मोहम्मद आरिफ़ नगरामी

मोहम्मद आरिफ़ नगरामी


इस्लाम एक फित्री मजहब है जिस ने इन्सान की हर जरूरत को हर मौके पर पूरा किया उसकी तालीम दी है एक तरफ एहकामात खुदावंदी इबादतें है नमाज रोजा मालदारों पर जकात हज और सबके लिए तिलावते जिक्र तजकिया दावत तब्लीग है वहां आपसी हुकूक की अदायगी एसियार हमदर्दी वफा मोहब्बत और इताअत व फरमाबरदारी करना अपने बड़ों का उसके साथ शफकत व प्यार अपने छोटो से उसको मोहब्बत भी सिखाई है खुशी के मौके पर इन्सान क्या करें। खुशी कैसे मनायें? इस का तरीका क्या है उसकी रहबरी की है। दुनिया की आम कौमें और तमाम मजहब अपने अपने तर्ज से ईद मनाते है। त्यौहार मनाते है जहां हदूद को छोड़ दिया जाता है। हुकूक को तोड़ दिया जाता है। नाजायज भी उस दिन वहां जायज हो जाता है। शराब जुवां खेलों जानवरों के खेल तमाशें देखो कहीं कहीं बटेर लड़ायें जा रहे है। कहीं बैलों के जोर आवरी है तो कहीं खुद जानवरों का लबादा ओढ़ कर कोई लंगूर कोई शेर कोई चीता कोई लौमड़ी और कोई हाथी बन जाता है। यह ईद ऐसी है कि लड़ाईयां हो रही है इज्जतें पामाल हो रही ह। आदमी नालो में मोहरियो में गिर रहे है। जानवर उनको जख्मी कर रहे है। आग के शोल भड़क कर आदिमयों की जाने मुफ्त में जा रही है। धमाकों शोर गड़गब हंगामों के जरिये कान फटे जा रहे है।

मगर इस्लाम ने कहा कि खुशी मनाओं जरूर मगर हुदूद को न तोड़ों इबादत को न छोड़ों हर दिन पांच वक्त की नमाज है तो ईद के दिन छह वक्त की नमाज है। न शराब हलाल है न जुवा हलाल न अपने पैसों को आगे के शोलो में डाल कर उड़ा देना हलाला। न असराफ करो न बुखल बन जाओं बल्कि ईद वकार के साथ इबादत के साथ इताअत के साथ असार हमदर्दी का पीकर बन कर मोहम्मब व मुर्रवत का नमूना बन कर एखलाक का एक मुजस्सिमा बन कर दिली खुशी व मुसर्रत के साथ का तसव्वर करते हुए हकीकी ईद कौन सी है और उकसे कैसे मनायें जायें? ईद के दिन मसलमान सबसे अव्वल जो अमल करता है। वह गुसल है यानी पाक व साफ होकर खुशबू से मोअत्तर लिबास पहन कर आरास्ता होता है। अब लिबास में अफरात व तफरीत नही बल्कि अपनी हैसियत के मवाकिफ नया हो तो दुनियान वरना पाक व साफ लिबास जो मैयसिर है उसको पहन कर रास्ता में अल्लाह का जिक्र करते उसकी बुराई और हमद करते हुए चलों इस तरह कि रासते चलते हुए न शोर गुल हो बल्कि वकार और एखलाक का पीकर बन कर रास्ता में अल्लाह का जिक्र करते हुए उसकी बड़ाई और अहमद करते हुए चलों अब हम ईदगाह पहुच गये तो नमाज सफों में तरतीब के साथ बैठना है वहां भी अल्लाह को याद करते हुए जिक्र करेंगे। हां एक बात याद रखनी है और जरूर याद रखी है कि ईद गाह पहुंचने से पहले सदका फित्रा अदा कर दिया जायें ताकि उस दिन कोई यतीम बेवा मिसकीन गरीब परेशान हाल बीमार मजबूर व लाचार ईद मनाने से न रह जायें किसी यतीम की आंख से आंसू न गिर कोई बेवा हाये न करें कोई गरीब परेशान हाल गमजदा न हो कोई मजबूर लाचार रंजीदा न हो उस नि यह काम ईदगाह जाने से पहले बहुत ही एतिहात से अदा करने का है अल्लाह हमारे हाल पर रहम फरमाये हमे अपने खानदान के गरीब यतीम परेशान लोगो तक का पता नही।

इमाम आजम की ईद कैसी होती थीः- हजरत इमाम आजम अबू हनीफा जब ईद की नमाज अदा करने निकलते तो कैसे निकलते काश मै औ आप जान लेते हजरत इमाम के मनाकब व मुर्तबा की बात तो किताबों में खूब मिलती है मगर शायद बहुत कम लोग इस बात से वाकिु है कि वह कितनें बड़ी सखी थें कूफा शहर में गुरबत थी जहां जहां गरीब बेवाओं मिसकीन रहा करते थे। हजरत उकसे वास उनक फहरिस्त नाम और पता के मोजूद थी हजरत का मामूल किसी को रोजाना किसी को हफ्ते वार किसी को माहाना और किसी को सालाना मदद करने का था।

दूसरा मामूल था कि ईद के दिन सारे ही गरीब मसाकीन और बेवाओ को कपड़ पहनाया करते थे गोया खुद उन को कपड़े सिलवा कर दिये जाते इस तरह कि हजारों लोगों को जोड़े पहनाते गोया ईद जहां अपने बच्चो बेवाओं रिश्तेदारों की होती वहां बेकस मजबूर लोग भी हजरत के साथ ईद में शरीक होते गोया हजरत इममा आजम उन सबके लिए खुशियों का मरकज बनते थे नमाज रोजा और सदका की दावत देना यकीनन आसान था मगर इस दावत को देते हुए उस पर अमल करना और अपने को बेगर्ज बेलौस एखलास के साथ खर्च करना बहुत मुश्किल काम है। यह असियार हमदर्दी की मिसालीे ंहमारे इस्लाम में खूब मिलती है।

हजरत जैनुल आबदीन का मका़मः

हजरत जैनुल आबदीन रोजाना लोगों के घरों में जो मसाकीन थे उनको उस तरह रात को छुप कर वक्त बदल बदल कर देते थें कि लेने वालों को पता भी न चलता था कि यह आखिर देने वाला कौन है।? सौ घरों में आप की मौत से फाका आया मरने के बाद गसाल ने देखा कि हजरत की पीठ पर निशानात बने हुए है रोजाना अनाज की बोनियां अपनी पीठ पर लेकर जाते कि लेने वाला मौत तक न जान सका कि फलां आदमी मद्द कर रहा है।

गर्ज ईदगाह जाने से पहले यह अमल करने के बाद ईदगाह पहुच कर नमाज की अदायगी फिर खुतबा का सुनना है जो दोनों जरूरी है बाज लोगों नमाज पढ़कर चल देते है। यह सही नही फिर दुआ करना उसके बाद लोगों से मुलाकातें जो ऐसा मंजर पेश करता है जिसका तसव्वर ही इन्सान दिमाग को मोअत्तर दिन को शामदा और रूह को तसकीन बख्शता है। वापसी फिर अल्लाह के जिक्र के साथ घरों तक रास्तों का मंजर ऐसा दिल फरेब दिल कश अदा पर बिहार जिसकेा हर मुसलमान साल भर याद करता रहता है।

घर आकर औरतो बच्चों से मुलाकाते माओं की दुवाओं बहनों की खुशिया बेवाओं का राहत बख्श बेटो की शोखियां गर्ज हर चीज एक नेमत खुदावंदी है गोया हर जगह हुदूद भी बाकी हुकूक एक और मंजर इंद का है हम तमाम अगर गौर करें तो हमें याद दिलाता है जो हमारे लिए लम्हा फिक्र यह है कि यह दिन उस ईद के जरिये हम तमाम मुसलमानों को हमारी हकीकी ईद यानी अल्लाह के दरबार में हाजरी को याद दिलाता है जिस तरह रमजान भर नेकियां करके रोजा रख कर नमाजें पढ़कर तिलावत करके तरावी पढ़कर सखावत व एसार कुरबानी जकात की अदायगी सदका फित्रा को अदा करे महमान नवाजी तहज्जुद पढ़ कर दिन रात यह सब कुछ यिका तो नतीजा मंे ईद और उसकी तमाम खुशियां है इस तरह तमाम मुसलमान इमान बना कर अमाल करे अपने आप को अल्लाह का सही बंदा और बदियां और हुजूर स.अ. का सही उम्मती बन कर इस्लाम व इमान शरीअत व सुन्नत के मवाकिफ अमाल व एखला को बना कर दुनिया से जायेंग वही हमारा हकीकी ईद का दिन हेागा हम यहां गुस्ल करके जाते है वहां याद कीजिए मौत पर गुस्ल दिया जाता है। जिन्दगी मे कपड़े पहन कर हम इत्र सुर्मा लगा कर खुद चल कर जाते है वह खुशी खुशी जाते है इस तरह मरने वाला नेक अमाल करके दुनिया से मलकुल मौत से अल्लह का सलमा सुन कर खुशी खुशी जाता है।

हजरत बिलाल रजि. इन्तेकाल के वक्तः-

जब हजरत बिलाल का इन्तेकाल हो रहा था तो उन्होने क्या किया? बेवी के जुमले पर बीवी रोकर कह रही थी हाय अफसोस शौहर खुदा हो रहे है। तो हजरत बिलाल ने कहा क्या खुशी का मौका है अभी मात्े के बाद हरजत मोहम्मद स.अ. से मुलाकात होगी सहाबा किराम से मुलाकात होगी। जन्नत और उस की नेमतों मिलेंगी यह माना कि आदमी मौत के वक्त उम्मीद और खौफ के दरमियान हो मगर जो अच्छे अमाल किये हो गये इमान वाले बन कर इमान के मवाफिक जिन्दगी गुजारेंगें तो उनके लिए वाकई यह एक खुशी का मौका है।

हुजूर अकसद स.अ. का इरशाद है कि मौत एक पल है जो हबीब को हबीब से मिला देता है। तो गोया बंदा को अल्लाह से मुलाकात के लिए मौत ही एक जरिया है मरने के बाद दुुुुुनिया वाले रो रो कर भेजते तो है मगर वहां क्या होगा। जाने के लिए फरिश्तों की घर से कब्र तक दो तरफ कतारें है कब्र जन्नत का बाग बनेगी। वहां पहले से गये मरहूम रिश्तेदार जन्नत आरास्ता हूरें और गुलामाने खिदमत के लिए तैयर पानी दूध शहद और पाकीजा शराब की नहरें बह रही हैं सूने चांदी के महालात मश्क व जाफरान अम्बर मोती की खुशबूयें फल फूल और परिन्दों से भरे बाग और इसी हजार खादिम एक वक्त पर सत्तर हजार किस्म के खाने हजरत आदम का कद हजरत यूसुफ का हुस्न हजरत ईसा की जवानी हरजत दाऊद अय्यूब का दिल हुजूर स.अ. के एखलाक फिर नबियों का पड़ोस सहाबा और औलिया अल्लाह से मुलाकातें और सबसे बढ़कर अल्लाह ताला का दीदार अल्लाह से कुरआन शरीफ सुनना और अल्लाह से बंदों का बातें करना गर्ज किन किन नेमतों का जिक्र कीजिए।

यह है हर मुसलमान को ईद का पैगाम हकीकी ईद इताअत के साथ मिलेगी। अल्लाह की खुशनूदी और हुजूर अकरम स.अ. की शरीअत पर जमाओ अमाल पर इस्तकामत एखलाक पर मदामत से मिलेगी।

ईद किस तरह मनायें?

इसलाम कोई खुश्क मजहब नही है और न जिस्मानी व जहनी जायज तफरीहात के खिलाफ है बल्कि जायज हद में रह कर हर काम कर सकते है। जिसमें आप का कल्ब रूह को तसकीन हासिल हो और जिस्म को तमानत का एहसास हो ईदुल फित्र का दिन साल में एक बार आता है शरीअत के एहकाम की पाबंदी करके उस दिन को यादगार बना सकते है खुशी व मुसर्रत का पूरा मुजाहेरा कर सकते है। अच्छा पहने अच्छा खायें अजीजो अकारिब और दोस्त व एहबाब से मिलें और उनकी खुशी व मुसर्रत का भी ख्याल रखें इसलिए उस दिन रोजा रखने को हराम करार दिया गया हे। नहायें धोये जो कपड़े अच्छो हो वह पहनें खुशबू लगायें।

हजरत आयशा रजि. फरमाती है कि ईद के दिन हमारे घर में कुछ बच्चियां बैठी थी एक जंग बाअस से मुतालिक अशाअर गा रही थी उसी दौरान हजरत अबूबकर सिददीक रजि. तशरीफ लायें और कहने लगे कि अल्लाह के रसूल के घर में यह गाया जा रहा है आप स.अ. हमारी तरफ करवट लिए लेटे थे आपने फरमाया अबू बकर इन्हे गाने दो हर कौम के लिए त्यौहार का एक दिन होता है आज हमारी ईद का दिन है। ईद का दिन अल्लाह और उसके रसूल की किसी भी नाफरमानी का काम अन्जाम देना दुनिया ईद की रूह के खिलाफ है आज हम ईद को आजादी का दिन समझ कर हर तरह की खुराफात में मुब्तिला हो जाते है। और रमजान में जो नमाजों की पाबंदी हो रही थी। बिल्कुल खत्म हो जाती है। ऐसा लगता है कि शैतान आजाद हो चुका है ईद के नाम पर हर काम किया जाता है। जिसकी आम दिनों में इजाजत नही होती चये जायेंगा ईद के दिन का ख्याल रखा जाये।

ईद का दिन खुशी का दिन होता है बसा औकात खुशी में आदमी अखरत से गाफिल हो जाता है। और जियारत कबूर से आखरत याद आ जाती है। इसलिए अगर कोई शख्स ईद के दिन कब्रस्तान जाये तो मुनासिब है कुछ मसाएका नही लेकिन अगर उस के इल्तेजाम से दूसरों को शुबा हो कि यह चीज लाजिम और जरूरी है तो न जाना चाहिए या कभी छोड़ देना चाहिए। बहरहाल हर काम हर मामले में शरीअत की पासदारी का ख्याल रखा जाये। ईद की रात भी मुकददस है और दिन भी मुबारक है ईद के दिन अल्लाह ताला की रहमत आईमा होती है। दुवाओं को कुबूलियत हासिल है रमजानुल मुबारक के एहकाम और दुआ वाली आयत का करीब करीब होना यके बाद दीगरें आना हिकमत से खाली नही है। इसलिए मालूम होता है कि दुआ करने वालो का यह मोमिनाना और आजिजाना हक बनता हैं कि अल्लाह ताला उनकी दुवाओं को शर्फ कूबूलियत अता फरमायें क्योंकि उन्होने दस्त दुआ दराज करने से कब्ल रमजान का पूरा महीना सियाम व कयाम में गुजारा है अल्लाह ताला अमल करने की तौफीक अता फरमायें (आमीन)