नेहरू-सोनिया के नेतृत्‍व पर उठाए सवाल 

नई दिल्‍ली : कांग्रेस की पत्रि‍का ‘कांग्रेस दर्शन’ में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर आपत्तिजनक लेख छपने के बाद पार्टी काफी असहज हो गई है। इस लेख में पार्टी नेतृत्‍व पर सवाल उठाए गए हैं। कांग्रेस को सोमवार को उस समय शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब उसीके मुखपत्र ने कश्मीर मामले पर जवाहरलाल नेहरू की नीति की आलोचना की और आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के पिता एक ‘फासीवादी सैनिक’ थे। पार्टी अपने स्थापना दिवस पर सामने आए इस विवाद से असहज स्थिति में आ गई है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कांग्रेस के 131वें स्थापना दिवस से पहले पार्टी की मुंबई शाखा ने उसके लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। मुंबई कांग्रेस के मुखपत्र में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखे प्रहार किए गए है और उनके ऊपर तीखी टिप्पणियां की गई हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को मुखपत्र में कश्मीर, चीन और तिब्बत नीति के लिए निशाने पर लिया गया है। मुखपत्र के लेख में साफ लिखा गया है कि नेहरू को अंतरराष्ट्रीय मामलों पर स्वतंत्रता सेनानियों और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई की बात सुननी चाहिए थी। 15 दिसंबर को पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के मकसद से इस महीने पार्टी की ‘कांग्रेस दर्शन’ के हिंदी संस्करण में प्रकाशित लेख में लेखक के नाम का उल्लेख नहीं है।

‘कांग्रेस दर्शन’ के दिसंबर इशू में नेहरू के नाती राजीव गांधी की पत्नी और वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी फोकस किया गया है। जब पार्टी खुद सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर बात करने से कतराती रही है, आर्टिकल में उनके शुरुआती जीवन पर डिटेल में लिखा गया है। इसमें उनकी एयर होस्टेस बनने की ख्वाहिश भी बताई गई है। मुखपत्र में उस आरोप पर भी बात की गई है जिसमें सोनिया के पिता को ‘फासिस्ट’ बताने और रूस के खिलाफ विश्व युद्ध में उनके हारने की बात की जाती रही है। आश्चर्यजनक रूप से, कांग्रेस खुद ही बीजेपी और दक्षिणपंथी गुटों को ‘फासिस्ट’ बताती रही है। इसमें आरोप लगाया गया है, सोनिया गांधी के पिता स्टेफनो मायनो एक पूर्व फासीवादी सैनिक थे। लेख में यह भी बताया गया है कि सोनिया किस प्रकार तेजी से पार्टी अध्यक्ष के पद पर पहुंची। लेख में कहा गया है कि सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के तौर पर पंजीकरण कराया और वह 62 दिनों में पार्टी की अध्यक्ष बन गई। उन्होंने सरकार गठित करने की भी असफल कोशिश की।

कांग्रेस ने हमेशा से ही नेहरू और पटेल के बीच किसी भी तरह के मतभेद की अटकलों को खारिज ही किया है लेकिन ‘कांग्रेस दर्शन’ के दिसंबर इशू में इसपर बात की गई है। 15 दिसंबर को पटेल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि भी दी गई है। लेख में यह छपा है कि पटेल को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद मिला था इसके बावजूद दोनों नेताओं में संबंध तनावपूर्ण बने रहे और दोनों ने कई बार इस्तीफा देने की धमकी भी दी थी।’ नेहरू विदेश मामलों के इंचार्ज थे और कश्मीर मामले को उन्होंने अपने पास ही रखा था लेकिन पटेल, उप प्रधानमंत्री रहते हुए कुछ कैबिनेट बैठकों में शामिल हुए थे। आर्टिकल में लिखा गया है कि अगर पटेल की दूरदर्शिता को ध्यान में रखा गया होता तो आज के हालात कभी पैदा नहीं होते। पत्रिका में और भी कई हैरान कर देने वाली बातें हैं। दावा किया गया है कि पटेल की राय न मानने की वजह से नेहरू ने चीन, तिब्बत और नेपाल जैसे अंतरराष्ट्रीय मामलों को अस्त-व्यस्त कर दिया था।