रिहाई मंच ने सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर उठाया सवाल, जांच की मांग 

लखनऊ। रिहाई मंच ने याकूब मेमन के फांसी के फैसले को न्याय की हत्या करार देते हुए उसकी फांसी की सजा को खत्म करने की मांग की है। मंच ने कहा कि याकूब मेमन को फर्जी तरीके से काठमांडू से उठाकर दिल्ली में दिखाने की पुलिस की कहानी को पूर्व राॅ अधिकारी बी रामन ने न सिर्फ गलत बताया, बल्कि यह भी आरोप लगाया कि अदालत के सामने अभियोजन पक्ष ने मेमन को लेकर सही बात नहीं रखी।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मेमन के फांसी के फैसले के बाद एक बार फिर से जब यह बहस सामने आ चुकी है कि हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां किसी को कहीं से उठाती हैं और कहीं से दिखाती हैं तो ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि इन एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई हो पर यहां उल्टे मेमन को ही फांसी दी जा रही है, जबकि वह खुद इस मामले का गवाह है। जिस तरीके से यह पूरा मामला अन्तर्राष्ट्रीय जगत के सामने आ चुका है उसने भारतीय न्याय व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल उठा दिया है कि वह सिर्फ और सिर्फ बहुसंख्यकवाद की संन्तुष्टि के लिए ऐसा कर रही है जिससे पूरी दुनिया में भारत की बदनामी हो रही है। उन्होंने सवाल किया कि क्या पूर्व राॅ अधिकारी बी रामन ने सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों पर जो सवाल उठाया है उस पर किसी तरह की कार्रवाई के लिए क्या सरकार तैयार है। आखिर जब पूरी दुनिया यह बात जान रही है कि मेमन के परिवार को करांची से लाने के नाम पर उसे गवाह

बनाया गया तो इससे यह भी पुख्ता होता है कि मेमन की इस कमजोरी का फायदा उठाकर जांच एजेंसियों ने अपनी थ्योरी को उसके मुंह से कहलवाने की कोशिश भी की हो और जब वह कामयाब हो गईं और मेमन की कोई जरुरत नहीं रह गई तो उसे फासी के तख्ते पर पहुंचाकर हर उस तथ्य का कत्ल देना चाहती हैं जो उसके खिलाफ हो सकता है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिस तरीके से बी रामन ने मेमन की फांसी की सजा का विरोध करते हुए बताया है आखिर उन तथ्यों को इस मामले से जुड़ी एजेंसियों ने जिस तरीके से छुपाया वह साफ करता है कि इस पूरे मामले में न सिर्फ तथ्यों को छिपाया गया बल्कि उन्हें खत्म करने का प्रयास भी किया गया और इसमें अदालत की भी मौन स्वीकृति थी। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका के विचाराधीन रहते हुए मेमन की मौत का वारंट जारी करना कानून के खिलाफ है। इसके अतिरिक्त फांसी का वारंट जारी कर देने के कारण मेमन के लिए क्षमा याचना का रास्ता भी बंद हो गया जो कानून के खिलाफवर्जी करता है।

रिहाई मंच नेता शाहनवाज आलम ने कहा कि याकूब की फांसी राजनीतिक कारणों से मानसून सत्र के दौरान सरकार दिलवाने की कोशिश कर रही है ताकि अपने खिलाफ बढ़ रहे जनाक्रोश को दूसरी दिशा में मोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि इसीलिए देखने में आ रहा है कि एक तरफ याकूब की फांसी की बात की जा रही है तो दूसरी तरफ इस फैसले के चलते मोदी पर आतंकवादी हमले के खतरे की अफवाह खुफिया एजेंसियों फैला रही हैं। जिसके तहत यहां तक बताया जा रहा है कि 15 अगस्त के दिन मोदी पर पांच आतंकवादी हमला करने की फिराक में हैं। रिहाई मंच नेता ने कहा कि ऐसा लगता है कि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां याकूब मेमन की आड़ में 15 अगस्त के आस-पास मोदी पर हमले के नाम पर कुछ मुस्लिम युवकों को फर्जी मुठभेड़ में मारने या उन्हें आतंकवाद के झूठे आरोप में फंसाने की साजिश कर रही हैं। उन्होंने कहा कि खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के पुराने रिकार्ड को देखते हुए इससे भी इंकार नहीं किया जा

सकता कि 15 अगस्त के आस-पास मोदी के इशारे पर देश में कोई आतंकी वारदात भी करवा सकती हैं। जैसा कि गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए अक्षरधाम मंदिर पर हुआ था। रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का मामला हो या फिर बेअंत सिंह की हत्या का मामला में राजनीतिक दबाव के चलते आरोपियों की सजा कम कर दी जाती है। लेकिन जब ऐसा मामला अफजल गुरु का आता है तो जम्मू और कश्मीर विधानसभा के प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाता है। मुबंई बम धमाकों में राज्य के गवाह बने याकूब मेमन को फांसी की सजा देना नैतिक तौर पर नहीं बल्कि तार्किक तौर पर भी गलत है।