चंडीगढ़। रोहतक की अदालत ने गैंगरेप व हत्या के मामले में सात आरोपियों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई है। सातों आरोपी निकटवर्ती गांव खद्दी खेड़ी के रहने वाले हैं। रोहतक स्थित अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीमा सिंघल की अदालत ने आज बचाव पक्ष की सभी दलीलों को दरकिनार करते हुए आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी।

फांसी की सजा सुनाए जाने के समय अदालत परिसर में जहां भारी पुलिस बल तैनात था वहीं इस फैसले को जानने के लिए हजारों की संख्या में लोग अदालत परिसर के बाहर जमा थे। रोहतक में नेपाली मूल की मंदबुद्धि लड़की के साथ अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के आरोप में पुलिस ने नौ युवकों को गिरफ्तार किया था। जांच के चलते एक युवक ने आत्महत्या कर ली जबकि एक अन्य नाबालिग होने के कारण मामला जुवैनाइल जस्टिस कोर्ट में चल रहा है।

बीती एक फरवरी को रोहतक की चिन्योट कालोनी निवासी नेपाली मूल की एक मंदबुद्धि युवती अचानक घर से लापता हो गई। चार दिन बाद उसका शव बहुअकबरपुर गांव के खेतों से मिला। जिसे कुत्तों ने नोच रखा था। पोस्टमार्टम में खुलासा हुआ कि युवती के साथ दरिंदगी की सभी हदों को लांघते हुए न केवल सामूहिक दुष्कर्म किया गया बल्कि उसके गुप्तांगों में लोहे का सामान डालकर मार दिया गया। पोस्टमार्टम के दौरान मृतका के शरीर से पत्थर, लोहे के कील आदि भी मिले थे। पुलिस ने जांच के दौरान निकटवर्ती गांव गद्दीखेड़ी निवासी सुनील, पदम, पवन, मनवीर, राजेश, सरवर तथा सुनील के अलावा एक नाबालिग व दिल्ली निवासी सोमवीर को नामजद किया था।

घटना की जांच के चलते सोमवीर ने दिल्ली में जाकर आत्महत्या कर ली, जबकि नाबालिग का मामला जुवैनाइल कोर्ट में चल रहा है। रोहतक की अदालत ने इस मामले की बहुत तेजी से सुनवाई की। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीमा सिंघल ने सोमवार सुबह दोनों पक्षों की अंतिम बहस के बाद फैसला दोपहर तक सुरक्षित रख लिया। भोजनावकाश के बाद भी इस मामले में सभी पहलूओं की गहनता से जांच की गई। शाम करीब पांच न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी।

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीमा सिंघल ने इस ऐतिहासिक फैसले से पहले दी गई टिप्पणी में कहा कि पुलिस ने अपनी ड्यूटी करते हुए करीब 300 पन्नों की चार्जशीट पेश की। आज मैं ज्यूडिशयल डयूटी पूरी करने के लिए आई हूं। न्यायाधीश होने के साथ-साथ मैं एक इंसान हूं और इंसान होने से पहले मैं एक महिला हूं।

उस लड़की की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि मरने से पहले उसे कितनी यातनाएं दी गई हैं। न्यायाधीश ने कहा कि एक महिला होने के नाते मैं उस मंदबुद्धि लड़की की चीखें सुन सकती हूं और दर्द को समझ सकती हूं जो इन दरिंदों ने उसे दिया है। जज ने कहा कि आज भी पुरूषों का एक वर्ग महिलाओं को दबा रहा है, लेकिन उन्हें निर्भया व दामिनी जैसे नाम स्वीकार नहीं। आज का यह फैसला जुर्म करने वालों के लिए आजीवन सबक का काम करेगा। अगर आज मैं इस फैसले में ढील रखती हूं तो यह मृतका के साथ मृत्यु के बाद भी अन्याय से कम नहीं होगा। जज ने कहा कि जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया है उसमें फांसी की सजा भी कम है। इस सजा से शायद समाज में इस तरह की घटनाओं की पुर्नावृति होने से बच सके।

रोहतक की अदालत ने भले ही सात आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी है लेकिन सातों आरोपियों के पास अभी कानूनन हाईकोर्ट में अपील करने का अवसर मौजूद है। जिसके चलते सातों आरोपी अपने वकील के माध्यम से जल्द ही हाईकोर्ट में अपील करेंगे।