राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिया राष्ट्र के नाम संदेश

नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संभवत: संसद में लंबित जीएसटी विधेयक के संदर्भ में विधि निर्माताओं और सरकार से कहा कि आर्थिक सुधारों और प्रगतिशील विधानों को सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है और इसके लिए निर्णय लेने का प्रमुख तरीका सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने की भावना पर आधारित होना चाहिए।

प्रणब ने 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में आगाह किया कि निर्णय और कार्यान्वयन में विलंब से विकास की प्रक्रिया का ही नुकसान होगा। उन्होंने कहा, ‘विकास की शक्तिओं को मजबूत बनाने के लिए हमें सुधारों और प्रगतिशील विधान की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना विधि निर्माताओं का परम कर्तव्य है कि पूरे विचार विमर्श और परिचर्चा के बाद ऐसा विधान लागू किया जाए। सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति की भावना निर्णय लेने का प्रमुख तारीका होना चाहिए। निर्णय और कार्यान्वयन में विलंब से विकास प्रक्रिया का ही नुकसान होगा।’

राष्ट्रपति की यह टिप्पणी जीएसटी विधेयक के पारित होने में बने गतिरोध के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। कांग्रेस ने इसे पारित कराने में सहयोग के लिए तीन मांग की है जिन्हें सरकार ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है। प्रणब ने कहा, ‘पिछला 2015 का साल चुनौतियों का वर्ष रहा। इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी रही। वस्तु बाजारों पर असमंजस छाया रहा और संस्थागत कार्रवाई में अनिश्चितता आई। ऐसे कठिन माहौल में किसी भी राष्ट्र के लिए तरक्की करना आसान नहीं हो सकता।’

उन्होंने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। निवेशकों की आशंका के कारण भारत समेत अन्य उभरते बाजारों से धन वापस लिया जाने लगा जिससे भारतीय रुपये पर दबाव पड़ा। हमारा निर्यात प्रभावित हुआ और हमारे विनिर्माण क्षेत्र का अभी पूरी तरह उभरना बाकी है।’

राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2015 में प्रकृति की कृपा से भी वंचित रहे। भारत के अधिकतर हिस्सों पर भीषण सूखे का असर पड़ा जबकि अन्य हिस्से विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए। उन्होंने कहा कि मौसम के असमान हालात ने हमारे कृषि उत्पादन को प्रभावित किया और ग्रामीण रोजगार तथा आमदनी के स्तर पर इसका बुरा असर पड़ा। उन्होंने कहा कि हम इन्हें चुनौतियां कह सकते हैं क्योंकि हम इनसे अवगत हैं। समस्या की पहचान करना और इसके समाधान पर ध्यान देना एक श्रेष्ठ गुण है।

अपने संबोधन में प्रणब ने कहा कि भारत इन समस्याओं को हल करने के लिए कार्यनीतियां बना रहा है और उनका कार्यान्वयन कर रहा है। इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि दर के साथ भारत सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर है।

राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व तेल की कीमतों में गिरावट से बाह्य क्षेत्र को स्थिर बनाये रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिली है। बीच-बीच में रूकवटों के बावजूद इस वर्ष उद्योगों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। उन्होंने कहा कि ‘चौथी औद्योगिक क्रांति’ पैदा करने के लिए जरूरी है कि यह उन्मुक्त और रचनाशील मनुष्य उन बदलावों को आत्मसात करने के लिए परिवर्तन गति पर नियंत्रण रखे, जो व्यवस्थाओं और समाजों के भीतर स्थापित होते जा रहे हैं।

प्रणब ने ऐसे माहौल की आवश्यकता बतायी जो महत्वपूर्ण विचारशीलता को बढ़ावा दे और अध्यापन को बौद्धिक रूप से उत्साहवर्धक बनाये। उन्होंने कहा कि इससे महिलाओं के प्रति आदर की भावना पैदा होगी जिससे व्यक्ति जीवन पर्यान्त सामाजिक सदाचार के मार्ग पर चलेगा।

राष्ट्रपति कहा कि इससे गहन विचारशीलता की संस्कृति प्रोत्साहित होगी और चिंतन एवं आतंरिक शांति का वातावरण पैदा होगा। हमारी शैक्षणिक संस्थाएं मन में जागृत विविध विचारों के प्रति उन्मुक्त दृष्टिकोण के जरिये विश्व स्तरीय बननी चाहिए।