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विदेशी निवेश के मोर्चे पर मोदी के अच्छे दिन मुश्किल हैं : एसोचैम

नई दिल्ली। विदेशी निवेश के मोर्चे पर इस साल “अच्छे दिन” का जादू कायम रख पाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी और चालू वित्त वर्ष के अब तक के रूख को देखते हुए वित्त वर्ष 2014-15 के प्रदर्शन को दुहरा पाना मुश्किल लग रहा है। उद्योग संगठन एसोचैम ने अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार के “अच्छे दिन” की उम्मीद में 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष एवं पोर्टफोलियो विदेशी निवेश 2013-14 की तुलना में 180 फीसदी बढ़कर 73.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

इसमें विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने पूंजी बाजार में 40.9 अरब डॉलर लगाए, जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के जरिए 32.6 अरब डॉलर देश में आए। संगठन ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में एफडीआई में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन जिस रफ्तार से एफआईआई पूंजी निकाल रहे हैं उनके निवेश में इससे बड़ी गिरावट की संभावना है।

उसने कहा, “कम से कम अगली दो तिमाहियों में एफआईआई के गिरते निवेश को रोकने के लिए कोई आकर्षक योजना नहीं दिख रही है। डॉलर में आई मजबूती और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से भारत में पोर्टफोलियो निवेश का स्तर नीचा बना रहेगा।” उल्लेखनीय है कि मई और जून में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने पूंजी बाजार में भारी बिकवाली की है जिससे चालू वित्त वर्ष में उनका शुद्ध निवेश ऋणात्मक रहा है। सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में अब तक एफआईआई ने 53.23 करोड़ डॉलर (3680.80) की शुद्ध निकासी की है।

एसोचैम ने रिपोर्ट में कहा है कि विदेशी निवेश में कमी आने के अनुमान के साथ-साथ वस्तुओं के निर्यात का परिदृश्य भी सकारात्मक नहीं दिख रहा। वस्तुओं का निर्यात 2014-15 के मुकाबले लगभग सपाट 310 अरब डॉलर पर रह सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, “इन परिस्थितियों में इस वित्त वर्ष के लिए विदेशी कारोबार का परिद्यश्य हरा-भरा नहीं दिख रहा है। राहत की बात बस इतनी है कि आयात में भी कमी रहेगी जिससे डॉलर के मुकाबले रूपये पर दबाव कुछ हद तक नियंत्रण में रहेगा।”

संगठन ने सरकार को सलाह दी है कि इन परिस्थितियों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से उम्मीद है और इसे आकर्षित करने के लिए आक्रामक अभियान चलाया जाना चाहिए। इस प्रकार एफआईआई के मार्चे पर होने वाले नुकसान की थोड़ी-बहुत भरपाई हो पाएगी। विदेशी मुद्रा भंडार के बारे में भी रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके उस गति से बढ़ने की संभावना नहीं है जिस गति से यह पिछले वित्त वर्ष में बढ़ा है। गत वित्त वर्ष विदेशी मुद्रा भंडार में 61.4 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई जो 2013-14 के दौरान हुई बढ़ोतरी का चार गुना है। चालू वित्त वर्ष में इस प्रदर्शन को दुहरा पाना कठिन दिख रहा है। संगठन ने सलाह दी है कि चालू खाता घाटा नियंत्रण में रखने के लिए सरकार को वस्तुओं के आयात को सीमित करना होगा और आईटी तथा इससे जुड़े उद्योगों के निर्यात बढ़ाने के उपाय करने होंगे।

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