लखनऊ ब्यूरो
भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा को जन आंदोलन की ऐतिहासिक जीत बताया है। पार्टी ने कहा है कि इस जीत के साथ एक बार फिर यह पुष्ट हुआ है कि संघर्ष करने वालों की कभी हार नहीं होती, जबकि तानाशाही की हार निश्चित है।

राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि अभी कहानी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि एमएसपी को कानूनी गारंटी देने और लखीमपुर किसान हत्याकांड के गुनाहगार अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से हटाने की किसान आंदोलन की मांग पर पीएम ने स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा है। लिहाजा मांगों के पूरा होने और घोषणा को अमली जामा पहनाने तक आंदोलन जारी रहेगा।

माले नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री की मजबूरियों को समझा जा सकता है। पंजाब सहित उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव सिर पर है और दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। ऐसे में अगर लखनऊ की कुर्सी डगमगाने लगी, तो दिल्ली का सिंहासन हिलने में देर नहीं लगेगी। यह किसान आंदोलन और लोकतंत्र का दबाव ही है, जिसने मोदी सरकार को कदम पीछे खींचने के लिए बाध्य किया है। इस जीत से जन आंदोलनों में जनता का विश्वास और मजबूत हुआ है।

कामरेड सुधाकर ने कहा कि अभी संघर्ष के कुछ और मोर्चे फतह होने बाकी हैं, जैसे कि लेबर कोड बिल, नागरिकता संशोधन कानून, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम (यूएपीए) व राजद्रोह कानून और विमुद्रीकरण (डिमोनेटाइजेशन) यानी राष्ट्र की संपत्तियों को बेचने जैसे फैसले। ये सभी मोर्चे भी तीन कृषि कानूनों की तरह मोदी सरकार ने ही खुलवाए हैं। माले नेता ने मजदूरों, नागरिकों और लोकतंत्र में विश्वास करने वाली ताकतों का आह्वान किया कि वे जन आंदोलन के आवेग का एक धक्का और देने की तैयारी करें, जिससे कि ये जनविरोधी फैसले और काले कानून भी सरकार वापस लेने को बाध्य हो जाये।