इस तरह दिल्ली का चिड़ियाघर भी अंबानी को सौंप दिया गया। सबसे बड़ी बाद समझोते के दस्तावेज पर दस्तखत हो गए और चिड़ियाघर के निदेशक को पता नहीं। यह समझोता Greens Zoological Rescue and Rehabilitation Centre, जामनगर अर्थात अंबानी पुत्र के वनतारा से हुआ है जो की दिल्ली चिड़ियाघर का प्रबंधन देखेगा। उनकी एक टीम यहां आ कर सब कुछ सर्वे भी कर गई। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के अनुसार, चिड़ियाघर के प्रबंधन में एक प्रतिष्ठित निजी समूह को शामिल करने के लिए चर्चाएं अंतिम चरण में हैं। इसका उद्देश्य विश्वस्तरीय सुविधाएं और अवसंरचना लाना है। योजना में वातानुकूलित चिकित्सा इकाइयाँ, आधुनिक पुनर्वास केंद्र और अत्याधुनिक पिंजरे शामिल हैं।

जबकि जमीनी हकीकत यह है कि एमओयू (रेफ्रेंस नं. जीजेड़आरआरसी/ 2025/ एसजीओ/ 42 ‚ 28 मई 2025 ) के अनुसार जीजेड़आरआरसी की टीम ने दिल्ली जू का मुआयना 31 मई और पहली जून को किया था। उसके बाद आगे की रूपरेखा तय होगी। टीम में वेटनरी ड़ाक्टर‚ किचन मैनेजर‚ साइट मैनेजर समेत छह लोग शामिल बताए जा रहे हैं।

याद दिला दें वनतारा जामनगर, गुजरात में स्थित एक अत्याधुनिक वन्यजीव बचाव, पुनर्वास और संरक्षण केंद्र के नाम पर अनंत अंबानी ने रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से रिलायंस रिफाइनरी के ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में लगभग 3000 एकड़ (कुछ स्रोतों के अनुसार 3500 एकड़) में फैला हुआ है। भारत में 1972 का वाइल्ड लाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट लागू है, जो जंगली जानवरों के शिकार, व्यापार, आयात-निर्यात और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा के लिए सख्त प्रावधान करता है। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति या संस्था को जंगली जानवरों को पकड़ना, रखना, या उनका व्यापार करना बिना सरकारी अनुमति के प्रतिबंधित है। मई 2024 में वेनेज़ुएला से 1,825 जीवित जानवरों को एक प्राइवेट समझौते के तहत भारत लाया गया, जिनमें जैगुआर, टापिर, मगरमच्छ, बंदर आदि शामिल थे। यह सौदा कथित तौर पर ‘संरक्षण’ के नाम पर हुआ, लेकिन इसमें पारदर्शिता की कमी और सरकारी निगरानी की अनदेखी के आरोप लगे हैं। भारत में ज़ू अथवा रेस्क्यू सेंटर खोलने के लिए सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) की अनुमति जरूरी होती है, लेकिन वनतारा की प्रक्रिया में कई नियमों की अनदेखी की बात सामने आई ।

ऐसी संदिग्ध संस्था को दिल्ली के प्रतिष्ठित चिड़िया घर की बागडौर सौंपना एक व्यावसायिक हित साधने से अधिक नहीं प्रतीत होता।

दिल्ली में चिड़िया घर की संकल्पना देश की आजादी के बाद ही 1953 में की गई और 01 नवंबर 1959 को केन्द्रीय मंत्री पंजाब राव देशमुख ने इसका उदघाटन किया। दिल्ली में पुराना किला के पास दलदली जमीन पर इसे डिजाइन करने में श्रीलंका के मेजर वाइनमेन और पश्चिम जर्मनी के कार्ल हेगेनबेक की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

आज यह कोई 176 एकड़ में फ़ैला है और 1200 से अधिक जानवर की प्रजातियाँ यहाँ हैं। देश की इतनी बेशकीमती संपत्ति को सीधे निजी हाथों में सौंपना शर्मनाक और खतरनाक है। पर्यावरण और जैव विविधता की दृष्टि से यह घातक कदम है। संस्थान के निजीकरण के कारण सेवा शर्तों और दर्शकों पर भार बढ़न तो तय है ही। वन्यजीव संरक्षण के नाम पर निजी संस्थाएं अक्सर पर्यटन, इवेंट्स और ब्रांडिंग को प्राथमिकता देती हैं। इससे जानवरों की भलाई की जगह व्यावसायिक हित हावी हो सकते हैं, जैसा कि वनतारा के संदर्भ में कई आरोप पहले भी लगते रहे हैं। समझ लें अब दिल्ली जू भी वनतारा की तरह वीआईपी इवेंट्स, सेलिब्रिटी विजिट्स और विशेष आमंत्रणों का अड्डा हो जाएगा। इससे आम जनता की पहुंच सीमित हो सकती है और चिड़ियाघर “प्राइवेट क्लब” जैसा बन सकता है, जो सार्वजनिक सेवा के विपरीत है।