इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ मैनेजमेंट (आईआईएचएमआर), दिल्ली के अनुसार मधुमेह दुनियाभर में मौत और विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। अनुमान है कि दुनियाभर में करीब 382 मिलियन लोग मधुमेह से पीडि़त हैं। इनमें से 80 प्रतिशत लोग कम और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग शहरी इलाकों में रहते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी अब मधुमेह के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। और अगर यही स्थिति कायम रही तो वर्ष 2035 तक दुनियाभर में मधुमेह पीडि़तों की संख्या 592 मिलियन के आसपास होगी। यानी हर साल रोगियों की संख्या में करीब 10 मिलियन की वृद्धि हो जाएगी।

विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर मधुमेह को हराओ विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आईआईएचएमआर, दिल्ली के डीन डॉ ए के अग्रवाल ने कहा. ‘वयस्कों में मधुमेह के मामले में चीन के बाद भारत का ही नंबर है। वर्ष 2013 में देश में मधुमेह रोगियों की संख्या करीब 65.1 मिलियन थी, जो कि वैश्विक आंकड़ों के मुकाबले 17 प्रतिशत थी। आज स्थिति यह है कि मधुमेह पीडि़तों में हर पांचवां रोगी भारतीय है। और अगर यही हाल रहाए तो वर्ष 2035 तक देशभर में मधुमेह रोगियों की संख्या 100 मिलियन के पार होगी।’

यह देखा गया है कि मधुमेह के आजीवन महंगे इलाज का खर्च न केवल लोगों और परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ाता हैए बल्कि किसी भी देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली पर भी अतिरिक्त बोझ डालता है। वर्ष 2013 में दुनियाभर में स्वास्थ्य प्रणाली पर किए गए कुल खर्च में मधुमेह के इलाज का खर्च 10.8 प्रतिशत था। डॉ ए के अग्रवाल कहते हैं. मधुमेह की सस्ती और उच्च गुणवत्ता युक्त चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए मिलजुलकर प्रयास करने की जरूरत है।