स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का सम्बोधन 

नई दिल्ली। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश को संबोधित किया। भारत राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संसद एक अखाड़े में बदल गई है। प्रणब मुखर्जी में संसद में सत्र के दौरान होने वाले हंगामे को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की, इस मौके पर उन्होंने सैनिकों, खिलाडियों और नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को बधाई दी।

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि देश में शिक्षा का स्तर गिर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग देश की एकता को तोड़ना चाहते हैं। सरकार को देश की सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता। गरीबों को देश की विकास योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। मुखर्जी ने 69वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम सम्बोधन में संसद के मानसून सत्र का सीधे उल्लेख न करते हुए कहा कि लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्या के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो निश्चित तौर पर राजनीतिक दलों एवं जनता के लिए इस बारे में गम्भीर चिंतन करने का वक्त आ गया है, ताकि सुधारात्मक उपाय अंदर से आ सकें।

उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र रचनात्मक है, क्योंकि यह बहुलवादी है, परन्तु इस विविधता का पोषण सहिष्णुता और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए। मुखर्जी ने कहा कि भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर, भारत एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है। इसकी जड़ें गहरीं हैं, परन्तु पत्तियां मुरझाने लगी हैं। अब इसमें नवीनता लाने का वक्त आ गया है।

उन्होंने प्रश्न किया कि यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए तो क्या सात दशक बाद हमारे उत्तराधिकारी हमें उतने सम्मान तथा प्रशंसा के साथ याद कर पाएंगे, जैसा हम 1947 में भारतवासियों के स्वप्न को साकार करने वालों को करते है? भले ही उत्तर सहज न हो, परंतु प्रश्न तो पूछना ही होगा। सामाजिक सौहार्द पर किये जा रहे कुठाराघातों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि स्वार्थी तत्व सदियों पुरानी धर्मनिरपेक्षता को नष्ट करने के प्रयास में सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचाते हैं।