अहमदाबाद। बीते 5 सालों में गुजरात सरकार को अलग अलग धर्मों से ऐसे 1,838 लोगों के आवेदन मिले जो अपना धर्म बदलना चाहते थे। इसमें से, 1,735 आवेदन (94.4%) ऐसे लोगों के थे जिनका धर्म हिंदू था। गुजरात के धर्मांतरण विरोधी कानून के अंतर्गत किसी भी शख्स को धर्म बदलने से पहले जिला अथॉरिटी की अनुमति की जरूरत होती है। राज्य सरकार ने इनमें से आधे लोगों के आवेदन स्वीकार नहीं किए, सिर्फ 878 लोगों को ही धर्म बदलने की अनुमति दी गई। 1,735 हिंदुओं के अलावा, 57 मुस्लिम, 42 ईसाई और 4 पारसियों ने भी धर्म बदलने के लिए आवेदन दिया था। बुद्ध और सिख धर्म से किसी भी तरह का आवेदन नहीं मिला। विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ आवेदन के पीछे शादी बड़ी वजह होती है।

एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदुओं की तरफ से आए आवेदन राज्य में इस धर्म के अनुपात से थोड़े ज्यादा ही थे। यह आवेदन मुख्य रूप से सूरत, राजकोट, पोरबंदर, अहमदाबाद, जामनगर और जूनागढ़ से थे। एक्सपर्ट मानते हैं कि प्रशासन सभी आवेदन का रिकॉर्ड नहीं रखता है। गुजरात दलित संगठन के अध्यक्ष जयंत मनकंडिया कहते हैं, ‘अगर सरकार सिर्फ 1,735 आवेदनों के ही हिंदू धर्म के लोगों के होने की बात कर रही है तो साफ है कि प्रशासन से सभी आवेदन का रिकॉर्ड नहीं रखा है।’

मनकंडिया ने आगे कहा कि अगर सही आंकड़े दिखाए जाते तो हिंदू धर्म के लोगों के आवेदन की संख्या लगभग 50 हजार रहती। उन्होंने जूनागढ़ में कुछ साल पहले हुए एक कार्यक्रम का हवाला दिया जिसमें दलित समुदाय के लगभग एक लाख लोगों ने बौद्ध दीक्षा ली थी।

इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के पूर्व नेशनल फेलो घनश्याम शाह कहते हैं, ‘सवाल ये है कि हिंदुओं में कौन हैं जो धर्म बदलना चाहते हैं?’ उन्होंने कहा ‘दलितों के बीच असंतुष्टता मौजूद है।’ लेकिन जनगणना की गिनती करने वालों की गलती आंकड़ों से सामने नहीं आती है। जनगणना करने वाले लोग बौद्ध धर्म अपनाने वाले किसी नए शख्स को ‘हिंदू’ के रूप में ही गिनते हैं। सरकार को भी किसी बौद्ध धर्म अपनाए जाने से कोई परेशानी नहीं है। लेकिन विवाद तब पैदा होता है जब कोई ईसाई धर्म अपना ले।