लखनऊ: कल वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री द्वारा घोषित कोरोना पैकेज के तहत दो महत्त्वपूर्ण ऐलान किया है। उसमें से एक एमएसएमई सेक्टर को बिना किसी गारंटी के 3 लाख करोड़ का लोन है और दूसरा डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) को 90 हजार करोड़ का राज्य सरकारों की गारंटी से लोन है। डिस्कॉम को 90 हजार करोड़ से लोन से किसे फायदा होने वाला है, इसे समझने के पहले हमें पूरे पावर सेक्टर को समझना होगा। दो साल पहले 70 कंपनियां जिसमें 34 बिजली कंपनियां शामिल थीं दिवालिया होने के कगार पर थीं। बैंकों का उनके ऊपर 3.80 लाख करोड़ कर्ज फंसा हुआ था, जिसमें 34 बिजली कंपनियों का ही करीब दो लाख करोड़ था। यह पूरा विवाद आरबीआई और कोर्ट तक पहुंचा। इन 34 बिजली कंपनियों में लैंको पावर, टाटा, एस्सार समूह आदि मुख्य तौर पर थीं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब डिस्कॉम द्वारा कारपोरेट बिजली कंपनियों से पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की तुलना में मंहगी बिजली खरीदी जाती है तब भी कारपोरेट बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा घाटा क्यों दिखाया जाता है जबकि इन कारपोरेट बिजली उत्पादन कंपनियों को सस्ती दरों से जमीन, लोन से लेकर तमाम रियायतें सरकारों द्वारा दी जाती हैं। दरअसल कारपोरेट सेक्टर की मुनाफाखोरी व लूट को अंजाम देने के लिए सरकार की नीति के परिणाम स्वरूप ही देशभर के ऊर्जा निगम भारी घाटे में गये हैं ।

महंगी बिजली खरीदने का परिणाम हुआ कि डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियां) द्वारा बिजली दरों में की गई अभूतपूर्व बढ़ोतरी के बावजूद वे भारी घाटे में चली गयीं। मौजूदा समय में डिस्कॉम पर 94 हजार करोड़ रुपये बिजली उत्पादन कंपनियों का बकाया है। कोराना महामारी के दरम्यान ही डिस्कॉम के निजीकरण के लिये इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल-2020 का ड्राफ्ट भी लाया जा चुका है। फौरी जरूरत के अलावा डिस्कॉम के निजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने से जोड़कर भी 90 हजार करोड़ के पैकेज को देखा जा रहा है। बिजली संगठनों का मानना है कि इस पैकेज से कारपोरेट कंपनियों और इंडस्ट्रीज को फायदा होगा, न तो पब्लिक सेक्टर की बिजली कंपनियों को कोई फायदा होगा और न ही आम उपभोक्ताओं को इससे किसी तरह का लाभ मिलेगा।
इस आर्थिक पैकेज में जो जानकारी प्राप्त हो रही है, उसके अनुसार डिस्कॉम को PFC(पावर फाईनेंस कारपोरेशन) और REC(रूरल इलेक्ट्रीफिकेशन कारपोरेशन) के द्वारा राज्य सरकार की गारंटी पर लोन दिया जायेगा जबकि MSME सेक्टर को दिया जाने वाला लोन बिना किसी गारंटी के है। डिस्कॉम बिजली कंपनियों के कुल बकाया 94 हजार करोड़ में से केंद्रीय व निजी क्षेत्र बिजली कंपनियों का ही बकाया का भुगतान करेगा। इसके अलावा केंद्रीय बिजली कंपनियों द्वारा इंडस्ट्री को लाकडाऊन अवधि के लिए टैरिफ में छूट देना पड़ेगा, जबकि ऐसा निजी क्षेत्र की कंपनियों को नहीं करना है। यह छूट सिर्फ इंडस्ट्री को होगी। आम उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिलेगा।
कुल मिलाकर 90 हजार करोड़ रुपए डिस्कॉम पर लोन बना रहेगा जबकि इसका पूरा फायदा कारपोरेट बिजली कंपनियों व इंडस्ट्री को मिलेगा। डिस्कॉम को लाकडाऊन से 20% रिवेन्यू क्षति होने की उम्मीद है। ऐसे में रेवेन्यू क्षति और 90 हजार करोड़ के लोन का बर्डन होने के बाद पूरे डिस्कॉम को रिस्ट्रक्चरिंग और सुधार की कवायद चल रही है उसे तेज किया जायेगा। दरअसल रिस्ट्रक्चरिंग और सुधार और कुछ नहीं है बल्कि इसका निजीकरण करना है क्योंकि यह घटा दिखा रहा है इलेक्ट्रीसिटी(अमेंडमेंट) बिल का ड्राफ्ट इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए लाया ही गया है।