नई दिल्ली। मोदी सरकार ने सोमवार को लोकसभा में दिवालिया विधेयक पेश किया। अपने आप को आर्थिक सुधार के मोर्चे पर स्थिति और मजबूत करने के मकसद से सरकार ने यह पेश किया। गौरतलब है कि वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी से जुड़े विधेयक के बाद ये दूसरा सबसे अहम विधेयक है जिसका इंतजार देसी विदेशी निवेशकों को रहा है।
नए विधेयक के कानून में तब्दील होने के बाद जहां दिवालियेपान को मामले को तय समय सीमा के भीतर निपटाने में मदद मिलेगी, वहीं बीमार कम्पनियों को अपना कारोबार समेटने या सुधारने में आसानी होगी। अभी कम्पनियों के बंद होने या बीमार होने की सूरत में कर्जदारों को अपना पैसा वापस पाने के लिए लम्बी चौड़ी अदालती प्रक्रिया का इंतजार करना पड़ता है जिसमें समय भी काफी लगता है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान बैंकों को उठाना पड़ रहा है जिनका डूबा कर्ज यानी एनपीए खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है और हर साल एक निश्चित रकम का प्रावधान करने से उनके मुनाफे पर असर पड़ता है। फिलहाल, उम्मीद है कि प्रस्तावित कानून बनने से ऐसी कई परेशानी दूर होगी।
नए विधेयक का एक असर कारोबारी माहौल सुगम करने के मामले में भारत की रैंकिंग सुधारने में भी होगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, दिवालियापन से निबटने के मामले में भारत 189 देशों में 136 वें स्थान पर है (वैसे सभी मानकों पर कुल मिलाकर हमारी रैंकिंग 130वां है)। दिवालियापन का मामला सुलझाने में जहां दुनिया के कई देशों में एक साल के करीब और दक्षिण एशिया के कई देशों में ढ़ाई साल के करीब का समय लगता है, वहीं भारत में चार साल से भी ज्यादा समय लग जाता है। फिलहाल, नये विधेयक में प्रावधान किया गया है कि एक कम्पनी के दिवालियेपन के मामले को 180 दिनों में निबटाना होगा. विशेष परिस्थितियों में इसके लिए तीन महीने और समय दिया जा सकता है।निश्चित समय सीमा के बीतर दिवालियापन के मामले को निपटाने से देसी-विदेशी निवेशकों के बीच भरोसा बढ़ेगा। कर्जदारों के साथ-साथ कम्पनी के प्रवर्तकों को सहूलियत ये होगी को वो जल्द से जल्द विफल कारोबार से निकल कर नया कारोबार शुरु कर सकेंगे।
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