नई दिल्ली: कथित तौर पर हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा की गई आतंकी घटनाओं पर नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) को एक और बड़ा झटका लगा है। अजमेर ब्लास्ट मामले में अभियोजन पक्ष के 13 महत्वपूर्ण गवाह अब मुकर गए हैं।

इस मामले की सुनवाई जयपुर में एनआईए की स्पेशल कोर्ट में सितंबर 2013 से चल रही है। अजमेर दरगाह में धमाके के करीब 6 साल बाद शुरू हुई सुनवाई में एनआईए के लिए इसे मामले में सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है। साल 2007 में इफ्तार पार्टी के दौरान हुए उस धमाके में तीन लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई अन्य लोग घायल हो गए थे।

शुरुआत में राजस्थान एटीएस ने इस मामले की छानबीन की थी और अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तीन लोगों देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चंद्रशेखर लेवे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद मामला एएनआई के पास पहुंचा तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच उपरोक्त तीन लोगों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ये सभी लोग या तो पूर्व में आरएसएस से जुड़े रहे हैं या उनका किसी अन्य हिन्दूवादी संगठन से संबंध रहा है।

इन्हीं लोगों के ग्रुप को ‘भगवा आतंक’ के रूप में भी पहचान मिली और इनका संबंध 2007 से ही अजमेर दरगाह, मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में धमाकों से जोड़ कर देखा जाता रहा है।

सहायक लोक अभियोजक अश्विनी शर्मा का कहना है कि अभियोजन पक्ष की ओर से पूरा मामला उनके गवाहों के बयानों पर ही टिका था, जो उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए और सभी गवाह कोर्ट में मुकर गए।

खास बात ये ही कि जिन बयानों से गवाह मुकर रहे हैं उनके बारे में उन्होंने 2010 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कहा था कि वे बिना किसी दबाव में ये बयान दे रहे हैं। लेकिन नवंबर 2014 से अचानक गवाहों ने अपने बयान बदलने शुरू कर दिए और एनआईए पर जबरदस्ती बयान दिलाने का आरोप लगाया।