पुणे। पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान संसद में ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल करने से इनकार किया। शिंदे ने एक कार्यक्रम के इतर संवाददाताओं से कहा कि मैंने कभी भी संसद में ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। मैंने इसका इस्तेमाल कांग्रेस के जयपुर सत्र में किया था, लेकिन तत्काल उसे वापस ले लिया था।
शिंदे का यह बयान केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के इस दावे की पृष्ठभूमि में आया है कि यूपीए सरकार की ओर से इस शब्द का इस्तेमाल किए जाने के बाद से सरकार की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर हो गई।
शिंदे ने कहा कि एनडीए सरकार गुरदासपुर आतंकवादी हमले के मद्देनजर आतंकवाद से निपटने में अपनी निष्क्रियता से ध्यान बंटाना चाहती है। राजनाथ सिंह ने लोकसभा में 27 जुलाई के हमले पर बयान देने के बाद कांग्रेस पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने आतंकवादी घटनाओं की जांच की दिशा बदलने के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द गढ़ा था।
शिंदे ने आरोप लगाया कि देश में आतंकवाद को एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान कंधार विमान अपहरण (जिसके कारण कुछ आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था) के बाद बढ़ावा मिला। उन्होंने कहा कि इसके बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा और संसद पर हमला हुआ था। पूर्व गृह मंत्री शिंदे ने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार की निष्क्रियता के चलते उसके कार्यकाल के दौरान आतंकवादियों के हौसले बुलंद हुए, यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान नहीं।
पूर्व गृह मंत्री ने यह भी कहा कि 1993 मुंबई बम विस्फोट मामले के दोषी याकूब मेमन की फांसी के निर्णय को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था। उन्होंने सवाल किया कि जब आतंकवादियों ने लोगों की हत्या की क्या उन्होंने इसकी पहले घोषणा की? मुंबई आतंकवादी हमले के दोषी कसाब को शिंदे के गृह मंत्री पद पर रहने के दौरान ही पुणे की केंद्रीय जेल में फांसी दी गई थी। सरकार ने कसाब को गोपनीय तरीके से फांसी देने के बाद इसकी घोषणा की थी।
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