ज़ीनत शम्स

भले ही आज सुबह सुबह देश के नाम सम्बोधन में देश के प्रधानमंत्री ने भरे मन से अपने प्रिय तीन विवादित कृषि कानून वापस लेने का एलान कर दिया मगर पिछले एक वर्ष से चल रहे इस आंदोलन को लेकर भाजपा नेताओं जिसमें प्रधानमंत्री खुद भी शामिल हैं, न जाने क्या क्या कहा और आंदोलनरत किसानों को कैसी कैसी उपाधियाँ दीं, आइये ज़रा उसके बारे में जानते हैं. यहाँ पर हम सिर्फ उन कोटेशन का उल्लेख कर रहे हैं जो भाजपा के बड़े नेताओं ने कहे

30 जनवरी 2021 को पीएम मोदी ने संसद सत्र में किसान आंदोलन पर निशाना साधते हुए कहा था इसमें आंदोलनजीवी परजीवी की तरह होते हैं।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि भीड़ इकट्ठा होने से कानून वापस नहीं होते हैं।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा किसान आंदोलन माओवादी विचारधारा से प्रेरित लोगों के हाथों में चला गया है।

केंद्रीय मंत्री वी के सिंह ने कहा कि तस्वीरों में कई लोग किसान नहीं लग रहे हैं।

वहीं केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि आंदोलन के पीछे पाकिस्तान और चीन का हाथ।

दिल्ली से बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि आंदोलनकारी टुकड़े-टुकड़े गैंग के हैं।

आंदोलन में किसानों की मौत पर बीजेपी सांसद रतनलाल ने कहा कि इन किसानों को यहीं मरना था।

हरियाणा के मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि आंदोलन के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।

कर्नाटक की बीजेपी सरकार के कृषि मंत्री बीसी पाटिल ने कहा कि आत्महत्या करने वाले किसानों को कायर बताया था।

पीएम मोदी द्वारा विवादित कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब पता नहीं इन सब नेताओं के क्या विचार हैं, क्या यह सब प्रधानमंत्री के फैसले सहमत हैं और अगर सहमत हैं तो फिर क्या पहले वह गलत थे. प्रधानमंत्री मोदी ने इन सभी को धर्म संकट में डाल दिया है. धर्म संकट में तो मीडिया भी पड़ गया है. कल रात तक तीनों कृषि कानूनों के फायदे गिनाने वाले टीवी ऐंकरों को अब समझ में नहीं आ रहा है कि क्या अब वह उन तीनों कृषि कानूनों की बुराई करें जिनकी अबतक अच्छाई बयान करते आ रहे हैं.

सबसे ज़्यादा मुश्किल अंध भक्त समर्थकों के सामने आ गयी है कि वह अपने नेता के फैसले का समर्थन करें या विरोध। कांग्रेस पार्टी तो कल इन विवादित कृषि कानूनों की वापसी पर पूरे देश में किसान विजय दिवस मनाने जा रही है, दूसरी विपक्षी पार्टियां भी कुछ ऐसा करने की सोच रही होंगी मगर भाजपा समर्थक अब क्या करेंगे? क्या विपक्ष को जश्न मनाते हुए देखते रहेंगे, वह जश्न जिसको मनाने का मौक़ा उनके सबसे बड़े नेता ने उन्हें दिया। कुछ भाजपा समर्थक मोदी जी के इस यू टर्न को मास्टर स्ट्रोक कह रहे हैं. यह तो वही बात हुई कि दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है. वरना अपने जिन उद्योगपति दोस्तों के लिए प्रधानमंत्री पिछले एक वर्ष से दुनिया भर की बातें सुन रहे हैं, आरोपों को बर्दाश्त कर रहे हैं, उसपर बैकफुट पर आना मास्टरस्ट्रोक कैसे हो सकता है.

क्या लोगों को मालूम नहीं कि यह फैसला किसानों के हितों के लिए नहीं बल्कि चुनाव के हितों के लिए लिया गया है. प्रधानमंत्री या उनकी पार्टी कुछ भी कहे मगर यह बात बच्चा बच्चा जानता है कि इस फैसले के पीछे प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी है. पिछले सात सालों में पीएम मोदी की सिर्फ एक मजबूरी लोगों को पता चली, वह है चुनाव. चुनाव उनका जीवन है, उनके दिल की धड़कन है. सोते जागते उनके सामने हमेशा आने वाला चुनाव ही होता है.

अगर किसी राजा को जीत का चस्का लग जाय तो वह हार की कल्पना से भी डरता है. उस हार को टालने के लिए वह कोई भी रणनीति बनाने को तैयार रहता है भले ही उस रणनीति से उसकी आत्मा को चोट पहुँच रही हो, उसका व्यक्तित्व घायल हो रहा हो. कृषि कानून की वापसी भी कुछ उसी तरह की रणनीति है. मगर किसानों के बारे में जो अपमानित टिप्पणियां प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेताओं द्वारा की जा चुकी हैं उनकी चर्चा तो आने वाले चुनाव में विपक्ष बार बार करेगा ही क्योंकि जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ पाय. बहरहाल प्रधानमंत्री के उन आन्दोलनजीवी परजीवियों के लिए आज जश्न का दिन है.