तौक़ीर सिद्दीकी

यूपी विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के मतदान के ठीक पहले भाजपा के चाणक्य अमित शाह की ओर से एक बयान आया जिसमें उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की प्रासंगिकता को स्वीकार किया और उसे भी चुनावी मुकाबले में खड़ा कर दिया। भाजपा के चाणक्य के श्रीमुख से अचानक हाथी के प्रेमवचनों को सुनकर चुनावी पंडितों के कान खड़े हो गए. सबके ज़हन में सवाल उठने लगे कि भाजपा कि यह कौन सी चुनावी रणनीति है जो चुनाव के बीचोबीच विरोधी पार्टी की तारीफ।

लोग अपने अपने तौर पर कयास लगाने लगे. बातें गश्त करने लगीं कि भाजपा आगे आने वाली किसी अपरिहार्य परिस्थिति से निपटने के लिए एक ज़मीन तैयार कर रही है. उसे शायद यह एहसास हो चला है कि उसे बहुमत हासिल करने में किसी बाहरी से मदद लेनी पड़ सकती है. शायद यह उसी की पेशबंदी है. पर लगता नहीं कि मामला सिर्फ चुनाव बाद की बन सकने वाली परिस्थितियों तक सीमित है. यह एक चाल में चली गयी दोहरी चाल है जो चुनावी चौसर पर चाणक्य द्वारा बहुत सोच समझकर फेंका गया पासा है.

अमित शाह द्वारा यह चाल एकजुट हो रहे मुस्लिम और दलित मतों में बिखराव पैदा करने के लिए चली गयी है. दरअसल अभी तक के चार चरणों में हुए मतदान से जो परसेप्शन पैदा हुआ है वह यह है कि मुस्लिम मत एक मुश्त सपा को पड़ रहा है. बसपा की बढ़ती अप्रासंगिकता और मायावती का ज़्यादा सक्रीय न होना कहीं न कहीं गैर जाटव दलितों के बसपा से खिसककर कहीं और जाने की बातें हो रही हैं, निश्चित ही यह भाजपा में नहीं जा रहे हैं ऐसा पार्टी के नेताओं को लगता है. इसलिए भाजपा को लगता है कि आमने सामने की जंग में अन्य पार्टियों की सक्रियता और स्वीकार्यता भी बढ़नी चाहिए वरना मुश्किल और बढ़ सकती है.

वैसे भाजपा की मुश्किलें अमित शाह के इस बसपा प्रेम के बाद और भी बढ़ सकती हैं क्योंकी उनके इस बयान से यह नैरेटिव भी मज़बूत हो सकता है कि भाजपा को हार की सम्भावना दिखने लगी है और इसीलिए इस तरह के बयान सामने आने लगे हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी उपलब्धियों से ज़्यादा विपक्ष की अनुपलब्धियों की ही चुनावी चर्चा करते हैं, वह रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य की जगह उत्तर प्रदेश के चुनाव को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बता रहे हैं, वह यूपी के लोगों से रूस और यूक्रेन के बीच पैदा तनाव की बाद कर रहे हैं कि क्यों यूपी का चुनाव भाजपा के लिए चुनाव जीतना ज़रूरी है. यह वह सब बातें हैं जिनसे भाजपा के बड़े नेताओं की बॉडी लैंग्वेज लोगों को दिख रही है और उसमें उसे निराशा और हताशा ही नज़र आ रही है.

भाजपा की इस हताशा और निराशा से अखिलेश का हौसला निश्चित ही बढ़ा है जो यकीनन अगले तीन चरणों में काफी काम आने वाला है, अखिलेश और उनकी सेना अब इस बात को लोगों तक पहुँचाने में लग गए हैं भाजपा ने हार स्वीकार कर ली है, अमित शाह का बसपा की प्रासंगिकता को स्वीकार करना समाजवादी पार्टी के लिए काफी फायदेमंद होने वाला है. ऐसा लग रहा है कि भाजपा के चाणक्य की यह चाल उलटी पड़ने वाली है.