नई दिल्ली। घूस लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहाकि एक सरकारी अधिकारी पर केवल घूस की राशि मिलने के आधार पर रिश्वत लेने का आरोप नहीं लगाया जा सकता बल्कि यह साबित करना होगा कि उसने रिश्वत मांगी थी। चीफ जस्टिस एचएल दत्तू, जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस अमिताव रॉय की बैंच ने यह टिप्पणी करते हुए आंध्र प्रदेश के तकनीकी शिक्षा विभाग के सहायक निदेशक को 19 साल पुराने मामले में बरी कर दिया। उन्हें कथित तौर पर 500 रूपये की रिश्वत लेते हुए रंग हाथों गिरफ्तार किया गया था।
बैंच ने अपने फैसले में कहाकि घूस लेने का आरोप सिद्ध करने के लिए रिश्वत मांगे जाने का सबूत अनिवार्य है। सेक्शन 7 और 13(1)(डी)(1) व (2) के तहत अपराध की शिकायत में अवैध फायदा लेने की मांग सबूत है और इसकी गैरमौजूदगी में आरोप खारिज हो जाएंगे। केवल अवैध रकम या फायदा मिलने की कथित स्वीकार्यता से इन धाराओं के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है। केवल रकम मिलने से आरोप सिद्ध नहीं होगा और यह साबित करना पड़ेगा कि आरोपी ने घूस मांगी थी और पैसे ले भी लिए थे।
कोर्ट ने कहाकि घूस मांगे जाने के सबूत के बिना आरोपी से केवल पैसों की रिकवरी से अपराध सिद्ध नहीं होता। एसीबी ने ट्रेप किया और अधिकारी को पाउडर लगे नोट लेते हुए गिरफ्तार किया था लेकिन इससे यह साबित नहीं हुआ कि रकम उसी ने मांगी थी।
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