2013 में गठित  समिति ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट

लखनऊ। मई 2013 में गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि मौखिक, एक तरफा या तीन बार तलाक बोल कर निकाह तोडऩे की परम्परा पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए। समिति ने सभी धर्मों में विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाने की भी अनुशंसा की है।

उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक इस्लामिक देशों में तीन बार तलाक बोलने से निकाह तोडऩे की परम्परा अब खत्म की जा चुकी है। इन देशों में इराक, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब, ट्यूनिशिया, ईरान और बांग्लादेश सहित कई देश हैं। लेकिन भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह अब भी मान्य है। समिति ने चिंता जताई है कि इन दिनों एसएमएस, सोशल साइट्स और स्काइप पर तीन बार तलाक बोल कर विवाह तोडऩे के मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन इस पर गौर नहीं किया जा रहा है।

समिति ने कहा है कि शादीशुदा जिंदगी के बदतर हाल में पहुंचने का वास्ता किसी भी तलाक का आधार नहीं होना चाहिए। सभी जाति में विवाह के लिए एक समान आयु सुनिश्चित होनी चाहिए। आपराधिक धारा के तहत ऑनर किलिंग मामलों पर भी कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए इसके साथ समिति ने मुस्लिम महिलाओं के पिछड़ेपन और उन पर हिंसा के मामलों को संज्ञान में लेते हुए उनके लिए अलग से एक आयोग के गठन की सिफारिश भी की है।

समिति की सिफारिशों पर मंत्रालय चर्चा करेगा और सहमति होने पर इन्हें लागू करेगा। अगर मंत्रालय तीन बार तलाक कहने की परंपरा को खत्म करने की स्थिति में आता है, तो उसे कानून बनाने से पहले मुस्लिम समुदाय से विचार-विमर्श करना होगा। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्प संख्यक मंत्रालय अगले दो हफ्तों में इस संबंध में बैठक कर सकते हैं। वर्ष 2013 में यूपीए सरकार ने यह उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। इसमें 14 सदस्य हैं। इस समिति को महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था।