नई दिल्ली : मुंबई के 1993 के श्रंखलाबद्ध बम विस्फोट मामले में मृत्युदंड पाने वाले इकलौते मुजरिम याकूब अब्दुल रजाक मेमन की सजा के अमल पर रोक के लिए उसकी याचिका पर उच्चतम न्यायालय में  सोमवार को सुनवाई हुई। ये सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी। जानकारी के अनुसार, न्‍यायालय ने सुधारात्मक याचिका के लिये नियमों पर अटार्नी जनरल से स्पष्टीकरण मांगा है क्योंकि मेमन का कहना है कि इस पर फैसला होने से पहले ही मौत का फरमान जारी कर दिया गया था। गौर हो कि याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी दी जानी है।

इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कहा कि मैंने पहले ही इसे पीठ को सौंप दिया है। यह फाइल मेरे पास आई थी। इस पर सोमवार को सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश की पीठ में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताव राय भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि ‘यह संवेदनशील मामला है और इसे पहले ही न्यायमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ के पास 27 जुलाई के लिये भेज दिया गया है।

याकूब मेमन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने इस मामले का उल्लेख किया। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली से संबद्ध डेथ पेनाल्टी लिटीगेशन क्लिनिक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता टी आर अंध्यारूजिना ने कहा कि दूसरे मामलों में मौत की सजा के अमल के खिलाफ उसने भी शीर्ष अदालत में याचिकायें दायर की हैं। रामचंद्रन ने कहा कि मेनन के पास गंवाने के लिये समय नहीं है क्योंकि उसकी जिदंगी एक धागे पर टिकी हुयी है। अंध्यारूजिना ने कहा कि दोषी को 30 जुलाई की सुबह सात बजे फांसी दी जानी है। इसलिए उनके संगठन की याचिका याकूब के मामले के साथ संलग्न कर दी जाये।

मेमन ने शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप कर इस पर तुरंत सुनवाई का आग्रह करते हुये दावा किया है कि उसकी मौत की सजा पर अमल के लिये अधिक जल्दबाजी की गयी और इसमें कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। मेमन को क्लिनिक संगठन से समर्थन मिला कि मौत के फरमान की कार्यवाही की ठीक से सूचना नहीं दी। मेमन का आरोप है कि मौत के फरमान की कार्यवाही मुंबई में हुई जबकि वह नागपुर जेल में बंद है और इसलिए वकील के माध्यम से उसका प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। याचिका में यह भी कहा गया है कि टाडा अदालत ने मौत की फरमान उस समय जारी किया जब उसकी सुधारात्मक याचिका शीर्ष अदालत में लंबित थी और इस तरह पहले से ही यह मान लिया गया कि इसका नतीजा नकारात्मक ही होगा। मेमन ने मौत की सजा के अमल पर रोक के लिये कल शीर्ष अदालत में याचिका दायर करते हुये कहा था कि अभी उसके सारे कानूनी विकल्प खत्म नहीं हुये हैं।

मेमन ने याचिका में कहा कि निचली अदालत द्वारा जारी मौत का फरमान गैरकानूनी है क्योंकि कानून के तहत उसे उपलब्ध सभी कानूनी विकल्प अभी खत्म नहीं हुये हैं। याकूब ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से भी दया की गुहार की है। शीर्ष अदालत से सुधारात्मक याचिका खारिज होने के तुरंत बाद ही याकूब ने राज्यपाल के समक्ष मंगलवार को दया याचिका दायर की थी। याकूब के वकील ने न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने निर्धारित प्रक्रिया और दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया। इस संबंध में उसने मई मई के एक प्रकरण का हवाला दिया जिसमें शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के एक जोड़े की मौत का फरमान रद्द कर दिया था। उत्तर प्रदेश के मामले में न्यायालय ने कहा था कि दोषी के पास उपलब्ध सभी विकल्प खत्म होने तक इस तरह का वारंट जारी नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 21 जुलाई को मेमन की सुधारात्मक याचिका खारिज करते हुये कहा था कि यह प्रकरण सुधारात्मक याचिका के बारे में शीर्ष अदालत द्वारा 2002 में प्रतिपादित सिद्धांतों के दायरे में नहीं आती है। मेमन का दावा था कि वह 1996 से ही सिजोफ्रेनिया से पीडित है और करीब 20 साल से जेल की सलाखों के पीछे है। उसने मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का अनुरोध करते हुये कहा था कि एक ही अपराध के लिये दोषी को उम्र कैद और मौत की सजा एकसाथ नहीं दी जा सकती।