नई दिल्ली: जेएनयू छात्र नेता के प्रकरण में वकीलों के हुड़दंग पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को बेहद व्यथित दिखा और उसने कहा कि मडिया इस मामले को क्यों दिखा रहा है। जब माहौल पहले से ही इतना गर्म है तो ऐसे में मीडिया को सतर्कता बरतनी चाहिए।

स्थिति के मूल्यांकन के लिए पांच वकीलों की कमेटी पटियाला हाउस कोर्ट भेजने के बाद जस्टिस जे चल्मेश्वर और एएम सप्रे की पीठ ने कहा कि लॉ डिग्रीधारी और काला कोट पहने हर व्यक्ति को प्रोफेशन में आने नहीं देना चाहिए। कहीं न कहीं तो इसकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए।

अफसोस है कि वकील इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी वकीलों को कोर्ट को संबोधित करना नहीं आता। कई वकील एकसाथ बोलने लगते हैं। यह देखकर हमें अफसोस होता है।

पीठ ने कहा कि मीडिया भी वही चीजें दिखा रहा है जिससे माहौल गर्मा रहा है। कोर्ट ने कहा कि हम लंच टाइम में कामन रूम में बैठे थे एक टीवी पर एंकर ऐसे बोल रह था जिससे लग रहा था वह फैसला दे रहा है और कथित व्यक्ति को दोषी ठहरा रहा है। यह उचित नहीं है लेकिन क्या कर सकते हैं।

कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि वह पटियाला हाउस कोर्ट में भी प्रेक्टिस करते हैं और जो लोग हुड़दंग कर रहे हैं उन्हें नहीं लगता कि वे वकील हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी राव किसी केस के सिलसिले में कोर्ट में मौजूद थे और उन्होंने कहा कि प्रोफेशन का स्तर लगतार गिर रहा है।

चैन्नई में हाईकोर्ट में वकीलों ने काफी उत्पात किया और आंध्रप्रदेश में भी कालाकोट पहने वकीलों ने हाईकोर्ट में उत्पात किया था जबकि वे वकील नहीं थे। उन्होंने कहा कि 1965 में उनहोंने जब प्रेक्टिस शुरु की थी तो उस वक्त एमसी सीतलवाड को देखते थे जिनके बारे में एमसी महाजन ने अपनी बायोग्राफी में लिखा था कि भगवान देश को तीन चार चार सीतलवाड और दे जिससे न्यायपालिका का विकास हो सके।