राजेश सचान, संयोजक युवा मंच

उत्तर प्रदेश में तकनीकी शिक्षण संस्थानों व विभिन्न विभागों के तकनीकी संवर्ग में बहुतायत पद रिक्त पड़े हुए हैं। कुछेक उदाहरण से स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश के राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में स्वीकृत 13704 पदों में से 8734 पद रिक्त पड़े हुए हैं। प्रयागराज के पाच राजकीय पालीटेक्निक आईईआरटी, एनआरपीटीआई, हंडिया पालीटेक्निक, मेजा पालीटेक्निक और तेलियरगंज महिला पालीटेक्निक में कुल स्वीकृत 291 शिक्षक पदों में मात्र 65 शिक्षक नियुक्त हैं। कमोबेश इसी तरह की स्थिति इंजीनियरिंग कॉलेज और पालीटेक्निक कालेजों की है। दरअसल गत दो दशक में राजकीय व मैनेजमेंट दोनों प्रकार के इंजीनियरिंग कॉलेज, पालीटेक्निक व आईटीआई संस्थानों में छात्रों की संख्या में इजाफा हुआ है लेकिन फेकल्टी मेंबर्स में छात्रों की संख्या के अनुपात में स्वीकृत पदों में बढ़ोत्तरी तो नहीं ही की गई लेकिन जो स्वीकृत पद थे उसमें भी आज 70 फीसद तक रिक्त होने की सूचना मिल रही है। पालीटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज में रिक्त शिक्षक पदों की घोषणा की गई लेकिन आज तक इसमें रत्ती भर प्रगति नहीं है। हाल यह है कि राजकीय पालीटेक्निक कालेजों में 3 मई 2018 से ही नियुक्तियों पर रोक लगी हुई है। लिहाजा जो प्रवक्ता के 2400 पदों पर भर्ती की घोषणा की गई थी वो महज प्रोपेगैंडा तक ही सीमित रही। इसी तरह का हश्र इंजीनियरिंग कॉलेज शिक्षक भर्ती में हुआ।

दरअसल प्रदेश के बिजली, सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, जल निगम, नगर निगम, परिवहन समेत सभी विभागों में बड़े पैमाने पर रिक्त पद हैं जिसमें बड़ी संख्या तकनीकी संवर्ग की भी है। उदाहरण जल निगम का ले सकते हैं जिसमें 13317 स्वीकृत पदों में 4300 पद रिक्त हैं और अगले 5 साल में 2045 कर्मचारियों का रिटायरमेंट है। इन रिक्त पदों में अभियंता व अवर अभियंता के 740 पद भी शामिल हैं। दरअसल तकनीकी संवर्ग से जुड़े काम आम तौर पर ठेका पर कराये जा रहे हैं या आउटसोर्सिंग किया जा रहा है। हाल यह है कि क्लर्क से लेकर कंप्यूटर आपरेटर, तकनीशियन, अवर अभियंता व अभियंता को संविदा पर रखा जा रहा है। प्रदेश के मैनेजमेंट के स्कूलों में कंप्यूटर विषय के अध्यापन कार्य के लिए कंप्यूटर शिक्षक पदों का आज तक सृजन नहीं किया गया और राजकीय विद्यालयों में पदों का सृजन कर लिया गया लेकिन एक फीसद पदों को भी नहीं भरा गया है।

आज देश में तकनीकी दक्षता हासिल युवाओं का बुरा हाल है। 2019 में जारी All India Council for Technical Education (AICTE) की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल लगभग 8 लाख छात्र इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होते हैं, पर उनमें सिर्फ 40 फीसदी को ही नौकरी मिल पाती है। बेरोजगारी का आलम यह है कि देश भर में इंजीनियरिंग सहित कई तकनीकी कोर्सों में लाखों सीटें खाली रहने लगी थी, जिसका आंकड़ा साल दर साल बढ़ता गया। लेकिन केंद्र सरकार ने इतने संवेदनशील मुद्दे पर कुछ नहीं किया।

रोजगार का आकलन करने वाली एक अन्य महत्वपूर्ण कंपनी “एस्पायरिंग माइंड्स” की रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय इंजीनियर बेरोजगार हैं। डिप्लोमा कोर्स व आईटीआई करने वाले युवाओं का हाल इससे भी बुरा है। निजी कंपनियों को जब बेहद कम वेतन(15-20 हजार रुपये) पर बीटेक डिग्री वाले युवा उपलब्ध हैं तो डिप्लोमा व आईटीआई छात्रों के अवसर और खत्म हो गए हैं। मोदी सरकार की अपने पहले टर्म में स्टार्टअप, स्टैण्ड अप, मेक इन इंडिया, कौशल विकास जैसी बहुप्रचारित व महत्वाकांक्षी योजनाओं का बिना किसी विजन के बुरा हश्र होना ही था। दरअसल जो कारपोरेट वित्तीय पूंजी के हित का जो विनाशकारी रास्ते में मोदी सरकार बढ़ रही है उससे देश में बेरोजगारी, मंहगाई का बढ़ना तय है। इन्हीं नीतियों से किसानों की भी तबाही हो रही है, कारोबार, व्यापार सब कुछ चौपट हो रहा है। ऐसी स्थिति युवाओं को रोजगार का अधिकार हासिल करने के लिए देशव्यापी स्तर पर संगठित होने की जरूरत है। इस दिशा में पहल भी हो रही है और इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के युवाओं ने 5 जून को बेरोजगार दिवस का ऐलान किया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार 4 साल तक महज प्रोपैगैंडा करती रही और प्रदेश में बेकारी की स्थिति भयावह होती चली गई। अब प्रदेश में रोजगार सृजन के कोई आसार भी नहीं है। विधानसभा चुनाव भी 8-10 महीने में हो जायेंगे। उत्तर प्रदेश स्थिति बेकारी के मामले में बेहद भयावह है और भविष्य में बेइंतहा बेरोजगारी के बढ़ने से युवाओं की परेशानियों में इजाफा होगा यह एक सच्चाई है। भाजपा की योगी सरकार इस पर कतई गंभीर नहीं है।

उपरोक्त परिस्थितियों में नौजवानों को क्या करना चाहिए, उनके क्या सुझाव व राय है और रोजगार का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति और उत्तर प्रदेश का चुनावी मुद्दा बने, जन मुद्दा बने इस पर साथी लोगों के विचार आमंत्रित हैं।