• डॉ0 ओबैदुल्लाह चौधरी, डॉ0 अकबर अली बिलगिरामी “प्रोफेसर महमूद दलाही साहित्य पुरस्कार” से सम्मानित

लखनऊ: उर्दू के प्रख्यात व प्रतिष्ठित शोधकर्ता व समालोचक महमूद दलाही की 7 वीं जयंती के अवसर पर हरदोई रोड के अल्मास बाग में डॉ सलीम अहमद के आवास पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता उर्दू मासिक पत्रिका के पूर्व संपादक डॉक्टर वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने की और गोरखपुर से पधारे फिक्शन लेखक डॉक्टर ओबैदुल्ला चौधरी और दैनिक आग के डॉ0 अकबर अली बिलगिरामी विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए. कार्यक्रम में डॉक्टर ओबैदुल्ला चौधरी को “प्रोफेसर महमूद इलाही साहित्य पुरस्कार” और डॉ0 अकबर अली बिलगिरामी को “प्रोफेसर महमूद इलाही साहित्यिक और पत्रकारिता पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर डॉक्टर वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में न सिर्फ प्रोफ़ेसर महमूद इलाही के व्यक्तित्व और उनकी साहित्यिक सेवाओं के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला, बल्कि उनकी उर्दू भाषा के प्रचार के लिए भी उठाये गए क़दमों को शिक्षाप्रद बताया। डॉक्टर रिज़वी ने कहा कि उर्दू विभाग में उनके व्याख्यान कुछ इस तरह के होते थे कि सबकुछ ज़हन में अच्छी तरह बस जाता था। वह अक्सर कहा करते थे कि लेखन शैली सर सैयद की तरह सरल होनी चाहिए। भारी भरकम शब्दों और वाक्यांशों से बचें । डॉक्टर वज़ाहत रिज़वी ने कहा कि उन्हें प्रोफ़ेसर महमूद इलाही का शिष्य होने पर गर्व है। अपने शोध का उल्लेख करते हुए डॉ० रिज़वी ने कहा कि मेरे सम्मानित गुरु की इस बात ने मुझे मजबूर कर दिया कि जिसके कारण मेरा शोध “उर्दू नॉवेलेट का तहक़ीक़ी और तनक़ीदी तजज़िया” प्रकाशित हुआ । प्रोफ़ेसर साहब ने कहा थे कि ” वज़ाहत हुसैन यह तुम्हारी वह औलाद है जो हमेशा ज़िंदा रहेगी”।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि डॉ0 ओबैदुल्ला चौधरी ने महमूद इलाही साहिब की साहित्यिक सेवाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। वह उर्दू के सच्चा उस्ताद थे । उन्हें प्रसिद्धि से नहीं काम से प्यारथा। प्रो महमूद इलाही साहब ने प्रचार के बिना चुपचाप उर्दू की सेवा की। गोरखपुर विश्वविद्यालय और पूर्वांचल में उर्दू का विकास और प्रचार उनके प्रयासों का परिणाम है।

कार्यक्रम में डॉ0 अकबर अली ने कहा कि उन्हें प्रो महमूद इलाही साहब का शिष्य होने पर गर्व है। प्रोफ़ेसर महमूद दलाही एक चलता फिरता स्कूल थे । वह अपने छात्रों के दिलों में शिक्षा का प्रकाश प्रज्ज्वलित करना चाहते थे, चाहे वह विश्वविद्यालय की कक्षा हो या विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कॉलोनी में उनका आधिकारिक निवास, या फिर कहीं रस्ते में जा रहे हों, हर जगह उनकी बातचीत का केंद्र उर्दू भाषा और साहित्य हुआ करता था । मुझे व्यक्तिगत रूप से उन्हें पढ़ने और समझने का अधिक अवसर तो नहीं मिला लेकिन मुझे जो मिला है वह पूंजी से कम नहीं है।

कार्यक्रम के संयोजक, डॉ0 सलीम अहमद ने संक्षिप्त रूप से प्रोफ़ेसर महमूद इलाही की साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डाला और कहा कि वह एक शिक्षक होने के साथ-साथ शिक्षक को गढ़ने वाले भी थे। उनकी साहित्यिक सेवाओं पर हमें और काम करने की जरूरत है।

इस कार्यक्रम में एक शेअरी नशिस्त का आयोजन भी किया गया है जिसमें अहसान काज़मी , डॉक्टर मख्मूर काकोरवी, मोहम्मद उस्मान आज़म, मुईद रहबर,
सूफी बस्तवी, नसीर अहमद नसीर, असीम मलीहाबादी, मोहसिन अज़ीम अंसारी, डॉ0 मंसूर हसन खान, आशिक़ राय बरेलवी, आमिर मुख़्तार और खलील अख्तर ने अपना कलाम पेश किया