नई दिल्ली: देश के तमाम राज्य कोरोना की ‘महामारी’ झेल रहे हैं. लेकिन ऐसी राष्ट्रीय आपदा के वक्त लोगों का जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा भी खूब देखने को मिल रहा है. सामाजिक भाईचारे का ऐसा ही जज़्बा बिहार के गया जिले में देखने को मिला जहां संक्रमण से मरी एक हिन्दू महिला का अंतिम संस्कार मुस्लिम समाज के लोगों ने किया।

परिजनों ने वाहन में छोड़ दिया था शो
इमामगंज प्रखंड के तहत रानीगंज पंचायत के तेतरिया गांव की रहने वाली 58 साल की महिला प्रभावती देवी पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं. उनका रानीगंज के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था. अचानक शुक्रवार को उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो इसे देख वहां के डॉक्टरों ने महिला को कोरोना जांच करवाने की सलाह दी. इमामगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रभावती का कोविड-19 के लिए टेस्ट कराया गया तो वो निगेटिव आया. इसके बाद प्रभावती को लेकर परिजन घर लौट रहे थे तो उन्होंने वाहन में ही दम तोड़ दिया. दुःख की बात यह थी कि परिजन शव को वाहन में ही छोड़ घर आ गए. हालत ये थी कि गांव में लोगों ने कोरोना के खौफ से अपने घरों के दरवाजे तक बंद कर लिए थे. शव दोपहर से लेकर रात 8 बजे तक उसी वाहन में रखा रहा.

‘राम नाम सत्य है’ बोलते दिखे मुस्लिम समाज के लोग
जब मुस्लिम समाज के कुछ लोगों को इस बात की जानकारी मिली तो वे परिवारवालों को दिलासा देने पहुंचे. प्रभावती के शव को उन्होंने वाहन से उतारकर निवारी पर रखा. फिर उन्होंने बांस काटकर अर्थी बनाई. उनके साथ फिर प्रभावती के वृद्ध पति दिग्विजय प्रसाद और दोनों बेटे निर्णय और विकास भी आए. प्रभावती के पार्थिव शरीर को फिर श्मशान तक पहुंचाया गया. इस दौरान रास्ते में मुस्लिम समुदाय के लोग भी ‘राम नाम सत्य है’ बोलते दिखे.

धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई जगह नहीं
प्रभावती के बेटों निर्णय कुमार और विकास ने बताया कि मां के अंतिम संस्कार में मोहम्मद रफीक, मो. कलामी, मो. लड्डन और मो. शरीक ने उनका बहुत सहयोग किया जिसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं. मो. रफीक ने इस घटना को लेकर कहा कि “इंसान का मुसीबत में दूसरे इंसान के काम आना ही इंसानियत है. जो उन्होंने किया वो उनका फर्ज था. समाज में सब को एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हुए साथ रहना चाहिए, धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.