एक बात तो सौ फीसदी सच है कि अगर समाज और कानून व्यवस्था में हम सुधार की दूसरों से अपेक्षा करतें है तों सबसें पहलें हमें अपनें अन्दर सुधार लानें की ज़रूरत है वर्ना सरकार और सरकारी विभागों का विरोध महज़ एक दिखावा ही बन कर रह जाएगा किसी भी अच्छे काम की शुरूआत पहलें हमे खुद करनी चाहिए फिर उस अच्छे काम के लिए दूसरों को प्रेरित करना चाहिए लेकिन हमारी आदत में आलोचना घर कर गई है हम हर काम में दूसरें की आलोचना कर अपनी जि़म्मेदारी पर पर्दा ज़रूर डालतें है लेकिन क्या हमनें कभी इस बात पर गौर किया है कि पुलिस और सरकार पर हर बार तोहमत जड़ कर हमे अपनी जि़म्मेदारी सें बचनें के लिए सिर्फ आलोचना ही करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर अगर आप देखे तो पता चल जाएगा कि हम कितनें जि़म्मेदार है या अपनी सहुलियत के हिसाब सें काम करनें के आदी हो गए है। उदाहरण के तौर पर शहर के बिगड़े हुए यातायात निज़ाम की तरफ अगर गौर किया जाए तों खराब यातायात व्यवस्था के लिए कुछ हद तक शहरवासी भी जि़म्मेदार है हेलमट को ही अगर ले लीजिए तो बात साफ हो जाएगी हेलमेट पहनने का नियम वाहन चालक के हित में ही है लेकिन तमाम लोग 50 हज़ार की गाड़ी तो खरीद लेंगे लेकिन 5 सौ रूपए का हेलमेट उन्हे मंहगा लगता है यें हेलमेट न सिर्फ हमें दुर्घटना में चोट सें बचाता है बल्कि गर्मी में गर्द ग़ुबार और ठंड में सर्दी सें भी बचाता है लेकिन चेकिंग में रोके जानें पर हम चालान सें बचनें के लिए तमाम तरह के तर्क देने के अलावा अपनी प्रतिष्ठा तक को दाॅव पर लगातें है हम ट्राफिक सिग्नल तोड़नें सें भी बाज़ नही आतें गाड़ी के काग़ज़ात साथ रखना तो शायद हम अपनी शान के खिलाफ ही समझतें है ग़लती पर पकड़े जानें पर हमें अपनी ग़लती का एहसास होना चाहिए लेकिन शायद हम हालात को सुधारना ही नही चाहतें है और तर्क वितर्क सें ही काम चलाना चाहतें है इसी तरह सें वन वें को देखिए हम जल्दी अपनी मंजि़ल पर पहुचनें के लिए वन वें का उलंघन करतें है जिससें जाम की समस्या तो उत्पन्न होती है साथ ही दुघर्टना की सम्भावना भी बढ़ जाती है ऐसें हालात में यदि कोई पुलिस कर्मी हमें रोकता है तों उसें हम अपनी पहुॅच का हवाला देकर अपनी ग़लती को उस पर मढ़नें का भरसक प्रयास करतें है। अब बात करते है दूसरे पहलू पर राज्य सरकार नें प्लास्टिक सें फैलनें वाली बीमारियों के मददे नज़र अभी 21 जनवरी सें पूरे प्रदेश में प्लास्टिक की थैलियों पर पूरी तरह सें प्रतिबन्ध लगा दिया है सरकार के सख्त आदेश है कि अगर कोई भी दुकानदार प्लास्टिक के कैरी बैग में सामान बेचता पाया गया तों उसे जुर्माना या फिर जेल की सज़ा भुगतना पड़ेगी यें आदेश सरकार नें सिर्फ मंत्रियों के स्वाथ्य को ध्यान में रख कर नही किया बल्कि प्रदेश की जनता के हित में यें फैसला लिया है। आदेश कों आए हुए काफी समय बीत गया लेकिन हमारी आदत आज भी बिना झोला घर सें लिए ही सामान खरीदनें के लिए निकलनें की है। दुकानदार जब हमसें प्लास्टिक की थैली न होनें की बात कहता है तो हम झोला न लानें की बात कह कर सिर्फ एक बार प्लास्टिक की थैली उससें देनें की गुज़ारिश करतें है। अब बताईयें हम ग़लत है या सरकार का आदेश हमें चाहिए कि हम घर सें झोला लेकर निकलें और यदि कोई दुकानदार प्रतिबन्धित थैली में सामान बेच रहा है तों उसकी या तों शिकायत करे या फिर उसें भी इसके नुकसान को समझा कर नियम का पालन करनें के लिए प्रेरित करें । अब बात करते है स्वाथ्य के लिए हानीकारक पान मसालें की माननीय न्यायालय के आदेश के बाद चतुर कारोबारियों नें गुटखा बेचनें का विकल्प तलाशतें हुए जान लेवा तम्बाकू को गुटखें सें अलग कर दिया अब गुटखें के शौकीन पहलें गुटखें का पाउच फाड़ कर खातें ही फिर तम्बाकू फांक कर अपनें जीवन को कम करनें का काम करतें है जो वस्तु हमारी जान की दुशमन है उस पर प्रतिबन्ध लगनें के बाद यदि कारोबारियों नें विकल्प ढुढ लिया है तों हमें उस ज़हर रूपी गुटखे का विरोध करना चाहिए न कि विकल्प के तौर पर तम्बाकू अलग और गुटखा अलग खाकर अपनी जि़म्मेदारी सें हाथ खींचना चाहिए। अब अगर बात की जाए सफाई व्यवस्था की तों उसके भी हम कही न कही जि़म्मेदार ज़रूर है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी नें दो अक्टूबर को गाॅधी जयन्ती के दिन खुद झाड़ू लगा कर स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की लेकिन हमनें टीवी और अखबारों में खबरें पढ़ कर अभियान के बारें में तों जाना लेकिन सच्चे मन सें इस अभियान में जुड़ कर क्या भारत को स्वच्छ बनानें का पक्का इरादा किया प्रधान मंत्री का यें सफाई अभियान भलें ही राजनीति सें प्रेरित हो लेकिन है तों जनता की भलाई के लिए छोटे शहरों के पुरानें इलाको में अगर देखा जाए तों यहॅा इस अभियान के कोई मायनें ही नही है अधिक्तर लोग अपनें घर के अन्दर से कूड़ा निकाल कर घर के बाहर फंेक कर सफाई कर्मी पर नाराज़गी जतातें है लेकिन यदि हम यही कूड़ा करकट निर्धारित स्थान पर फेक कर सफाई रखे तों इसमें क्या बुराई है। जबकि दुनिया का हर धर्म सफाई को सर्वोपरि मानता है लेकिन धर्म के हिसाब सें भी तो हम काम नही कर रहें है। अगर हम सच्चें मन सें खराब व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने के इच्छुक है तों हमें अपनें अन्दर पहलें सुधार लाना होगा वर्ना सरकार सें या सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों की सिर्फ आलोचना करतें हमारा समय बीत जाएगा और खराब व्यवस्थाए जस की तस ही रह जाएगी जिसका भुगतान हम समय समय पर करके पक्षतातें रहेगें और अपनी ग़लती का ठीकरा सरकार पर फोड़ कर अपनी जि़म्मेदारी सें बचतें रहेगें।

(ख़ालिद रहमान)