लखनऊ: वक्त का तकाज़ा है या वक़्त की मजबूरी है-लड़कों को पराठे और लड़कियों को कराटे आना ज़रुरी है। महिलाओं के बिना सृष्टि की संकल्पना बेमानी है, स्त्री वस्तु नहीं है। ममसा, वाचा कर्मणा की हिंसा को रोककर ही सशक्त एवं समृद्ध भारत का निमार्ण होगा।

उक्त बातें कालीचरण पी0जी0 कालेज एवं आक्सफे़म इंडिया द्वारा आयोजित एक दिवसीय घरेलू हिंसा, लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण विषयक कार्यशाला में लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षा शास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डाॅ0 किरन लता डंगवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं के विकास को बाधित करता है। आवश्यकता है समय के साथ मानसिकता में बदलाव लाने की। पुरुष मानसिकता में बदलाव लायें और महिला अपनी स्वत्व को पहचाने तो समाज में सम्यक परिवर्तन आयेगा।

विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय सेवायोजना लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व प्रभारी डाॅ0 सुषमा मिश्रा ने कहा कि हम ऐसे सामाजिक परिवेश में रहते हैं जहँा अधिकतर महिलाओं और लड़कियों को घर के बाहर निकलने पर या विद्यालय जाने में हिंसा और उत्पीड़न का समाना करना पड़ता है। आवश्यकता है ऐसे समाज के निर्माण करने की जिनमें महिलाओं और लड़कियों को पुरुषों के बराबर हिस्सा मिल सके।

सुभाष चन्द्र बोस इन्सटिट्यूट आॅफ़ हायर एजुकेशन की निदेशक डाॅ0 मन्जू आनन्द ने अपनी कविता “मैं तो मरी नहीं हूँ पापा उन लोगों ने ही जला दिया“ के माध्यम से दहेज हत्या पर मार्मिक प्रकाश डालते हुए दहेज रहित विवाह का संकल्प दिलाया। घरेलू हिंसा पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें जया वर्मा प्रथम, ज्योत्सना दीक्षित, द्वितीय, एवं श्रुति त्रिपाठी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

इस अवसर पर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ नुक्कड़ नाटक के माध्यम से रुपाली उपाध्याय, अभिषेक श्रीवास्तव, रमेश तिवारी, अभय दीक्षित, आकांक्षा वर्मा, रवि शर्मा ने बेटी बचाओ और पढ़ाओ की मार्मिक अपील की।

हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ0 पंकज सिंह ने समाज में हो रहे बदलाओ पर प्रकाश डालते हुए सभी को संकल्प दिलाया कि हम इसकी शुरुआत स्वयं से करेंगे और अपनी सोच अपने व्यवहार और क्रिया कलापों पर निगरानी रखेंगे जिससे लिंग भेद को समाप्त किया जा सके।

प्राचार्य डाॅ0 देवेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि महाविद्यालय का प्रयास है कि ऐसे गतिविधियों के माध्यम से सुयोग्य नागरिकों का निर्माण करना जो सामाजिक कुरुतियों को दूर कर समरस समाज का निर्माण कर सकें।

लुआक्टा की महामंत्री और आक्सफेम इण्डिया की डाॅ0 अंशू केडिया ने कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हए कहा कि बेटी दान की वस्तु नहीं है जिसे कन्यादान किया जा सके। महिलाओं को सामाजिक आर्थिक रूप से सशक्त होने की ज़रुरत है तभी देश आगे बढे़गा।

कार्यशाला के संयोजक एवं वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष डाॅ0 सुभाषचन्द्र पाण्डेय जी ने आभार ज्ञापित करते हुए सभी से अपने आस-पास की विसंगतियों को समाप्त करने के लिए आगे आने का आहवान किया।

कार्यशाला का संचालन वाणिज्य विभाग के प्रवक्ता डाॅ0 हरमाान सिंह ने किया जिसमें प्रमुख रूप से समाधान के आशू दुबे, राष्ट्रीय सेवायोजना के संयोजक डाॅ0 अरुण कुमार सिंह, डाॅ0 दिलीप कुमार, डाॅ0 अमित भदौरिया डाॅ0 अल्का द्विवेदी, डाॅ0 एस0एम0ए0 रिज़वी, डाॅ0 शोभा श्रीवास्तव, डाॅ0 रश्मि मिश्रा, काजल मौर्या, डाॅ0 पूनम अस्थाना, डाॅ0 मनोज पाण्डेय, डाॅ0 लीना सिंह, डाॅ0 दीपमाला वर्मा, डाॅ0 बबिता पाण्डेय सहित यूनिटी कालेज एवं महाविद्यालय के समस्त छात्र-छात्राएँ एवं शिक्षक उपस्थित रहे।