लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राजधानी में स्थित ऐतिहासिक इमामबाड़ों पर लगे ताला खुलवाने के आदेश पर पूरी तरह अमल नहीं किये जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए सोमवार को कहा कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

अदालत ने कहा ‘जिलाधिकारी लखनऊ को अपनी शक्तियों के बारे में पता होना चाहिये, जो उन्हें ऐसी कानून-व्यवस्था की स्थिति को सम्भालने के लिये दी गयी है।’ न्यायालय ने छोटे इमामबाड़े पर लगा ताला खुलवाने के लिये 30 जून तक का समय देने की राज्य सरकार की गुजारिश मंजूर करते हुए जिलाधिकारी से इस बात का हलफनामा मांगा है कि आखिर इमामबाड़ों के पास ऐसे हालात क्यों बने। अब इस मामले में कल सुनवाई होगी।

न्यायमूर्ति अरुण टण्डन तथा न्यायमूर्ति अनिल कुमार की अवकाशकालीन खण्डपीठ ने यह आदेश मसर्रत हुसैन नामक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये हैं। हुसैन ने अदालत से कहा कि उसके आदेश के बावजूद छोटे इमामबाड़े पर लगा ताला अब तक नहीं खोला जा सका है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने गत गुरुवार को आश्वासन दिया था कि वह पिछली पांच जून से बड़े तथा छोटे इमामबाड़ों पर लगे ताले 29 जून तक खुलवा देगी।

सुनवाई के दौरान अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल ने अदालत को बताया कि बड़े इमामबाड़े का ताला तो खोल दिया गया है लेकिन छोटे इमामबाड़े को खोलने के लिये प्रदर्शनकारियों तथा प्रशासन के बीच बातचीत अब तक सफल नहीं हो सकी है। गोदियाल ने ताला खुलवाने के लिये अदालत से सरकार को 30 जून तक का समय देने की मांग की, जिसे स्वीकार कर लिया गया।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जिला प्रशासन चाहे जो भी प्रयास कर रहा हो, लेकिन अदालत की राय है कि किसी भी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। गत 23 जून को अदालत ने लखनउ के जिलाधिकारी तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षक को बड़े तथा छोटे इमामबाड़ों के ताले खुलवाने तथा इन ऐतिहासिक इमारतों के आसपास शांति व्यवस्था सुनिश्चित करने के आदेश दिये थे।

एएसआई के नियंत्रण वाले बड़े तथा छोटे इमामबाड़ों पर शिया धर्मगुर मौलाना कल्बे जव्वाद के समर्थकों ने गत पांच जून को ताला लगा दिया था। वह उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी को हटाने की मांग कर रहे हैं।