देहरादून। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शनिवार को 2013 में हुई केदारनाथ त्रास्दी में राहत व बचाव कार्य में हुए घोटाले को लेकर जांच के आदेश दिए हैं। जांच उत्तराखंड के मुख्य सचिव रवि शंकर की अध्यक्षता में होगी। घोटला स्टेट इनफॉर्मेशन कमिश्नर अनिल शर्मा की सुनवाई दौरान सामने आया, जिसमें एक आरटीआई याचिकाकर्ता ने कई दस्तावेज सौंपे, जिनमें भारी अनियमितताएं सामने आईं।

सूत्रों के मुताबिक आरोपों को देखते हुए मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव से इस मामले की जांच करने को कहा और आरोपी आधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को भी कहा। इससे पहले आरटीआई के जरिए मिली जानकारी में ये खुलासा हुआ था कि, जिस समय उत्तराखंड में 2013 को आई बाढ़ के कारण लाखों लोग भूख से मर रहे थे। उस समय राहत कार्य में जुटे राज्य सरकार के अधिकारी मटन, चिकन और दूध का मजा उठा रहे थे और सात हजार रूपए प्रतिदिन किराये वाले होटल में ठहरे थे।

आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार आधे लीटर दूध के लिए 194 रूपए वसूले गए। दो पहिया वाहनों को डीजल सप्पलाई किया गया। एक ही व्यक्ति को दो बार राहत दी गई। एक ही दुकान से तीन दिनों तक 1800 रेन कोट खरीदे गए। साथ ही बचाव व राहत कार्य में लगे हेलीकॉप्टर में ईंधन भरने के लिए 98 लाख रूपए की दिए गए। जिस समय पर उत्तराखंड अब तक की सबसे बुरी त्रासदी से गुजर रहा था, स्टेट इनफॉर्मेशन कमिश्नर अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच कराने की सलाह दी थी।

नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस से जुड़े भूपेंद्र कुमार की शिकायत को सुनने के बाद पर उत्तराखंड के सूचना आयुक्त ने 12 पेज का आदेश पास किया। आदेश में शर्मा ने कहा, “अपीलकर्ता की ओर से पेश रिकॉर्ड को देखते हुए उनकी शिकायत उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास भेजी जानी चाहिए। साथ ही मुख्यमंत्री को इस बारे में जानकारी दी जाए।”

ऑथोरिटी द्वारा दिए गए रिकॉर्डों में सामने आया है कि कुछ राहत कार्य 28 दिसंबर, 2013 में शुरू किए गए थे और 16 नवंबर, 2013 को ही ये खत्म हो गए। ये शुरू होने के 43 दिनों पहले ही लॉन्च हो गए थे। वहीं पिथोड़गढ़ में कुछ कार्य 22 जनवरी, 2013 को शुरू हुए थे। यह कार्य 16 जून, 2013 को त्रासदी होने से छह महीने पहले ही शुरू हो गए थे।