बेंगलोर। भारत में पिछले 60 साल में ऐसी कोई खोज नहीं हुई जो वैश्विक स्तर पर घर-घर में पहचान बनी हो। न ही ऐसा कोई ‘तहलका’ मचाने वाला विचार सामने आया है जिसके ऐसी खोज हुई हो जिसने दुनिया भर के लोगों को खुशी दी हो। आईटी क्षेत्र के दिग्गज एन.आर. नारायणमूर्ति ने यह बात कही।

भारतीय विज्ञान संस्थान में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए मूर्ति ने कहा कि हमारे युवाओं ने ऐसा प्रभावशाली अनुसंधान कार्य नहीं किया, जबकि वे बुद्धिमता और ऊर्जा में पश्चिमी विश्वविद्यालय के अपने समकक्षों के समान ही हैं। मूर्ति ने मैसाच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी द्वारा पिछले 50 बरस में की गई 10 प्रमुख खोजों का जिक्र किया। इसमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), बायोनिक प्रॉस्थेसिस और माइक्रोचिप आदि शामिल हैं। मूर्ति ने कहा कि यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि एमआईटी के छात्रों व प्राध्यापक नई राहों पर चले, ऐसे सवाल पूछते हैं जो कभी पूछे नहीं गए होते हैं और अपनी बौद्धिक क्षमता के आधार पर लंबे कदम बढ़ाते हैं।

उन्होंने कहा कि लगभग सभी खोजें मसलन कार, बल्ब, रेडियो, टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट, वाईफाई, एमआरआई, लेजर, रोबोट और अन्य गैजट्स व प्रौद्योगिकी में पश्चिमी विश्वविद्यालयों के अनुसंधान का हाथ रहा है।

नारायणमूर्ति ने कहा कि दूसरी तरफ, हमें रुक कर पूछना चाहिए कि भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों का खास कर भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय पौद्योगिकी संस्थानों का योगदान क्या रहा है, आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के सह संस्थापक ने कहा कि वैश्विक कंपनियों की उत्पादकता में बदलाव लाने में जिन दो प्रमुख विचारों का हाथ रहा, वे थे ग्लोबल डिलिवरी माडल तथा 24 घंटे का कार्यदिवस। ये विचार इन्फोसिस ने दिए।