मोहम्मद आरिफ नगरामी

मुसलमानों की आबादी के तअल्लुक से वक्त वक्त पर एक फितना खडा किया जाता रहा है कि मुसलमान चार चार शादियां रचा कर दर्जनों की तादाद में लडके पैदा करते हैं। फिरका परस्त ताकतेें तो हिन्दुओं को खौफजदा करने के लिये यह बताते हैं कि अगर इसी तरह मुसलमान बडी तादाद मेे बच्चे पैदा करते रहेंगे तो बहुत जल्द एक दिन ऐसा आ जायेगा कि मुसलमान अकसरियत मेें आ जायेगे और एक बार फिर हम उनके अधीन हो जायेंगे मगर मुसलमानों के खेलाफ इस तरह का बे बुनियाद प्रोपेगंडा करने वाली फिरका परस्त ताकतों को मालूम होना चाहिये कि एक हालिया सर्वे रिपोर्ट मेें बताया गया है कि मुल्क में आबादी की दर घट रही है और ज्यादातर मुस्लिम आबादी वाले सूबों मेें भी उनकी प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है।

इन सूबों मेें खास तौर पर आसाम का भी जिक्र था लेकिन आसाम के वजीरे आला इस बात पर अड़े हैं कि वह हर सूरत में अपने सूबे में मुस्लिम आबादी कन्ट्रोल करके ही दम लेंगे चाहे उसके लिये उन्हें जंगी पैमाने पर ही काम क्यों न करना पडे मगर उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि जिन गैर मुस्लिम इलाकों में आबादी बढ रही है वहां वह कौन सी फौज तैनात करेंगें। मालूम रहे कि आसाम के वजीरे आला हेमेेंन्त बिसवा सर्मा ने जब से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब से वह हर रोज कोई न कोई ऐसा शोशा छोडते हैं कि उनकी अक्ल पर मातम करने को जी चाहता है।

यह बात तो बिलकुल साफ़ है कि उनके दिल व दिमाग में मुसलमानों के खिलाफ दुर्भावना भरी हुयी है और वह इस दुर्भावना को छिपाने की कोशिश भी नहीं करते है। यह सिलसिला उस वक्त से जारी है जब वह बीजेपी की पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री थे और उस वक्त उन्हेांने अपने दिल्ली और नागपुर मेें बैठे आकाओं को खुश करने के लिए सरकारी ग्रांट वाले मदरसों मेें दीनी तालीम को खत्म करके वहां आधुनिक शिक्षा शुरू करने का कदम उठाया इसके एलावा भी उन्हेांने आसाम में मुसलमानों के खेलाफ कई क़दम उठाये और सी.ए.ए. मामले मेें तो वह मुसलमानों को दरबदर करने पर तुल गए थे और यही वजह है कि वह आज भी आसाम के मुसलमानों को ‘‘शरणार्थी ‘‘ कह कर सम्बोधित करते है।

कई बार आपने लोगों को यह कहते हुये सुना होगा कि मुल्क में मुसलमानों की आबादी बडी तेजी के साथ बढ रही है। वह सिर्फ इतना ही नहीं कहते बल्कि मुसलमानों की बढती हुई आबादी को मुल्क और समाज के खेलाफ एक साजिश भी बताते है। उनका कहना है कि मुसलमानों की बढती हुयी आबादी से मुल्क के संसाधनों पर बडा बोझ बढ रहा है। इन सब बातों और बयानों के बीच हरियाणा की हिन्दू फिरकापरस्त तन्जीम ‘करणी सेना‘ ने हुकूमत से मुताल्बा किया है कि मुसलमानों को आबादी को कन्ट्रोल करने के लिये एक सख्त कानून लायें। करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुसलमानों के खेलाफ विषवमन करते हुये कहा है कि ‘हम दो हमारे दो‘ तो उनके दस-दस, बारह-बारह क्यों?

इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार आबादी कन्ट्रोल करने से मुतअल्लिक एक कानून लाना चाहती है जहां भगवा हुकूमत पापुलेशन कन्ट्रोल से मुतअल्लिक बिल लाने की बात कर रही है वहीं उसकी मुखालिफत हिन्दू शिद्दत पसन्द तनजीमें कर रही हैं। विश्व हिन्दू परिषद ने उत्तर प्रदेश सरकार के जरिये प्रस्तावित आबादी बिल की आलोचना करते हये कहा है कि इस बिल से विभिन्न समुदायों के बीच आबादी का संतुलन बिगड़ेगा ।

सरकार भी जानती है कि पापुलेशन बिल को कानून बनाने से बहुत सारी समस्याएं खड़ी होंगी मगर फिर भी ऐसे फितने को लाकर भगवा हुकूमत समाज में तनाव पैदा करना चाहती है। वह लोगों को धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर बांटना चाहती है। इस बिल का मकसद बहुमत के दिलों मेें अल्पमतों के खेलाफ खौफ और नफरत भर देना है। ऐसा करके रोजी रोटी और मकान के सवालों को दबा कर रखना चाहती है।

गौर करने की बात है कि इस वक्त मुल्क में बेरोजगारी सबसे बडा मसला है, मगर हमारे सियासतदान और गोदी मीडिया बढती आबादी को सबसे बडा मसला बना कर पेश करने पर आमादा है। आज कोरोना काल मेें लाखों नवजवानों की नौकरियां ख्त्म हो गयी है और जिन लोगों की नौकरी है उनमें बहुत लोगों की सैलरी आधी कर दी गयी है। यह बात भी याद रखने की है कि भगवा हुकूमत सिर्फ मुसलमानों के ही खेलाफ नहीं है, हां यह जरूर है कि उसकी सियासी मुहिम पहली नजर में मुस्लिम मुखालिफ दिखती है मगर हमें चीजों को बड़े परिदृश्य में देखना चाहिये। पूरी कोशिश होना चाहिये कि इशूज को हिन्दू बनाम मुसलमान के दृष्टिकोण से न देखा जाये अगर फिरकापरस्त यह अफवाह फैला रहे हैं कि मुसलमानां की आबादी बढ रही है और वह मुल्क के लिए खतरा बन रहे है तो सेक्यूलर ताकतों का जवाब यह नहीं होना चाहिये कि मुसलमानों तो बच्चा पैदा करेेंगेें और ऐसा करने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता। ऐसे जवाब देने और उनके साथ कीचड उछालने में कोई फायदा नहीं मिलेगा।

मालूम रहे कि आबादी बढने का रिश्ता धर्म और मजहब से नहीं होता है बल्कि गरीबी, अशिक्षा, संसाधनों के अभाव और ऐसी ही दूसरी चीजों से है। मिसाल के तौर पर अगर आप कशमीर और उत्तर भारत को ले लें तो वहां आबादी दक्षिण के राज्यों के मुकाबले में काफी सुस्त रफ्तारी से बढी है और क़ुरआन की बात भी करें तो वहां नसबन्दी को जरूर मन किया गया है मगर फेमिली प्लानिंग की दुसरे तरीकों को अपनाने से मना नहीं किया गया है। मिसाल के तौर पर दो बच्चों के दरमियान एक अच्छा फ़ासला रखने पर भी जोर दिया गया है। मुस्लिम आबादी वाले मुल्कों में भी फेमिली प्लानिंग अपनायी गयी है।

दूसरी बात यह है कि जब एक हजार मर्दों के मुकाबले में सिर्फ 924 ख्वातीन हैं तो एक मुसलमान चार शादी कैसे कर सकता है? यह बात भी सच है कि एक से ज्यादा बीवी रखने का चलन आदिवासी, बौद्ध, जैन और हिन्दुओं में मुसलमानों से कहीं ज्यादा है और यह बात 1974 की एक सरकारी रिपोर्ट में दर्ज है इसके अलावा यह बात भी बिल्कुल सच है कि मुसलमानों में आबादी का ग्रोथ रेट पिछले कई दशकों से काफी कम हुआ है जहां साल 2001 में यह 29 फीसद था और वह साल 2011 में घट कर 24 फीसद हो गया और उम्मीद है कि मुसलमानों की आबादी का ग्रोथ रेट आने वाले दिनों में हिन्दुओं के बराबर हो जायेगा। जरूरत इस बात की है कि फैक्ट से बात की जाये और भावनाओं में न बहा जाय।