टीम इंस्टेंटखबर
मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में जमीयत की कार्य समिति की बैठक में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, हिजाब से जुड़े हालिया विवाद और अन्य सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की गई है। इसके साथ आधुनिक शिक्षा, लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल और कॉलेज की स्थापना और समाज सुधार के तरीकों अथवा कुछ अन्य विषयों पर भी गहरी चर्चा की गई है। संगठन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, इस बैठक में अरशद मदनी ने कहा, “धर्म के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा स्वीकार्य नहीं हो सकती।”

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शनिवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लामी सिद्धांतों एवं शरीयत के तहत अनिवार्य है। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे में इसे रोकना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।

मदनी ने आगे कहा, “धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वालों का हमें विरोध करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “देश की वर्तमान स्थिति निस्संदेह निराशाजनक है, लेकिन हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस देश में बड़ी संख्या में न्यायप्रिय लोगों हैं जो सांप्रदायिकता, धार्मिक अतिवाद और अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अन्याय के खि़लाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं।” हिजाब से जुड़े विवाद का उल्लेख करते हुए मदनी ने कहा, “कुछ लोग गलत धारणा बना रहे हैं कि इस्लाम में हिजाब की अनिवार्यता नहीं है और कुरान में हिजाब का जिक्र नहीं है।”

मौलाना अरशद मदनी ने इस पर बोलते हुए कहा, “कुरान और हदीस में हिजाब पर इस्लामी दिशानिर्देश हैं कि शरीयत के अनुसार हिजाब अनिवार्य है।’’ उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हासिल है। मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकना अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।’’