जंगली जानवरों के हमलों से उत्तर प्रदेश के शहरों में दहशत का माहौल है। राज्य के नौ शहरों में तेंदुए और बाघ की दहाड़ की गूंज लगातार बढ़ती जा रही है। 

अकेले राजधानी लखनऊ में चार साल से लगभग हर साल बाघ देखा जा रहा है। लखनऊ में इस साल ही दो-तीन दिन तक सहारा सिटी होम्स के आसपास के क्षेत्र में बाघ के घूमने की चर्चा रही। राजधानी में 2012 से अब तक तेंदुआ और बाघ के आने की करीब चार घटनाएं हो चुकी हैं। इसी दरम्यान शहर का तेजी से विस्तार हुआ है। राज्य के इकलौते दुधवा नेशनल पार्क के इलाके में एक बाघिन किसान को खींचकर ले गई और मार डाला। सोमवार सुबह किसान का शव जंगल के पास पड़ा हुआ मिला।

इसके अलावा बिजनौर, बहराइच, बदायूं, मेरठ, सीतापुर, सुलतानपुर, पीलीभीत और लखीमपुर खीरी के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाघ और तेंदुए लोगों पर हमले कर चुके हैं।

गोरखपुर के ग्रामीण इलाकों में भी साल 2010 से तेंदुए की हरकतें बढ़ती गई हैं। इनके हमलों में कई लोग घायल भी हुए हैं। 26 दिसंबर 2014 को जिले के मोहरीपुर में तेंदुए ने चार लोगों को घायल कर दिया था। करीब 13 घंटे तक उसने गांव वालों को छकाया, तब कहीं पकड़ में आया।

लखीमपुर खीरी जिले में जंगल से सटी इनसानी बस्तियों और खेतों में बाघ अक्सर देखे गए हैं। महज एक साल के अंदर यहां 100 से अधिक बार बाघ देखे जा चुके है। वे दो माह के अंदर ही चार लोगों की जान ले चुके हैं। जिले में मैलानी, बिजुआ, पलिया, पसगवां और मितौली बाघ प्रभावित इलाके हैं।

पीलभीत में भी जंगल से सटे इलाकों में 20 से अधिक बार बाघों की आवाजाही दर्ज की गई है। बाघ खेतों में काम कर रहे लोगों पर हमले करते हैं या गांव के आसपास पशुओं को निवाला बनाते हैं। यहां आठ महीने पहले बाघ के हमले में एक किसान की मौत हो गई थी। इस जिले में हजारा और पूरनपुर इलाके विशेष तौर पर बाघ प्रभावित हैं।

मेरठ जिले ने हाल ही में तेंदुए का भयानक आतंक ङोला। यहां के कैंट क्षेत्र में करीब 50 घंटे तक दहशत पसरी रही। अंतत: ट्रैंकुलाइजर की मदद से तेंदुए को बेहोश कर पकड़ा गया।