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भारतीय अक्षय ऊर्जा क्षेत्र का समुपयोग

वैश्विक हरित ऊर्जा कम्पनियों की भारतीय अक्षय ऊर्जा (पवन-सौर) क्षेत्र में इन दिनों रुचि में इजाफा हुआ है, इसका प्रमुख कारण अवसरों की अधिकता और सरकार का अपार समर्थन। हाल ही में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन द्वारा हाल ही में 7 में से 5 नीलामियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसमें एक विदेशी कम्पनी ने सबसे कम निविदा दर रख कर इस ओर अधिक रुझान बढ़ाया है। वर्तमान में इस क्षेत्र में कुछ अनुकूल पहलू हैं, जैसे कम न्यूनतम निर्माण चक्र, उन्नत प्रौद्योगिकी तथा आम तौर पर सरकार का समर्थन। इन्फ्रा वित्तीय कम्पनियां भी आकलन करने के लिए गोता मार रही हैं, वहीं राज्यों की पाॅलिसी फ्रेमवर्क, पारेशन (ट्रांसमिशन) संरचना एवं परियोजना की अर्थव्यवस्था। उदाहरण के लिए हम अकसर एक लोड प्रवाह विश्लेषण अध्ययन को मूल्यांकन परिदृश्य में लेते है और उसकी रिस्क-रिवाॅर्ड मेट्रिक्स को देखते हैं।

आमतौर पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को फायनेंस के कई दौर का सामना करना पड़ता है जो कि परियोजना के जीवनचक्र पर निर्धारित होता है। परिचालन के बाद स्थरीकरण, पोर्टफोलियो रिफायनेंस के माध्यम से अधिक विकल्प, उच्चतम लाभ उठाने, ऋण पूंजी बाजार तथा और भी बहुत कुछ इनमें शामिल हैं। इसलिए आंशिक ऋण वृद्धि उत्पादों, वेण्डर फायनेंसिंग तथा प्राप्ति से जुड़ी संरचनाओं को देखा जाता है जो कि अनुकूलतम वित्तपोषण तथा सुधरे हुए लचीलेपन से उपलब्ध होता हो।

जी. कृष्णामूर्ति, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एलएण्डटी इन्फ्रास्ट्रक्चर फायनेंस लि. के अनुसार यद्यपि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कुछ प्रमुख चुनौतियां भी है (कम लागत, दीर्घावधि) राज्य वितरण कम्पनियां (डिस्काॅम्स), नाजुक वित्तीय स्वास्थ्य, अपर्याप्त ट्रांसमिशन संरचना एवं राज्यानुसार नीतियों में विभिन्नता इसकी प्रमुख चिंताओं में हैं। स्थाई नियामक वातावरण, त्वरित विवाद समाधान तन्त्र और नीतियों की निश्चितता और  सीमित समयावधि को परिभाषित करना भी इसमें निवेश विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए हमें मुख्य जोखिमों को देखना चाहिए तथा अनिश्चित पूंजी प्रवाह को कम करते हुए प्रवाह अनुसरण के लिए बाध्य रहना चाहिए।

इसके नीतिगत मोर्चे को देखा जाए तो, हमें राज्य वितरण कम्पनियों (डिस्काॅम्स) की सेहत को भी सुनिश्चित करना होगा, इसे सुधारने के लिए ‘‘उज्जवल डिस्काम‘‘ एस्योरेंस योजना (उदय) का प्रभावी क्रियान्वयन, आगामी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए समर्पित निकासी बुनियादी ढांचे और पूरे राज्य में ऋणदाताओं को स्टेपइन/सबडिस्टिब्यूशन/काॅन्टक्ट एसाइनमेंट के एकरूप पीपीएस अधिकार तथा तनावमुक्त स्थितियां इसके लिए लाभदायक रहेंगी।

भविष्य में एक और चुनौती उठ सकती है वह है अस्थिर टैरिफ, जो इसके लिए निविदा स्तर पर कम भागीदारी की जड़ कहा जा सकता है। इसके लिए हमें सुदृढ़ पात्रता मापदण्ड पर जोर देने की जरूरत है ताकि तर्कहीन बोलियों को हतोत्साहित किया जा सके, जैसा कि सड़क क्षेत्र में कुछ वर्षों पूर्व हुआ था। बाजार का दबाव शुल्कों के निर्धारण पर है, परंतु उन्हें बाधित करने और हायपर एग्रेसिव बिडर्स के रूप में इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। एक और जोखिम ऋणदाता समुदाय की तरफ से उठ सकता है, यदि ऋणदाता सरंचना वित्तपोषण में बिना किसी विशेषज्ञ की जरूरत फायदे के लिए प्रवेश करते हों।

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