शाहरुख़ खान की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म ‘फ़ैन’ आज रिलीज़ हुई, इस फिल्म में शाहरुख़ ने दो किरदार निभाएं हैं, एक आर्यन खन्ना है जो कि एक सुपरस्टार है और दूसरा उनके फ़ैन का किरदार जिसका नाम है गौरव। गौरव, आर्यन खन्ना का ज़बरदस्त फ़ैन है और दिल्ली का रहने वाला है, उसके इलाके में लोग उसे जूनियर आर्यन खन्ना के नाम से जानते हैं। गौरव, आर्यन की तरह दिखता है, उसकी नकल भी उतार सकता है, उसकी तरह बोल भी सकता है और इसी कारण वह अपने इलाके में एक प्रतियोगिता जीतता है। इनाम में जीती हुई ट्रॉफ़ी वह आर्यन को देना चाहता है जिसके लिए वह मुंबई पहुंच जाता है।

मुंबई पहुंच कर गौरव को धक्का तब लगता है जब वह अपने स्टार से हर कोशिश करने के बावजूद भी मिल नहीं पाता। फिर किस तरह एक फ़ैन और एक स्टार का रिश्ता करवट लेता है यही है फिल्म की कहानी जिसकी गहराई आप ‘फैन’ देखकर ही जान पाएंगे। यशराज बैनर के तले 105 करोड़ रुपये की लागत से ‘फैन’ बनी है, निर्देशक मनीष शर्मा हैं और इसका स्कीन प्ले हबीब फ़ैजल और शरद कटारिया ने लिखा है। यह दोनो ही निर्देशक हैं और ‘इश्कज़ादे’ और ‘दम लगा के हईशा’ जैसी फ़िल्में निर्देशित कर चुके हैं।

अगर फ़िल्म की खूबियों और ख़ामियों की बात करें तो फ़ैन गौरव की दीवानगी सनक की हद तक है पर फर्स्ट हाफ़ में यह उतने प्रभावशाली ढ़ंग से पर्दे पर नहीं उतर पाती। थोड़ी कमी लिखाई की लगती है और थोड़ी निर्देशन की, फ़िल्म में कई चेज़ींग सीक्वेंस हैं जो काफ़ी लंबे लगते है और यह फ़िल्म के दोनो ही हिस्सों में हैं जिसकी वजह से आप थोड़े बेचैन हो सकते हैं। 

फ़िल्म की खूबियां भी कम नहीं हैं। शाहरुख़ का काम पसंद आया, दोनों किरदारों के बीच उन्होंने कमाल का अंतर रखा है और उसे निभाया भी बेहतरीन तरीके से है, उनकी बोल चाल उनकी आवाज़ यहां तक की पीछा करने के सीन्स में जहां वह दौड़ते हैं, उसमें भी दोनों किरदारों का अंतर साफ़ नज़र आता है, पीछा करने वाले सीन थोड़े लंबे हैं लेकिन एक्शन अच्छा है, फ़िल्म का दूसरा हिस्सा एक ऐसा सफ़र है जहां जज़्बातों के कई उतार चढाव हैं। फ़िल्म देखते वक्त आप सोच में पड़ सकते हैं कि आपकी भावनाएं किसके साथ हैं, फ़ैन या स्टार के साथ लेकिन फ़िल्म के अंत तक आप दोनों किरदारों के बीच बंट जाते हैं। यही जीत है कहानी और निर्देशन की, फ़िल्म का क्लाइमैक्स और इसके ट्विस्ट आपकी रुचि बनाए रखते हैं।

इस फ़िल्म में ज़बरदस्ती के गाने नहीं ठूंसे गए हैं। इसकी वजह से आप किरदारों की भावनाओं के साथ बहते जाते हैं और कहानी के बहाव में कोई बाधा नहीं आती। फ़िल्म के दोनों किरदारों को एक स्टार और उसकी ऑल्टर इगो के रुप में देखा जा सकता है क्योंकि शायद ही एक सुपर स्टार के पास अपने लिए टाइम होता है। वह खुद से मिलना तो चाहते हैं पर कितना मिल पाते हैं वही बेहतर जानते हैं, उनके अंदर का खुद का फ़ैन इंतज़ार करता रह जाता है। तो कुल मिला कर फ़ैन एक अच्छी फ़िल्म है। इस फ़िल्म के लिए 3.5 स्टार्स।