असरारूल हक़ मजाज़ लखनवी पर यू0पी0 प्रेस क्लब में सेमिनार आयोजित 

लखनऊ। उ0प्र0 उर्दू एकाडमी के आर्थिक सहयोग से अवध वेलफेयर फाउण्डेशन, लखनऊ व फाउण्डेशन की अध्यक्ष, सबीहा सुल्ताना के ज़रिये से आज एक सेमिनार असरारूल हक़ मजाज़ लखनवी पर यू0पी0 प्रेस क्लब, लखनऊ में आयोजित किया गया। इस मौके पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अनीस मंसूरी साहब ने कहा कि मजाज़ को तरक्की पसन्द तहरीक और इन्कलाबी शायर भी कहा जाता है। महज 44 साल की छोटी सी उम्र में उर्दू साहित्य के ‘कीट्स’ कहे जाने वाले असरार उल हक ‘मजाज़’ इस जहाॅ से कूच करने से पहले वे अपनी उम्र से बड़ी रचनाओं की सौगात उर्दू अदब को दे गये शायद मजाज़ को इसलिये उर्दू शायरी का ‘कीट्स’ कहा जाता है, क्योंकि उनके पास अहसास-ए-इश्क़  व्यक्त करने का बेहतरीन लहज़ा था। 

सबीहा सुल्ताना ने कहा कि मजाज़ की जि़ंदगी की आखिरी रात की कुछ ऐसी रही के सर्द रात में शराब की हालत में उनके दोस्तों ने उनको होटल की छत पर नशे  की हालत में छोड़कर चले गये, जिससे उनकी मौत हो गयी। इससे यह बात निकल कर सामने आयी के दोस्त, औरत, शराब इन तीनों चीज़ों की ज़्यादती इंसान की जि़न्दगी को बर्बाद कर देती है और मजाज़ की जि़ंदगी की दिवानगी मयकदे  के चक्करों और बेपरवाही में गुज़र गई, शायद यह उनके खुद कहे यह शेअर  उनकी जि़न्दगी की सच्चाई बयान करते है- मेरी बर्बादियों के हमनशीनों, तुम्हे क्या मुझे भी गम नही है।

श्रीमती गीता सिंह ने कहा कि मजाज़ को उॅचे तबके के लोगों में उठने बैठने के कई अवसर मिलें। अमीरों के चरित्र का खोखलापन और आम जनता की गरीबी को उन्होंने करीब से देखा था।

नाहिद लारी ने कहा कि एक बार मजाज़ ज़्यादा बीमार हो गये थे, तो उन्हें एक अस्पताल में एडमिट हुये और अस्पताल में उन्हें एक नर्स से मोहब्बत हो गयी थी। नर्स की जुदाई के ग़म में शराब कसरत से पीने लगे और एक शेअर भी लिखा-

वो एक नर्स थी चारागर जिसको कहिये, मदावाये दर्दे जिगर जिसकों कहिये।

सिरहाने मेरे एक दिन सर झुकाये, वो बैठी थी तकिये पे कोहनी टिकाए।

ये पैग़ाम आते ही रहते है अक्सर, कि किस रोज़ आओगे बीमार हो कर।।

इस मौके पर मौलाना इलियास मंसूरी, नरेन्द्र सिंह, मो0 दानिश  हुसैन सिद्दीकी, शगफ सुल्ताना, शखकमा सुल्ताना, मो0 इरफान, मो0 तौसीफ के अलावा काफी जनसंख्या में लोग मौजूद रहे।