• आरबीएसके टीम की मदद से कानपुर में हुई मुफ्त सर्जरी
  • राठ की कीर्ति भी बोलने और सुनने में धीरे-धीरे हो रही सक्षम

हमीरपुर ब्यूरो
पांच साल के होने जा रहे अनमोल के जन्म पर घर खुशियों से भर गया था, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा वैसे-वैसे घर वालों को एहसास हुआ कि अनमोल बोल और सुन नहीं सकता। डॉक्टरों ने भी जब इसकी पुष्टि कर दी परिजन गहरे सदमें में चले गए। कुछ समय बाद पता चला कि इसका इलाज संभव है तो घर वालों को बड़ी राहत मिली। इसी से मिलती-जुलती कहानी कीर्ति मिश्रा की भी है।

शहर के कुछेछा निवासी विनोद कुमार पेशे से ड्राइवर हैं, उनके दो पुत्रों में अनमोल सबसे बड़ा है, जब ढाई साल का हुआ तो परिजनों को इस बात का एहसास हुआ कि अनमोल सुन नहीं पाता। इसकी वजह से बोलने में भी अक्षम है। यह कैसे हुआ, किसी को कुछ पता नहीं था, लेकिन इस दुख ने परिजनों की परेशानी बढ़ा दी। डॉक्टरों ने भी अनमोल के मूकबधिर होने की पुष्टि कर दी। इसी बीच राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के माध्यम से उसके उपचार का रास्ता भी निकल आया। विनोद ने बताया कि दिसंबर 2020 में अनमोल की कानपुर में सर्जरी हुई। लगातार वह उसे कानपुर ले जाकर डॉक्टरों को दिखाते रहे। स्पीच थैरिपी भी हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि अनमोल आज सुनने लगा है और धीरे-धीरे मुंह से बोल भी फूटने लगे हैं, परिजन इससे बेहद खुश हैं।
इसी तरह राठ के चौपरा रोड मुगलपुरा निवासी अनूप कुमार मिश्रा की पुत्री कीर्ति भी जन्म से मूकबधिर थी। पिता बताते हैं कि ढाई साल गुजरने के बाद इस बात का पता चला। जिसके बाद राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य विभाग की टीम की मदद से मार्च 2020 में कीर्ति की सर्जरी हुई और आज वो धीरे-धीरे बोलने और सुनने लगी है।

प्रति हजार नवजात में एक होता है मूकबधिर
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ.आरके यादव ने बताया कि आरबीएसके के द्वारा जन्मजात मूकबधिर बच्चों का नि:शुल्क उपचार कराया जाता है। मूकबधिर चार बच्चों की सर्जरी हो चुकी है। उसके नतीजे अच्छे आए हैं। इन सभी बच्चों में कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी की गई है। उन्होंने बताया कि प्रति हजार में एक नवजात इस बीमारी का शिकार होता है। समय पर पहचान और तुरंत कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही इलाज है। कानपुर के डॉ.एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी (कान, नाक एवं गला) फाउंडेशन और केजीएमयू लखनऊ में इसका नि:शुल्क उपचार होता है। उन्होंने बताया कि यदि छह माह के अंदर ऐसे मूक-बधिर बच्चे की कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री हो जाए, तो बेहद शानदार नतीजे आते हैं। देरी की सूरत में पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर छह साल की उम्र के बाद सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास हो पाता है। इसलिए जितनी जल्दी कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही सकारात्मक होंगे।

क्या है कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी
आरबीएसके टीम मौदहा के डॉ.शार्दुल शुक्ला ने बताया कि कॉकलियर एक बेहद संवेदनशील यंत्र (डिवाइस) होता है, जिसको ऑपरेशन द्वारा लगाया जाता है। मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। ऑपरेशन की सफलता डॉक्टर, अस्पताल की सुविधाओं तथा इम्प्लांट करने की सर्जिकल तकनीक पर ज्यादा निर्भर करती है।

2020 में चार बच्चों की हुई सर्जरी
आरबीएसके के डीईआईसी मैनेजर गौरीश राज पाल ने बताया कि अनमोल, कीर्ति के अलावा मौदहा कोतवाली के गहरौली खुर्द गांव निवासी ब्रजेश कुमार की पुत्री सुप्रिया, मौदहा तहसील के सिचौली गांव निवासी अजीत सिंह के पुत्र अंश की भी 2020 में सर्जरी कराई गई है। सुप्रिया की सर्जरी 2018 में कराई गई थी। उन्होंने बताया कि फरवरी 2020 में टीबी अस्पताल सभागार कैंप लगाकर बच्चों की जांच हुई थी, जिसमें 54 बच्चे मूकबधिर मिले थे, इनमें 6 बच्चे ऐसे थे, जिनकी कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी हो सकती थी। इनमें तीन बच्चों सहित कुल चार बच्चों की वर्ष 2020 में अलग-अलग तिथियों में सर्जरी कराई गई। उन्होंने बताया कि अगर किसी बच्चे में ऐसे लक्षण हैं जो उसके परिजनों को तत्काल अपने निकटवर्ती सरकारी अस्पताल में संपर्क करना चाहिए। आरबीएसके की टीम मदद करती है और पीड़ित बच्चों का नि:शुल्क उपचार कराया जाता है।