फ़िलस्तीन पर बैरूत में अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न, एमएसओ राष्ट्रीय महासचिव ने रखा भारत का पक्ष

विशेष संवाददाता  

बैरूत:  दुनिया भर के विचारकों और चिन्तकों के बीच फ़िलस्तीन की आज़ादी, शांति और मानवाधिकार पर गहन चर्चा का अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन शनिवार को सम्पन्न हो गया। भारत के मुस्लिम छात्रों के सबसे बड़े संगठन मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के महासचिव शुजात अली क़ादरी ने इसमें भारत के लोगों का फ़िलस्तीन के प्रति चिन्ता का पक्ष रखा। दुनिया भर के  देशों के विचारकों ने बैरूत कांफ़्रेंस में हिस्सा लिया।

हर साल बैरूत में होने वाले अन्तराष्ट्रीय फ़िलस्तीन भाईचारा सम्मेलन का यह तीसरा मौक़ा था। सम्मेलन में एमएसओ के राष्ट्रीय महासचिव शुजात अली क़ादरी ने कहा कि मैं उस भारत से आया हूँ जिसने अरब के बाहर सबसे पहले फ़िलस्तीन को देश के रूप में मान्यता दी थी। आज जबकि केन्द्र में सरकार बदल गई है और इस तरह की बातें उठ रही हैं कि भारत फ़िलस्तीन पर अपना रुख़ बदल रहा है लेकिन मेरा मानना है कि भारत की जनता ने कभी फ़िलस्तीन पर अपना रुख़ नहीं बदला है और ना ही बदलेगा। हमें फ़िलस्तीन में इजराइली ज़ुल्म, मानवाधिकार हनन और रंगभेद की भारी चिन्ता है। क़ादरी ने कहाकि भारत ने फ़िलस्तीन के मुद्दे पर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में बयान दिया है कि वह सार्वभौमिक, स्वतंत्र और पूरी तरह से निर्भर फ़िलस्तीन के हक़ में कल भी था और आज भी है। हाल ही में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फ़िलस्तीन की यात्रा की है और रमल्ला के अलक़ुद्स विश्वविद्यालय में भारत ने सूचना और तकनीक विभाग की स्थापना की है। इसके लिए पचास लाख डॉलर की भारत ने मदद भी की है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी ने भी बयान दिया है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि फ़िलस्तीन के प्रति भारत के समर्थन में कोई अन्तर नहीं आया है। भारत ने यह उम्मीद जताई है कि फ़िलस्तीन और इज़राइल के बीच बातचीत का दौर पुन: शुरू होगा और दोनों देश शांति और सद्भाव के साथ रहेंगे।

शुजात अली क़ादरी ने दुनिया भर के फ़िलस्तीन मुद्दे पर जुटे विचारकों के संबोधित करते हुए दोहराया कि भारत की जनता के मन में फ़िलस्तिनियों के प्रति हमेशा प्रेम और सद्भाव का भाव है। उन्होंने दोहराया कि एमएसओ के क़रीब 20 लाख सदस्यों ने कभी फ़िलस्तीन के मुद्दे पर समझौता नहीं किया और जब भी इज़राइली ज़ुल्म की घटना होती है वह हमेशा प्रमुखता से इस मुद्दे को ना सिर्फ़ समाज बल्कि सरकार के सामने रखते हैं ताकि इसे भारत के रुख़ के तौर पर देखा जाए। क़ादरी ने कहाकि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई मीडिया मंडी है और सोशल मीडिया में दुनिया में सबसे सक्रिय लोग भारत के हैं। एमएसओ ने भारत की इस ताक़त से फ़िलस्तीन के मुद्दे को बहुत प्रमुखता से रखा, यही वजह है कि एमएसओ की पोस्ट को बहुत शेयर किया जाता है। फ़िलस्तीन मुक्ति संग्राम जिसे ‘इन्तिफ़ादा’ के नाम से जाना जाता है, इसकी जानकारी मुस्लिम समाज के बाहर बहुत कम थी जिसे आम करने में एमएसओ ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। यही नहीं इन्तिफ़ादा के प्रति सकारात्मक सोच बनाने के लिए भी एमएसओ सक्रिय है। उन्होंने कहाकि पूर्वी किनारे में मस्जिद अलअक़्सा दुनिया भर के मुसलमानों के बीच इस्लामी इतिहास के बेहद पवित्र स्थलों में से एक है और भारत के मुसलमान इज़राइल की किसी भी हमलावर और घटिया हरकत को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही कारण है कि भारत के मुसलमान ही नहीं हिन्दू समुदाय के बुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकार भाई बहनों ने हमेशा हमारे मुद्दों को समर्थन दिया है। हमें उम्मीद है कि एक दिन फ़िलस्तीनी अपने घरों को लौट पाएंगे और वह एक स्वतंत्र और सार्वभौमिक फ़िलस्तीन राष्ट्र में रहेंगे, जहाँ दमनकारी इज़राइली ताक़तों के लिए कोई जगह नहीं होगी। भारत से स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता फ़िरोज़ मीठीबोरवाला ने भी फ़िलस्तीन के प्रति भारत के रवैये पर अपना पक्ष रखा।

सम्मेलन में भारत के अलावा पाकिस्तान, सीरिया, सेनेगल, इराक़, ईरान, इंग्लैंड, अमेरिका समेत दुनिया भर के अन्तराष्ट्रीय फ़िलस्तीन भाईचारा सम्मेलन के कार्यकर्ता और विचारक पहुँचे थे।