मोहम्मद आरिफ नगरामी

अप्रैल की पहली तारीख अखबार में कोई न कोई सनसनी खेज शह सुर्खी लेकर आती है एक दफा एक बड़े सूबे के तालुक से एक सनसनी खेज खबर शाया हुई खबर देख कर हैदरत हुई कि गर्वनर साहब ने अचानक इस्तेफा क्यों दे दिया। उसका चरचा होने से पहली ही हकीकत सामने आ गयी कि आज यकुम अप्रैल है और आज किसी को बेवकूफ बना देना, हिरासा कर देना मौत व जेस्त की कशमशक में मुबतिला कर देना उस दौर की सकाफत का एक हिस्सा है उसको बुरा नही समझाता और अखबार की सनसनी खेज शह सुर्खियां इसी की सकाफत की कड़ियां है अप्रैल के आगाज से मौसम सरमा का एखतेताम हो जाता है गरमी शुरू हो जाती है। आमों में बौर और दरख्तों का नया लिबास कुदरत की तरफ से अता होता है। सख्त सर्दी की वजह से खिजां दीद चमन में बहार के नारंगिया दिखाई देने लगती है। जिसका सिलसिल मार्च से ही शुरू हो जाता है। होना तो यह चाहिए कि उस मौके पर खालिके हकीकी का शुक्र अदा किया जाता है। कि उसेने महेज अपने फजल से मौसमों की उस तब्दीली की लज्जत व जमाल से हमे नवाजा है वरना जमाना और मौसम की तब्दीली में हमारा क्या दखल हो सकता है यह इसी का फजल है यह इसी की इनायत है लेकिन अफसोस आज मुस्लिम मआशरे में भी यकुम अप्रैल को बेखैाफ बना दिया और इस किस्म की बेमहल बातों को रवाज देना फैल किया गया। यह मजेज मगरबी अकवाम की अंधी तकलीद मंे किया जाता है वरना उसाक तालुक न मुस्लिम सकाफत से और न ही हिन्दुस्तान समाज से जिस तरह ओर भी चीजें जिन्हे महेज फैशन और साहब पने के मिजाज की तसकीन की गर्ज से किया जाता है उसमी में वह दावत भी है जिसमें आला सकातफ के हामलिन शामह होते है और नके लिए खाने का नज्म इस तरह होते है कि खुद पलेट उठाये और रोटी सालन बिरयानी कौरमा जो भी चाहे टहल टहल कर खाते रहे जिस तरह बकरियां भेड़ और दीगर जानवर इधर उधर घूमफिर कर अपना पेट भर लेते है।

रमजामुल मुबारक में एक बड़ी सख्सियत के यहां अफतार पारटी में शिरकत हुई वहां यह मंजर देख कर सख्त तकलीद हुआ कि खाने की सुन्नत को रमजानुल मुबारक के महीने में अफतार पार्टी के उनवान से किस तरह मापाल किया जा रहा है। खड़े खड़े खाने से नबी करीम स.अ. ने मना फरमाया है यह शाएसतगी के खिलाफ भी है। और खिलाफ मुरव्वत भी लेकिन क्या किया जाये जब किसी कौम का गलबा होता है तो उसकी अच्छी बुरी आदतें महकूम व मगलूब होता है। तो उसकी कौमो में यह जनर इसतेहसान ही नही बल्कि तरक्की व तहजीब और शएसतगी की अलामत करार दी जाने लगती है और सबसे पहले दानिशवर सरमाया दार तब्का ही फैशन के नाम पर खिलाफ मुरव्वत बातों को रवाज देता है। फिर निचले तब्के तक वह नासूर रस रस कर पहुंच जाता है अप्रैल फूल भी इसी किस्म की खिलाफ मरव्वत तहजीब और जाहेलियत की बात है यह रस्त कैसे शुरू हुई उसके आगाज की कहानी भी बड़ी दिल चस्प है दिलचस्प इसलि कि अकल व खर्ज के दावेदारों मंे उसको अपनाने मंे कैसी बेअकली का सुबूत पेश किया है इसकी तारीख हैसियत पर मुखतलिफ अन्दाज में रोशनी डाली है बाज मुसन्नेफीन का कहना है कि फ्रान्स में सत्तरवीं सदी से पहले साल का आगाज जनवरी के बजाये अप्रैल से हुआ करता था। इस महीने को रमी की तरफ मंसूब करके मुकददस समझा करते थे चूंकि साल का यह पहला दिन होता था इसलिए खुशी व मुसर्रत में उस दिन को जश्न के तौर पर मनाया करते थे और जाहेरी खुशी के लिए आपस में हंसी मजाक भी किया करते थे यही चीज आगे चल कर अप्रैल फूल की शकल में अखतियार कर गयी। उसकी एक वजह यह भी बयान की गयी कि 21 मार्च से मौसम में तबदीली शुरू हो जाती है। उन तबदीलियों को बाज लोगों ने इस तरह तामीर किया है कि कुदरत हमो साथ मजाक करके हमें बेवकूफ बना रही है। कभी गर्मी बढ़़ जाती है कभी पंखा डुलाने से वहसत होने लगती है। मौके के उतार चढ़ाव को कुदरत की तरफ मजाक पर मामूल किया गया लेहाजा लोगों ने भी इस जमाने मंे एक दूसरे को भी बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया।

इसकी एक वजह इन्सायेकुलोपेडिया लावारिस में यह बतायी गयी है कि जब यूहूदियों ने हजरत ईसा अह. को गिरफ्तार कर लिया और रूमियों की अदालत में पेश किया तो रोमियों और यहूदियों की तरफ से हजरत ईसा अह. के साथ मजाक और ठठा किया गया उनको पहले यूहूदी सरदारों और की हालत में पेश किया गया फिर पीलातस की अदालत में ले गये कि फैसला वहां होगा फिर वहां से हेरोडेस की अदालत में पेश किया गया फिर पीलातस की अदालत में फैसले के लिए भेजा ऐसा महेज तफरीह किया गया लोका के इन्जील में उस वाकिये को यूं नकल किया गया है और जो आदमी उसे हजरत मसीह अह. को गिरफ्तार किये हुए थे उसके ठठे उड़ाते और मारते थे उसकी आंखें बंद करके उसके मुंह पर तमाचे मारते थे और उससे यह कहकर पूछते थे कि नबूवत से बता कि किसने तुझको मारा और ताने मार मार कर बहुत सी और ऐसी बाते उसके खिलाफ कहीं लोका यूहूदियों ओर इसाईयों की तरफ से बयान करदा रवायतों से यह पता चलता है कि यकुम अप्रैल की तारीख थी।

फरीदा जददी की अरबी इन्सायेक्वायर पीडया से उन तफसलात पर रोशनी पड़ती है उसके नजदीक अप्रैल फूल की असल वजह यही मालूम होती है। कि वह हजरत ईसा का मजाक उड़ाने और इन्हे तकलीफ पहुंचाने की यादगार है अगर यह बात दुरूस्त है तो बड़ी तकलीफ की बात है कि उस दिन को तम्सखर उड़ाने के तौर पर याद किया जायें और यहूदी की इस रस्म को इसाई मुस्लिम मआशरा में रवाज देने का मौका मिले लेकिन हैरत नाक पहलूं यह है कि जिस चीज को यहूदियों ने हजरत ईसा अह. को मजाक के तौर पर उड़ाने को ररखा जबकि वह हजरत ईसा को रसूल बल्कि एन अल्लाह का दर्जा देते हे। जिनकी तहारत का अकीदा उनके दीन की बुनियाद है लेकिन अफसोस कि इसाईयों के दीनी बदजवाती या बेजोकी का आलम यह है कि जिस सलीब पर हजरत ईसा को सूली दी गयी उसको आज वह मुकददस समझते है होना तो यह चाहिए था कि इस शक्ल से भी नफरत और बेजारी का वह इजहार करते लेकिन खुदा की मार यह है कि उस पर कुद इस तरह तकददुस का गाजा चढ़ायाकि वह मुकददस बन कर मुकददस मकामात की जीनत बन गयी यही हाल अप्रैल फूल का भी है उस दीन को तजहीक व तमस्खर का जरिया बना कर हजरत ईसा अह. के दुश्मनो की नकाली शुरू कर दी जिस तरह सलीब को मुकददस करार दे कर यहूदी का शुक्र अदा किया गया कि हजरत ईसा को सूली दे कर तकददुस का यह सुतून कयामत तक के लिए यहूदी की वजह से इसाई मआशरे को हासिल हुआ शायद इसी एहसास तशक्कुर ने इसाई दुनिया को आज भी यहूदी के शिकंजे मंे कस रखा है और वह हर चीज जो यहूदी की तरफ से आती ै इसाई मआशरा में रवाज पाकर पूरे दुनिया में उसकी बैसाखी से पहुंच जाती है। लेकिन हम मुसलमानेां समझना चाहिए कि तजहीक और तमस्खर का जरिया इस्लामी तहजीब के मनाफी है न किसी फर्द को फर्द से तम्सखीर करने की इजाजत है और किसी जमाअत को दूसरी जमाअत का मजाक उड़ाने का हक और जब उस तारीख की कड़ियां एक मुकददस जात से वाबिस्ता हो तो फिर मुसलमानों को मजदी एहतियात से काम लेना चाहिए वाना खरता है िक इमान सलब न हो ाजये। इसलिए कि किसी पैगम्बर की तजहीक व तौहीन बालोवस्ता या बिला वास्ते कुफ्र सरह है और शरीअत की नजर से शातम रसूल के कटघरे में है और इसकी सजा खलासता अलफतवा जिल्द तीन सफा 286 पर यह बयान की गयी है कि ख्वाह यह शितम रसूल (बुरा भला कहना) उमदा या सहो संजीदगी से हो या बतौर मजाक व दायमी तौर पर काफिर हुआ। उस तरह कि वह अगर तौबा भी करें तौ कुबूल नही और उसकी सजा बाला इत्तेफाक कत्ल है।

इन्सायकिलों पेडिया लावारिस का कहना है कि हजरत ईसा अह. को एक अदालत से दूसरी अदालत में भेजने का मकसद भी दरअस्ल उनके साथ मजाक करना और इन्हे तकलीफ पहुंचाया था और चूंकि यह वाकिया यकुम अप्रैल को पेश आया था इसलिए अप्रैल फूल की रस्म दरहकीकत इसी शर्मनाक वाकिये की यादगार है अल्लाह ताला इस रस्म कबीह से हर साहबे इमान की हिफाजत फरमायें।

उन्होंने कहा कि जहाँ तक पारम्परिक सोने के आभूषणों की बात है तो आज 20 हज़ार में आपको कुछ ख़ास नहीं मिल पाता लेकिन कैरेटलेन में आपको इयररिंग भी मिल जाएगी, अंगूठी भी मिल जाएगी और वो हीरे जड़े हुए. यूपी में बिजनेस विस्तार को लेकर बात करते कहा है कि एक राज्य के रूप में देखा जाय तो यहाँ डिज़ाइनर ज्वेलरी की काफी डिमांड है, इसलिए हम अपने स्टोर्स की संख्या लगातार बढ़ा रहे हैं, आज ही पूरे देश में 20 नए स्टोर लांच हुए हैं और आगे भी हमारी विस्तार की योजनाएं हैं. तो हीरे के डिज़ाइनर आभूषणों को पसंद करने वालों के लिए कैरेटलेन के स्टोर को आपका इंतज़ार है.