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मुसलमानों के प्रति बढ़ रही हैं अखिलेश सरकार की संवेदनहीनता: जमीअत अल्मा

लखनऊ:  सांप्रदायिक ताकतें राज्य को दंगों और नफरत की आग में झोंक देना चाहती हैं। भड़काऊ बयानों से माहौल खराब किया जा रहा है। अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों को निशाना बनाते हुए मस्जिदों और गरजाघरों पर हमले किए जा रहे हैं और नौबत यहां तक पहुंच गई है कि यात्रियों को ज़दोकोब किया जाने लगा है। दाढ़ी टोपी देखकर चलती ट्रेन में मुस्लिम यात्रियों को हिंसा का निशाना बनाया जा रहा है लेकिन यूपी सरकार सांप्रदायिक मानसिकता के ाधीकारयों के बहकावे में आकर न्याय की आवश्यकताओं को पूरा करने और सही स्थिति पर नज़र होने के बजाय गलत और अनुचित फैसले ले रही है। शामली में ऐसा ही हुआ है। जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के कार्यालय सचिव मोहम्मद गफ़्रान कासमी कहते हैं कि जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी के आदेश पर लगभग दस दिन से लगातार मुख्यमंत्री से शामली के हवाले से मुलाकात का समय मांगा जा रहा है उनके पर्सनल सचिव  से कई बार संपर्क किया  लेकिन दस बारह दिन की लगातार कोशिशों के बावजूद असफलता के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। मौलाना कासमी कहते हैं कि इससे ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री मुस्लिम समस्याओं के संबंध में गंभीर नहीं हैं और सांप्रदायिक ताकतों और अपने भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं। बकौल मौलाना कासमी के मुख्यमंत्री द्वारा जमीअत के पदाधिकारियों को मुलाकात के लिए समय नहीं देना कोई पहली बार नहीं हुआ है बल्कि ऐसा होता रहता है क्योंकि वह परिस्थितियों को बिना किसी लॉग लपेट के अधिकारियों के सामने रखते हैं और कभी अपनी किसी निजी स्वार्थ के लिए अधिकारियों की चौखट पर नहीं जाते हैं। 

बड़े अफसोस की बात है कि मुसलमानों की प्रतिनिधि सामाजिक संगठन श्जमीअत उलेमा ष्के ज़िम्मेदारान को मुलाकात का समय नहीं दिया जाता जो केवल राष्ट्र और देश की सेवा करनेए धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करनेए भाईचारा को सार्वजनिक करने और देश में प्यार व मुहब्बत के वातावरण स्थापित करने में सुबह शाम व्यस्त रहते हैं। मौलाना कासमी ने आम मुसलमानों के जमीअत उलमा से जुड़े होने का उल्लेख करते हुए कहा कि लोग चुनाव के दौरान जमीअत के संकेत की प्रतीक्षा में रहते हैं और जमीअत उलेमा अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार ही धर्मनिरपेक्ष पार्टी पर विश्वास व्यक्त करती है कि मुस्लिम समस्याओं को हल करने में गंभीर दिखे और जमीअत के ओहदेदारों के संपर्क में रह कर मुस्लिम मुद्दों पर बातचीत का अवसर प्रदान करती रहे।

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