टीम इंस्टेंटखबर
भारतीय मुस्लिम सेक्युलर राजनीति को पसंद करता है और वह अभी मुस्लिम प्रतिनिधित्व के नाम पर वोट देने के ट्रेंड में नहीं आया है। यह बात आज मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया की तरफ से आयोजित एक वेबीनार में उभरकर आई। वेबिनार इस विषय पर आयोजित किया गया था कि “क्या भारतीय मुसलमानों की समस्याओं का एकमात्र हल मुस्लिम प्रतिनिधित्व है?”

वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा कि भारत एक बहु सांस्कृतिक देश है और भारतीय मुसलमानों को सेकुलरिज्म की शर्त पर किसी भी तरह की धार्मिक राजनीति के झांसे में नहीं आना चाहिए। प्रोफेसर वासे ने कहा कि यह संभव नहीं है कि हम सेकुलरिज्म का लाभ उठाएं लेकिन स्वयं धर्म की राजनीति करें। उन्होंने राजनीति और धर्म को अलग रखने पर जोर दिया। प्रोफेसर वासे ने इस्लाम के सुनहरे इतिहास के उदाहरण देते हुए कहा कि इस्लाम का बुनियादी उसूल लोकतंत्र और सबको साथ लेकर चलने की भावना है जिसे फिर से जीवित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ये समय दूसरे कम्यूनिटी के लोगों से डायलॉग का है न की तर्क और कुतर्क का।

वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय यह स्पष्ट हो गया था कि भारत में रुकने वाला मुस्लिम सेकुलर है। उस दौरान अपने परिवार के सगे भाइयों से बिछड़ने के बावजूद भी मुस्लिम लोगों ने भारत में रहना स्वीकार किया, जो इस बात की दलील है कि भारतीय मुस्लिम जनमानस हमेशा से सेकुलरवादी रहा है। टंडन ने कहा कि राजनीतिक दल भले ही अपने हित के लिए धुर्वीकरण कर रहें हैं लेकिन अभी भी भारतीय जनमानस गंगा जमुनी तहजीब और सेक्युलर वैल्यूज में ही विश्वास रखती है।

जयपुर से पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अध्यापक की भूमिका निभा रहे डॉक्टर अखलाक उस्मानी ने कहा कि कोई भी दक्षिणपंथी राजनीति किसी दूसरी दक्षिणपंथी राजनीति की मदद करती है। उन्होंने कहा कि धार्मिक राजनीतिज्ञों को सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग जाते हैं लेकिन यह भीड़ पूरी तरह वोटों में तब्दील नहीं होती, जो इस बात की गवाही देती है कि भारतीय मुसलमान अब भी धर्म के आधार पर वोट नहीं देता।

उन्होंने ऐसी किसी भी आशंका से इनकार किया कि अंतरराष्ट्रीय कट्टरवादी तत्वों की तरफ से सलाफी खिलाफत के नाम पर भड़काया जा रहे आंदोलन में भारतीय शरीक होंगे। उन्होंने याद दिलाया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बार कहा था कि भारतीय मुस्लिम नौजवान किसी भी आतंकवादी घटनाओं की तरफ आकृष्ट नहीं होते और उनका आंकलन सही है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए MSO के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर शुजात अली कादरी ने कहा कि भारत एक बहु सांस्कृतिक देश है और यहां मुस्लिम नौजवानों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्होंने धर्म और राजनीति को अलग अलग रखने का आह्वान करते हुए भारतीय मुस्लिम नौजवानों को आगाह किया कि वे इस्लाम का नाम लेने वाले किसी भी तत्व के बहकावे में आने से पहले विवेक का प्रयोग करें।

इस दौरान फेसबुक समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसका सीधा प्रसारण किया गया जिसमें नौजवान मुस्लिम युवाओं ने प्रश्न पूछे और पैनलिस्ट ने उनका जवाब दिया।