नई दिल्ली : केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में 2015-16 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया है। व्यापार घाटा पिछले साल के मुकाबले कम हुआ है और महंगाई दर 4 से 4.5 फीसदी रहने का अनुमान है। 

वित्त मंत्री ने कहा कि अब वृहत-आर्थिक स्थिरता का माहौल है, जिससे अगले दो वर्षों में विकास दर 8 प्रतिशत या उससे भी ज्‍यादा रहने की आशा है। महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार की बदौलत अब वृहत-संवेदनशीलता कम हो गई है

सर्वे में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था विकास के पथ पर तेजी से कदम बढ़ा रही है, क्‍योंकि महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार, राजकोषीय मोर्चे पर विवेकपूर्ण कदमों और मूल्‍य स्थिरता पर ध्‍यान केन्द्रित करने की बदौलत वृहत-संवेदनशीलता कम हो गई है। वित्‍त मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा आज संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2015-16 में कहा गया है कि कीमतों के मोर्चे पर नरमी की स्थिति और देश में बाह्य चालू खाते के संतोषजनक स्‍तर को देखते हुए अगले दो वर्षों में 8 प्रतिशत या उससे भी ज्‍यादा की विकास दर हासिल करना अब संभव नजर आ रहा है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सरकार सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और इस तरह के तीव्र विकास के लिए जो मौजूदा स्थितियां हैं, उनमें वृहत-आर्थिक स्थिरता सहायक साबित हो रही है।

 आर्थिक समीक्षा में वर्ष 2016-17 के दौरान आर्थिक विकास दर 7 से लेकर 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2014-15 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2015-16 में 7.6 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करने के बाद 7 प्रतिशत से ज्‍यादा की विकास दर ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍था में तब्‍दील कर दिया है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में भारत का योगदान अब और अधिक मूल्‍यवान हो गया है, क्‍योंकि चीन फिलहाल अपने को फिर से संतुलित करने में जुटा हुआ है। आर्थिक समीक्षा में यह भी उल्‍लेख किया गया है कि भारत में विकास के मोर्चे पर जो तेजी देखी जा रही है, वह मुख्‍यत: खपत की बदौलत ही संभव हो रही है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जहां एक ओर सेवा क्षेत्र के विकास की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई, वहीं विनिर्माण क्षेत्र में आई तेजी ने लगातार दो वर्षों से मानसून के कमजोर रहने के चलते कृषि क्षेत्र में दर्ज की गई निम्‍न विकास दर की भरपाई कर दी है।

आर्थिक समीक्षा 2015-16 में कहा गया है कि 14वें वित्‍त आयोग (एफएफसी) की सिफारिशों के बाद ज्‍यादा पूंजीगत खर्च, राज्‍यों को ज्‍यादा शुद्ध संसाधन हस्‍तांतरण और ज्‍यादा सकल कर राजस्‍व के बीच संतुलन कायम करने की कोशिश की जा रही है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चुनौतियों और वर्ष 2015-16 के दौरान जीडीपी के अनुमान से कम रहने के बावजूद राजकोषीय घाटे के लक्ष्‍य को जीडीपी के 3.9 प्रतिशत के स्‍तर पर सीमित रखना संभव नजर आ रहा है। ऐसी उम्‍मीद इसलिए जग रही है, क्‍योंकि बेहतर कर संग्रह, विवेकपूर्ण खर्च प्रबंधन और तेल के घटते मूल्‍यों की बदौलत सकल कर राजस्‍व (जीटीआर) के लक्ष्‍य हासिल कर लिए गए हैं।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि बेहतर राजकोषीय प्रबंधन का एक संकेतक यह है कि वर्ष 2015-16 में कुल खर्च 17.77 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2014-15 के संशोधित अनुमानों से 5.7 प्रतिशत ज्‍यादा है। व्‍यय की गुणवत्‍ता पर फोकस को दोहराते हुए पूंजीगत खर्च में 25.5 प्रतिशत की वृद्धि की परिकल्‍पना की गई थी। चालू वित्‍त वर्ष के दौरान दिसंबर 2015 तक संतोषजनक राजकोषीय स्थिति से जुड़े अनेक तथ्‍य उल्‍लेखनीय रहे। अप्रत्‍यक्ष करों के संग्रह में दमदार वृद्धि, एफएफसी की सिफारिशों के अनुरूप राज्‍यों को करों में ज्‍यादा हिस्‍सा दिया जाना, पिछले 6 वर्षों के दौरान पूंजीगत खर्च में सर्वाधिक बढ़ोतरी और प्रमुख सब्सिडियों में कमी इन तथ्‍यों में शामिल हैं।

आर्थिक समीक्षा 2015-16 में इस ओर भी ध्‍यान दिलाया गया है कि थोक मूल्‍य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर पिछले एक साल से भी ज्‍यादा समय से ऋणात्‍मक स्‍तर को दर्शा रही है। यही नहीं, उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर भी घटकर विगत वर्षों के मुकाबले लगभग आधी रह गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विवेकपूर्ण नीतियों और बफर स्‍टॉक, समय पर अनाजों के वितरण एवं दाल आयात के जरिए सरकार द्वारा किये जा रहे महंगाई प्रबंधन से आवश्‍यक वस्‍तुओं की कीमतों को वर्ष 2015-16 के दौरान नियंत्रण में रखने में मदद मिली है।

आर्थिक समीक्षा में, हालांकि, इस ओर संकेत किया गया है कि वर्ष की दूसरी छमाही में कुछ आवश्‍यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में दर्ज की गई वृद्धि से ऐसा आभास होता है कि हमें निकट भविष्‍य में भी आपूर्ति प्रबंधन को बेहद समझदारी के साथ जारी रखना होगा।         

आर्थिक समीक्षा में यह भी बताया गया है कि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में सुधार लाने के लिए “इनपुट- क्रोप एंड रीजन न्यूट्रल” बनाकर सब्सिडी सहित कृषिगत नीतियों को विवेकपूर्ण बनाए जाने की तुरंत जरूरत है। इसमें बताया गया है कि गुणवत्ता/जीएम/कीटरोधी बीजों का अपनाया जाना कृषि उत्पादकता में सुधार लाने का एक अन्य तरीका होगा। जीएम बीजों के बारे में जो शंकाएं हैं, उन्हें वार्ताओं और परीक्षणों द्वारा दूर किया जाना चाहिए। बीजों और उर्वरकों जैसे निवेशों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) से लीकेज और प्रणाली में परिवर्तन रोकने में मदद मिलने से लक्षित लाभार्थियों को लाभ पहुंचेगा।

समीक्षा में बताया गया है कि प्रधानमंत्री योजना (पीएमजेडीवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई), अटल पेंशन योजना (एपीवाई) तथा बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट्स रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) वित्तीय समावेशी समग्र लक्ष्य को अर्जित करने के लिए सरकार की पहल अच्छा कार्य निष्पादन कर रही हैं। समीक्षा में यह भी दर्शाया गया है कि सॉवरिन गोल्ड बांड स्कीम और स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के माध्यम से उत्पादक उद्देश्यों के लिए सोने को जुटाने क लिए किस प्रकार प्रयास किए गए हैं। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का कार्य निष्पादन वर्ष 2015 के दौरान कमजोर रहा और बैंक क्रेडिट की बढ़ोत्तरी भी मंद रही। समीक्षा में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न मौजूदा प्रयासों को देखते हुए औद्योगिक और बुनियादी ढांचा क्षेत्रों द्वारा अच्छा कार्य निष्पादन जारी रहेगा। यह भी बताया गया है कि             

बुनियादी ढांचा क्षेत्र का विकास सरकार का एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र है और इसमें सार्वजनिक निवेश में वृद्धि देखी गई है। बंदरगाहों पर भारतीय रेलवे द्वारा फ्रेट कैरेज में बढ़ोत्तरी, नागर विमानन क्षेत्र, दूरसंचार क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण में विकास बहुत प्रभावी रहा है। कोयला और खानों के ब्लॉक के आवंटन के लिए सफलतापूर्वक नीलामियां आयोजित की गईं।

पेट्रोलियम क्षेत्र में एनईएलपी के तहत उत्पादन भागीदारी संविदाओं के लिए नीति में सुधार, एक समान लाइसेंसिंग और ओपन एक्रेज नीति आदि के साथ परीक्षण जरूरतों में सुधार किया गया है। रेल, सड़क और सिंचाई कार्यक्रमों के लिए कर मुक्त बुनियादी ढांचा बांड्स की अनुमति दी गई है। नॉन बैंक फाइनेंशियल कंपनी के बुनियादी ढांचे में इक्विटी सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय निवेश एवं बुनियादी ढांचा निधि (एनबीएफसी) की स्थापना।

रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक, रेलवे में 100 प्रतिशत, बीमा और पेंशन में 49 प्रतिशत तक, एफडीआई की अनुमति के साथ अधिक सार्वजनिक एफडीआई नीति अपनाई गई है। इसके अलावा विनिर्माण, प्रसारण, नागर विमानन, प्लांटेशन, व्यापार, निजी क्षेत्र बैंकिंग, उपग्रह स्थापना एवं परिचालन तथा क्रेडिट सूचना कंपनियों आदि जैसे अनेक क्षेत्रों को उदार बनाया गया है। समीक्षा में यह भी बताया गया है कि सेवा क्षेत्र भारत की आर्थिक प्रगति का मुख्य वाहक बना रहा और इसमें 2014-15 में 10.3 प्रतिशत प्रगति की है, जबकि पिछले साल यह 7.8 प्रतिशत रही थी। अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2015-16 में यह 9.2 प्रतिशत (स्थिर मूल्यों पर) होने की उम्मीद है। ऐसा जन प्रबंधन, रक्षा और अन्य सेवाओं में कम विकास के कारण हुआ। वर्ष 2015-16 के पहले सात महीनों में सेवा क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी आवकों में बढ़ोत्तरी का रूख रहा  और एफडीआई आवक में 74.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वैश्विक मंदी के कारण अगले कुछ महीनों में भारत के सेवा निर्यात में गिरावट रहने का जिक्र किया गया है।

आर्थिक सर्वे की अहम बातें –

-व्यापार घाटा पिछले साल के मुकाबले कम हुआ।

-महंगाई दर 4 से 4.5 फीसदी रहने का अनुमान।

-अगले 2-3 साल में 8 से 10 फीसदी ग्रोथ संभव।

-टैक्स छूट को धीरे-धीरे खत्म करना होगा।

-टैक्स बेस 5.5 से बढ़ाकर 20 फीसदी होना चाहिए।