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याकूब की फांसी के बाद जस्टिस श्रीकृष्णा ने उठाये न्याय व्यवस्था पर सवाल

नई दिल्ली: राज्य का रवैया पक्षपाती दिखाई देता है और उसमें 1992 के मुंबई दंगों में 900 लोगों के मारे जाने के आरोपियों को सजा दिलाने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई देती। यह बात किसी और ने नहीं खुद जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा ने एक न्यूज़ चैनेल  से कही।

इसी के साथ जब 1992 के मुंबई दंगों के बाद 1993 में हुए धमाकों के दोषी याकूब मेनन को फांसी दी गई है, तब यह सवाल स्वत: उठता है कि क्या हमारी न्याय व्यवस्था चयनात्मक हो गई है और उन लोगों पर ध्यान नहीं दे रही जो 1992 के दंगों में कई बेगुनाहों की हत्या के लिए दोषी हैं। जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा ने कहा कि जिनके पास सत्ता और ताकत रही उनकी ओर से पक्षपात साफ दिखाई दे रहा है कि दंगों की जांच नहीं हो पाई जिस प्रकार 1993 के बम धमाके जिसमें 257 लोगों की जान गई की जांच की गई।

न्यूज़ चैनेल दिए लम्बे चौड़े साक्षात्कार में जस्टिस श्रीकृष्णा (जो कभी किसी टीवी चैनल के इंटरव्यू में नहीं दिखाई दिए) ने कहा कि राज्य लापरवाह सा रहा और उन मामलों में भी जांच नहीं की जिनमें प्रथम दृष्टया साक्ष्य थे। श्रीकृष्णा रिपोर्ट खास तौर शिवसेना और उनके सुप्रीम बाल ठाकरे (अब दिवंगत) के प्रति आलोचनाकारी रही। रिपोर्ट में बाल ठाकरे को ‘वर्चुल जनरल’ कहा गया है। लेकिन जस्टिस श्रीकृष्णा समिति की जांच रिपोर्ट पर सरकार ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की। इसमें कांग्रेस-एनसीपी की सरकारें और शिवसेना-बीजेपी की साझा सरकारें भी शामिल हैं।

दंगों के 22 साल बाद भी 900 लोगों की मौत के लिए अब तक केवल तीन लोगों को दोषी पाया गया है। वहीं, 1993 धमाकों के लिए अब तक 100 लोगों को दोषी करार दिया गया है।

जस्टिस श्रीकृष्णा ने कहा कि वह याकूब मेमन की फांसी का समर्थन करते हैं क्योंकि उसे बचाव के पूरे मौके दिए गए। लेकिन उनकी इच्छा है कि एक दिन 1992 के दंगों के दोषियों को भी सजा मिले।

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