिए। हमारे एक-एक सैनिक की जान अमूल्य है।

शुजात ने भारत सरकार को सलाह देते हुये कहा कि चीन से सरकारी स्तर पर कूटनीतिक संबंध तो ज्यों के त्यों बनाए रखे जाएं लेकिन जनता सोच-समझकर चीनी माल का बहिष्कार शुरु करे। भारत सरकार को चाहिए कि हांगकांग, तिब्बत, ताइवान और सिंक्यांग (उइगर मुसलमानों) का मामला भी उठाएं। ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी जैसे तीन-चार राष्ट्रों के संगठनों में भी, जहां भारत और चीन उनके सदस्य हैं, भारत अपना तेवर तीखा रखे। पड़ौसी राष्ट्रों को ‘सिल्क रोड’ के जाल में फंसने और चीन के कर्जदार होने से बचाए। तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा पर लगे सभी प्रतिबंध हटाए, ईस्ट तुर्किस्तान (मौजूदा सिंक्यांग) को अलग देश की मान्यता दे, चीन यदि अरुणाचल को खुद का बताता है तो हम तिब्बत, सिंक्यांग और इनर मंगोलिया को आजाद करने की बात क्यों नहीं कहें ? चीन यदि हमारे अरुणाचलियों को वीज़ा नहीं देता है तो हम तिब्बत, सिंक्यांग और इनर मंगोलिया के हान चीनियों को वीज़ा देना बंद करें। भारत में चीन ने 26 बिलियन डाॅलर की पूंजी लगा रखी है। उसे हतोत्साहित करने के प्रयास करे, लेकिन इस तरह के उग्र कदम उठाने के पहले हमारे विदेश मंत्रालय को चीन के असली इरादों की पहचान जरुर होनी चहिए।