लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने सामाजिक-आर्थिक व जाति जनगणना 2011 के शुक्रवार को जारी आंकड़ों के आलोक में केंद्र की एनडीए सरकार की मौजूदा नीतियों पर हमला बोला है और सरकार के इन दावों पर संदेह जताया है कि इन आंकड़ों का उपयोग बेहतर नीतियां बनाने व सही लाभार्थियों की पहचान करने में किया जायेगा।
पार्टी के राज्य सचिव रामजी राय ने कहा कि मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों को रोजगार मुहैया कराने वाले मनरेगा को शिथिल, कमजोर व खत्म करने की दिशा ले रखी है। जबकि जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि गांवों में हर तीसरा परिवार भूमिहीन, हर दूसरा परिवार दिहाड़ी मजदूरी और साढ़े छह लाख से ज्यादा परिवार भीख से गुजारा करते हैं। यही नहीं, आंकड़े यह भी कह रहे हैं कि हर चार में से तीन ग्रामीण परिवारों की मासिक आय पांच हजार रु0 से भी कम है और लगभग हर सातवें परिवार के पास रहने के लिए एक कमरा भी नहीं है।
माले राज्य सचिव ने कहा कि ग्रामीण गरीबों की स्थिति सुधारने के लिए जरुरत इस बात की है कि मनरेगा को मजबूत बनाया जाये, उसमें धन आवंटन से लेकर रोजगार के अवसर, दिन और मजदूरी दर बढ़ाई जाये। अभी इस योजना में एक परिवार को एक जाब कार्ड, वर्ष में कुल 100 दिन का काम और मजदूरी दर 181 रु0 है। उन्होंने मांग की कि मनरेगा में परिवार के हर वयस्क को जाब कार्ड, एक साल में 200 दिन काम और मजदूरी दर 500 रु0 प्रतिदिन की जाये। साथ ही, भूमि सुधार लागू कर भूमिहीनों को भूमि और आवास उपलब्ध कराया जाये।
माले नेता ने कहा मोदी सरकार की मौजूदा नीतियों की दिशा तो जनगणना के आंकड़ों के उलट, गरीब-विरोधी और कारपोरेट के हित में है। इसलिए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ-साथ नीती आयोग (एनआईटीआई कमीशन) के दावों पर विश्वास करना मुष्किल है कि जनगणना के निष्कर्षों का उपयोग गरीबों की हालत सुधारने में किया जायेगा।
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